नई दिल्ली
भारत में तापमान बढ़ने से फसल उत्पादन के लिए खतरा हो सकती है।

भारत में तापमान बढ़ने से फसल उत्पादन के लिए खतरा हो सकती है।

भारत जैसे विकासशील देशों के लिए बढ़ता तापमान एक चुनौती है क्योंकि इसकी वजह से देश के आर्थिक विकास प्रभावित होता है। अध्ययनों से पता चला है कि उष्णकटिबंधीय विकासशील देशों के तापमान में औसत एक डिग्री की वृद्धि होने मात्र से ही इन देशों की आर्थिक वृद्धि दर में १.३ प्रतिशत की कमी आ सकती है। इसके साक्ष्य में, हाल ही में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान दिल्ली के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए एक अध्ययन में पाया गया है कि तापमान में विविधताएँ, फसल उत्पादन और श्रमिक दक्षता को प्रभावित करती हैं, जो हमारी अर्थव्यवस्था के दो महत्वपूर्ण स्तंभ हैं। इस अध्ययन को इनवार्मेंटल रिसर्च लेटर्स में प्रकाशित करने के लिए स्वीकृत किया गया है।

तापमान में तबदीली और मौसमी बदलावों के विकास के बारे में ज्ञान, इसके प्रभाव को कम करने के लिए प्रभावी रणनीति बनाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने १९५१ से २०१० तक के प्रतिदिन के अधिकतम और न्यूनतम तापमान के आँकड़ों का उपयोग किया है। उन्होंने फसलों के लिए अनुकूल ‘बढ़ते मौसम’ के दौरान तापमान में होने वाले वार्षिक उतार-चढ़ाव का अनुमान लगाया, और परिवर्तन काल के दौरान तापमान के रूझानों का भी अध्ययन किया जैसे - अधिक गर्मी व सर्दी, और इनके बीच के मौसम का समय।

अध्ययन में पाया गया कि पूरे विश्व में दिन और रात दोनों समय के तापमान में वृद्धि हुई है। यह वृद्धि अक्टूबर से नवम्बर के बीच दिन के समय के तापमान में सबसे प्रमुख है।

“दिन और रात के तापमान में भारी वृद्धि भारत में खेती के लिए एक बड़ा खतरा होगी। खासतौर पर, सर्दियों में रात के तापमान में बढ़ोतरी होने के कारण सबसे बड़े गेहूँ उत्पादक राज्य पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश इससे गंभीर रूप से प्रभावित होंगे।” आईआईटी दिल्ली के शोधकर्ताओं ने यह जानकारी एक प्रेस विज्ञप्ति के दौरान दी।

अध्ययन की अवधि के दौरान शोधकर्ताओं ने यह भी पाया कि अत्यधिक ठंडे तापमान में गिरावट आई है। हालाँकि अत्यधिक गर्मी, जिसमें अधिकतम तापमान ३०-३२ डिग्री सेल्सियस के बीच मंडराता था, जो अब पूरे मध्य भारत और पूर्वोतर में भी बढ़ गया है।

अध्ययन में पाया गया है कि खुशनुमा मौसम, सुखद दिनों या परिवर्तन काल की अवधि पूरे देश में कम हो गई है। दक्षिणी पश्चिमी तट – पश्चिमी घाट और केरल को घेरने वाला एक क्षेत्र है, जिसे प्राकृतिक परिदृश्य और सुखद जलवायु के साथ ईश्वर का देश माना जाता है, हाल के दशकों में इन सुखद दिनों में भारी कमी दिखाई दी है। हालांकि यह ज़्यादा तीव्र नहीं है, पूर्वी तट, मध्य भारत, उत्तर-पूर्व और हिमालय की तलहटियों में भी इसी तरह के बदलाव देखे गए हैं। ऐसा शोधकर्ताओं का मानना है।

निष्कर्षों से पता चला है कि परिवर्तन काल में गर्मी अपने पैर पसार रही है। अर्ध-शुष्क क्षेत्रों (उत्तर-पश्चिम) में सुखद दिन और रात बढ़ रहे हैं, जो कम और उच्च-तापमान वाली चरम सीमा के लिए जाना जाता है।

भारत भर में तापमान परिवर्तनों की मात्रा में बदलाव नीति-निर्माताओं को इसके प्रभाव को कम करने के लिए क्षेत्रवार रणनीति बनाने में मददगार साबित हो सकते हैं।

इसके अलावा हमारे अध्ययन में इस अत्यधिक गतिशील मौसम से निपटने के लिए अनुकूलन विकल्प सुझाए गए हैं जैसे कि गतिशील फसल प्रतिरूप, फसल के प्रकारों में बदलाव और भारत जैसे उष्णकटिबंधीय देशों में मनुष्यों के काम करने के घंटों में लचीलापन अपनाया जा सकता है। लेखकों ने निष्कर्ष निकाला।

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