मुंबई
देश में गिरते महिला कार्यबल पर एक अध्ययन

अध्ययन में पाया गया है कि भारत में युवा महिलाओं के पास अपनी माताओं की तुलना में बेहतर व्यवसाय नहीं हैं।

भारत दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था होने का गर्व करता है, पिछले पांच वर्षों में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर ६-७% है। एक अनुमान के अनुसार यदि पुरुषों के साथ महिलाओं के बराबर व्यवहार किया जाता तो यह संख्या तिगुनी से अधिक, यानी २७% तक हो सकती थी। आज, भारत की २६.९७% महिलाएँ कार्यबल में हैं, और हमारा लैंगिक भेदभाव इतना अधिक है कि हम संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) के लैंगिक असमानता सूचकांक २०१८ में १८९ देशों की सूचि में १२७ वे स्थान पर हैं। जब व्यवसाय पाने की बात आती है, तो क्या भारत की युवा महिलाएँ अपनी माताओं से बेहतर हैं? भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई में शैलेश जे. मेहता स्कूल ऑफ मैनेजमेंट के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए एक ताज़ा अध्ययन में कुछ चौंकाने वाले निष्कर्ष सामने आए हैं।

इंटरनेशनल जर्नल ऑफ सोशल इकोनॉमिक्स में प्रकाशित अध्ययन में 'अपनी माताओं की तुलना में भारत की युवा महिलाओं की' अंतर-व्यावसायिक गतिशीलता देखी गई। यह पाया गया कि भारत में यह संख्या लगभग ७१.२% है, जिसका अर्थ है कि भारत में लगभग ७१.२% बेटियाँ अपनी माताओं की तुलना में अलग व्यवसाय में हैं। साथ ही साथ यह भी देखा गया है कि "बेटियाँ आज उन व्यवसायों में हैं, जो व्यवसाय उनकी माताओं द्वारा किये जाने वाले व्यवसाय से सामाजिक और आर्थिक सम्बन्ध में, तुलनात्मक रूप से कम हैं" अध्ययन का नेतृत्व करने वाले प्राध्यापक आशीष सिंह कहते है।

शोधकर्ताओं ने वर्ष २००६-२००७ में "इंस्टीट्यूट ऑफ पॉपुलेशन साइंसेज, मुंबई, एवं द पॉपुलेशन काउंसिल, नई दिल्ली" द्वारा आयोजित "यूथ इन इंडिया: सिचुएशन एंड नीड्स" सर्वेक्षण के आंकड़ों का इस्तेमाल किया। सर्वेक्षण के आंकड़े बिहार, तमिलनाडु, राजस्थान, महाराष्ट्र, झारखंड और तत्कालीन आंध्र प्रदेश के ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में ५०,८४८ विवाहित और अविवाहित युवक और युवतियों से, जिनकी उम्र १५ से २४ वर्ष के बीच है, से एकत्र किये गए।

अध्ययन के निष्कर्षों से पता चला है कि लगभग ३९% माताएँ और ६४% बेटियां काम नहीं कर रही थीं, और यह प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में शहरी क्षेत्रों में अधिक था। शोधकर्ता इसके दो कारण से मानते हैं - पहला, शहरी क्षेत्रों में पति परिवार में वित्तीय स्थिरता प्रदान करते हैं, महिलाओं को बाहर जाने और कमाने से हतोत्साहित करते हैं, और दूसरा कारण  यह है कि चूंकि कई युवा लड़कियां शहरी क्षेत्रों में उच्च शिक्षा हासिल करती हैं, इसलिए वे अभी तक कर्मचारी वर्ग  में शामिल नहीं हुई हैं। इसके अलावा, गैर-कामकाजी माताओं से पैदा हुई बेटियों में से लगभग ८०% काम नहीं करती हैं।

ज्यादातर माताओं ने किसान या कृषि मजदूरों के रूप में काम किया है। हालांकि, उनकी ७०% बेटियां गृहिणी बनकर ही रह गईं। इस प्रवृत्ति पर शोधकर्ताओं का कहना है, "यह गतिशीलता भारत में गिरती महिला श्रम शक्ति के भागीदारी दर और समग्र गतिशीलता दर को बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान देती है"। दिलचस्प बात यह है कि ९२% बेटियाँ जिनकी माताएँ प्रशासनिक या प्रबंधकीय पेशों में थीं, वे अपनी माता की तुलना में निचले व्यवसाय श्रेणियों में काम करती हैं, और समग्र रूप से नीचे की ओर गतिशीलता में योगदान करती हैं।

प्राध्यापक सिंह ने अध्ययन के निष्कर्ष बताते हुए कहा, "भारत में महिलाओं के बीच व्यावसायिक गिरावट को महिलाओं में शिक्षा के क्षेत्र में गिरती गतिशीलता से जोड़ा जा सकता है"। "भारत में कई महिलाओं ने अपनी माताओं को गृहिणियों के रूप में काम करते हुए देखा है, जिसके बावजूद उन्हें शिक्षित किया जाता है, जो इन युवा महिलाओं को यह विश्वास दिलाता है कि भले ही वे एक निश्चित स्तर की शिक्षा प्राप्त कर लें, लेकिन आखिरकार वे गृहिणी होने जा रही हैं, और इसलिए वे शिक्षा में ज्यादा निवेश नहीं करती हैं”।

शोधकर्ताओं ने यह भी अध्ययन किया कि इन महिलाओं की जाति और राज्य का इनके व्यावसायिक गतिशीलता पर क्या प्रभाव था। उन्होंने पाया कि अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों (एससी/एसटी) जैसी ऐतिहासिक रूप से वंचित जातियों की महिलाओं में लाभान्वित जाति की महिलाओं की तुलना में व्यावसायिक सुधार की गतिशीलता बहुत कम थी। इसके अलावा, बिहार और झारखंड जैसे गरीब राज्यों की युवा महिलाओं की तमिलनाडु जैसे समृद्ध राज्यों की तुलना में बहुत कम व्यावसायिक गतिशीलता थी। शोधकर्ताओं ने इन दोनों निष्कर्षों को वंचित परिस्थितियों से आई महिलाओं के लिए अवसरों की व्यापक असमानता को जिम्मेदार ठहराया है।

"व्यावसायिक गिरावट के गंभीर सामाजिक और आर्थिक नतीजे हो सकते हैं। यह आगे बढ़ने के अवसरों में लिंग-आधारित असमानता के ऊँचे स्तरों को जन्म दे सकता है, जिसके परिणामस्वरूप देश में लिंग-आधारित आर्थिक असमानताएँ बढ़  सकती हैं,” प्राध्यापक सिंह ने सचेत किया।

शोधकर्ताओं ने महिलाओं के बीच व्यावसायिक गिरावट को रोकने के लिए कुछ सुधारात्मक उपायों को भी इंगित किया है। "हमें ऐसी नीतियों की आवश्यकता है जो लड़कियों के लिए शैक्षिक और वित्तीय  योजनाएँ बनाए, और जो समाज के एक बड़े वर्ग के लिए सुलभ हो", प्राध्यापक सिंह बताते हैं। इसके अलावा, उनका कहना है कि समाज को पुरुषों और महिलाओं के बीच घरेलू कार्यों को साझा करने के बारे में जागरूक करने की आवश्यकता है, जिससे कामकाजी महिलाओं के लिए सकारात्मक परिणाम सामने आ सकते हैं।

"छोटे बच्चों वाली महिलाओं के लिए कार्यस्थल पर बच्चों के देखभाल की सुविधा, उचित मातृत्व अवकाश, मातृत्व अवकाश के दौरान और बाद में रोजगार और करियर की सुरक्षा, और उन महिलाओं को कार्यबल में वापस लाने के उद्देश्य से नीतियों को बढ़ावा देना, जिनकी नौकरियाँ गर्भावस्था के कारण छूट गईं, बड़े पैमाने पर मदद करता है” प्राध्यापक सिंह ने निष्कर्ष निकाला।

 

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