
सुनामी एवं तटीय बाढ़ जैसी विकट स्थितियों में लहरों के वेग एवं मलबे के दुष्प्रभावों के शमन हेतु एक स्थायी एवं स्थिर समाधान
सुनामी एवं तटीय बाढ़ जैसी विकट स्थितियों में लहरों के वेग एवं मलबे के दुष्प्रभावों के शमन हेतु एक स्थायी एवं स्थिर समाधान
बहुत जल्द, दुनिया में जनसंख्या विस्फोट और पानी की कमी से शायद आपको बिरयानी की थाली और कई लोगों को अपनी आजीविका से हाथ धोना पड़ सकता है। दुनिया भर में पानी की कमी के कारण हाल के वर्षों में दुनिया के लगभग ३.५ अरब से अधिक लोगों के लिए उनका मुख्य भोजन, चावल खतरे में आ गया है। परंपरागत रूप से, चावल एक अधिक पानी की ज़रुरत वाली फसल है, जिसे खेतों में पानी भरकर उगाया जाता है। कृषि में पानी के संरक्षण का बढ़ता दबाव निश्चित तौर पर चावल पर पड़ता है क्योंकि एक किलोग्राम अनाज का उत्पादन करने के लिए लगभग ४०००-५००० लीटर पानी की आवश्यकता होती है!
यह अध्ययन क्षतिग्रस्त पुर्ज़ों को दोबारा काम में लाने के लिए एक बेहतर योज्य निर्माण विधि का प्रस्ताव रखता है।
टीबी या क्षय रोग, जो माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस नामक बैक्टीरिया के कारण होता है, दुनिया भर में मृत्यु का एक प्रमुख कारण है। अकेले २०१७ में, दुनिया भर में १ करोड़ लोग इस बीमारी से प्रभावित थे, और लगभग १६ लाख लोगों ने इसकी वजह से दम तोड़ दिया। कई मौजूदा दवाओं के प्रतिरोध विकसित करने वाले बैक्टीरिया के कारण, भारत जैसे देशों में यह स्थिति गंभीर हो रही है। हाल ही के एक अध्ययन में, वीर नर्मद दक्षिण गुजरात विश्वविद्यालय, गुजरात के शोधकर्ताओं ने ट्यूबरक्लोसिस के खिलाफ कुछ संभावित दवाओं का विकास किया है और टीबी बैक्टीरिया और अन्य रोगाणुओं के प्रतिकूल उनकी दक्षता
शोधकर्ता डार्क मैटर के कणों का ब्लैक होल की परछाईयों की वृद्धि पर प्रभाव की तहकीकात कर रहे हैं
लगभग 11,000 साल पहले, मध्यपूर्व के ‘फर्टाइल क्रिसेंट’ इलाके में किसानों को गेहूँ उगाते हुए एक अनोखी चुनौती से जूझना पड़ता था। पकने के बाद इस जंगली प्रजाति के खपली गेहूँ के दाने कटाई से पहले जमीन पर गिरकर बिखर जाते थे। अगले कुछ हज़ारों वर्षों तक किसानों ने सावधानीपूर्वक चुनकर कुछ पौधों की नस्ल को आगे बढ़ाया जिसके परिणामस्वरूप आज के उपजाए जाने वाले गेहूँ तक हम पहुँच पाये हैं। गेहूँ के दाने अब बड़े हो गए हैं, उनकी उपज बेहतर होती है, और इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि ये पौधे कटाई तक पके हुए दानों को जकड़े रहते हैं। गेहूँ, चावल, और मकई जैसी फसलों के वर्षों तक चले चुनिंदा
एक नवीन अध्ययन के अंतर्गत भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (भारतीय खनि विद्यापीठ), धनबाद के शोधकर्ताओं ने रक्त में शर्करा की निगरानी हेतु एक प्रकाश आधारित रक्त शर्करा संवेदक विकसित किया है। शोधकर्ताओं का कहना है कि यह रक्त-शर्करा (रक्त में स्थित ग्लूकोज की मात्रा) को १० से २०० मिग्रा की विस्तृत सीमा तक माप सकता है। एक स्वस्थ वयस्क के लिए खाली पेट की स्थिति में रक्त शर्करा का औसत स्तर ७० से १२० मिलीग्राम/डेसीलीटर तक होता है।
भारत में तापमान बढ़ने से फसल उत्पादन के लिए खतरा हो सकती है।
मानवता युद्धों की गाथा के इतिहास की साक्षी रही है। हालाँकि, एक युद्ध ऐसा भी है जो रोज़ाना और लगातार होता रहता है – यह हमारे पाचक आँत में अच्छे और बुरे बैक्टीरिया के है!
अध्ययन में पाया गया है कि भारत में युवा महिलाओं के पास अपनी माताओं की तुलना में बेहतर व्यवसाय नहीं हैं।
शोधकर्ताओं ने पता लगाया कि कैसे मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार करने वाला स्यूडोमोनास नामक जीवाणु कार्बारिल को हज़म कर जाता है