बेंगलुरु
आँतों के बुरे बैक्टीरिया से लड़ने में प्रोटीन माइक्रोबिड्स का इस्तेमाल

मानवता युद्धों की गाथा के इतिहास की साक्षी रही है। हालाँकि, एक युद्ध ऐसा भी है जो रोज़ाना और लगातार होता रहता है – यह हमारे पाचक आँत में अच्छे और बुरे बैक्टीरिया के है! जबकि बुरे बैक्टीरिया हमेशा अपनेआप को हमारी आँतों की दीवारों से चिपकने की कोशिश करते हैं और अच्छे बैक्टीरिया उन्हें दूर करके उन बंधन-स्थलों को जब्त कर लेते हैं। हाल ही के एक अध्ययन में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) – राष्ट्रीय दुग्ध अनुसंधान संस्थान, करनाल के वैज्ञानिकों ने बैक्टीरिया की इस प्रतियोगिता को बारीकी से परीक्षण किया और इस परस्पर क्रिया में शामिल कुछ प्रोटीनों की पहचान की है। उन्होंने इन प्रोटीनों के साथ जुड़े माइक्रोबिड्स का उत्पादन भी किया है जो कि रोगजनक बैक्टीरिया से लड़ने की क्षमता रखते हैं।

हमारी आँत चिपचिपे पदार्थ से लेपित होती है, जिसमें कार्बोहाइड्रेट और प्रोटीन का एक जटिल मिश्रण होता है। इनमें से कुछ प्रोटीन रिसेप्टरों के साथ जुड़ जाते हैं जो रोगाणुओं पर प्रक्षेपित होते हैं, इस प्रकार उन्हें आँतों की सतह से चिपकने से रोकते हैं। हमारी आँत की ये श्लेष्मा परत समय-समय पर हानिकारक या बुरे बैक्टीरिया को हटा देती है।

हालाँकि कुछ हानिकारक बैक्टीरिया, अच्छे प्रोबायोटिक बैक्टीरिया को हराकर, अपनी सतह के रिसेप्टर के माध्यम से कोशिका की सतह से बँधने में सफल हो जाते हैं। इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने प्रोबायोटिक बैक्टीरिया लैक्टोबेसिलस प्लांटेरम द्वारा उपयोग किए जाने वाले मब प्रोटीन नामक एक प्रकार के आँत रिसेप्टर बँधनकारी प्रोटीन का अध्ययन किया है। उन्होंने मब प्रोटीन को अलग किया और परीक्षण किया कि यह रोगजनक बैक्टीरिया मानव कोशिकाओं से बँधने से रोकने में कितना बेहतर था। परिणाम आश्चर्यचकित करने वाले थे, इस प्रोटीन ने अनूठा काम कर दिखाया और ८१ प्रतिशत बैक्टीरिया के रोगजनक स्ट्रेन को बँधने से रोका।

" मूल रूप से इस कार्रवाई को करने का मकसद यह देखना कि आँत में एपिथिलियल कोशिकाओं के साथ बाध्यकारी रिसेप्टर के लिए रोगजनकों का विस्थापन या अपवर्जन या रोगजनकों के साथ मुकाबला है और इस प्रकार आँत में से रोगजनकों को तेज़ी से बाहर निकाल दिया जाता है।" 

साइंटिफिक रिपोर्टस नामक पत्रिका में प्रकाशित इस अध्ययन के प्रमुख लेखक आईसीएआर-एनडीआरआई के डॉ. जय कुमार कौशिक कहते हैं।

शोधकर्ताओं का मानना है कि जल्द ही यह प्रोटीन आँत में रोगजनक बैक्टीरिया का सामना करने के लिए एक पूरक के रूप में काम कर सकता है। उन्होंने पुन:संयोजक मब प्रोटीन के एक छोटे से हिस्से का उत्पादन किया और आगे यह पता लगाया कि क्या इसे हमारी आँत में एंटीबैक्टीरियल एजेंट के रूप में दिया जा सकता है। उन्होंने प्रोटीन के साथ छोटे माइक्रोस्फेयर्स या माइक्रोबिड्स बनाए जिसका उपयोग हमारी आँत में मब प्रोटीन को सही जगह और उचित मात्रा में प्रदान करने में किया जा सके।। ये माइक्रोबिड्स हमारे शरीर के औसत तापमान ३७ डिग्री सेन्टिग्रेट पर स्थिर और प्रभावी पाए गए हैं।

शोधकर्ताओं ने देखा कि मब प्रोटीन बैक्टीरिया से ज़्यादा प्रभावी थे जो रोगजनकों को आँत की कोशिकाओं को बँधने से रोकने के लिए पैदा होते हैं। हालाँकि आँत की कोशिकाओं और इनकैप्सूलेटेड प्रोटीन के बीच भी इसी तरह की हाइड्रोफोबिक परस्पर क्रिया देखी गई है। प्रोटीन के छोटे आकार ने उन्हें आसानी से फैलने और कोशिकाओं और ऊतकों को कम करने में मदद की, जिससे रोगजनकों तक पहुँच बंद हो गई।

अध्ययन के ये निष्कर्ष आँत रोगजनकों के बीच के सम्बन्ध पर बेहतर समझ प्रदान करते हैं, जिसका सीधा असर हमारे स्वास्थ्य पर पड़ता है। हालाँकि रोगजनकों को दूर करने के लिए प्रोबायोटिक बैक्टीरिया को दही और अन्य किण्वित उत्पादों के ज़रिए लिया जा सकता है। फिर भी ये बैक्टीरिया में दवा प्रतिरोध विकसित करने में योगदान दे सकते हैं जो कि एक चिंता का विषय है। जैसा कि अध्ययन में दिखाया गया है कि माइक्रबिड्स के रूप में प्रोटीन का इनकैप्सूलेशन एंटीबायोटिक दवाओं के साथ-साथ प्रोबायोटिक बैक्टीरिया का भी बेहतर प्रतिस्थापन है।

डॉ. कौशिक बताते हैं कि “एंटीबायोटिक-प्रतिरोधी प्रोबायोटिक्स जीवाणु भी एंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोध में एक अहम भूमिका निभा रहे हैं। इसीलिए हमने जीवित प्रोबायोटिक जीवाणुओं की बजाय उनकी सतह पर स्थित सक्रिय प्रोटीन का इस्तेमाल किया”।

उन्होंने चेतावनी दी है कि हालाँकि ये प्रोटीन रोगजनकों को रोकने या हटाने के लिए केवल उच्च लक्षित उद्देश्यों के इस्तेमाल के लिए हैं, और ये प्रोबायोटिक्स के स्वास्थ-प्रोत्साहित कामों को हटा नहीं सकते हैं।

ऐसे समय में जब स्वास्थ्य उद्योग, प्रतिरोध से निपटने के लिए संघर्षरत है तो मब प्रोटीन माइक्रोबिड्स जैसा सरल उत्पाद एंटीबायोटिक-मुक्त दृष्टिकोण दे सकता है या आँत में रोग पैदा करने वाले बैक्टीरिया से प्रभावी रूप से लड़ सकता है।

सारांश – आईसीएआर-एनडीआरआई, करनाल के वैज्ञानिकों ने प्राकृतिक आँत बैक्टीरिया और रोगजनक बैक्टीरिया के बीच प्रतिस्पर्धा को बारीकी से देखा है। उन्होंने इस परस्पर क्रिया में शामिल कुछ प्रोटीनों की पहचान की है और इन प्रोटीनों के साथ एम्बेडेड माइक्रोबिड्स का भी उत्पादन किया है जो कि रोगजनक बैक्टीरिया से लड़ने की क्षमता रखता है।

 

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