मुंबई
वैज्ञानिकों द्वारा कम लागत व कम ऊर्जा की खपत वाला धारणीय उपकरण का विकास

भारतीय प्रौद्योगिक  संस्थान मुंबई के वैज्ञानिकों द्वारा स्वास्थ्य के संकेतक ई सी जी और ई ई जी की लगातार निगरानी के लिए कम लागत और ऊर्जा की खपत वाला वायरलेस धारणीय उपकरण विकसित 

चिकित्सकों, नर्सों और अन्य चिकित्सा कर्मियों की भारी कमी वाले भारत देश में, ह्रदय सम्बन्धी और न्यूमोनिया जैसे श्वास सम्बन्धी रोगी, जिन्हें लगातार देखरेख और निगरानी की ज़रुरत होती है, की दशा चिंताजनक है। धारणीय उपकरण का प्रयोग करके ऐसे रोगियों के महत्त्वपूर्ण मापदंडों की लगातार जाँच करके उनको बचाया जा सकता है । हाल ही में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई की प्राध्यापक मरयम शोजाई बघीनी और उनके गुट ने एक वायरलेस, विश्वसनीय, मज़बूत, कम लागत का और कम ऊर्जा की खपत करने वाला स्वास्थ्य की निगरानी करने वाला एक उपकरण विकसित किया है जो रोगियों के ह्रदय की गति, ऑक्सीजन का स्तर और ह्रदय में उत्पन्न होने वाली वैद्युतीय सिग्नल का अवलोकन कर सकने में समर्थ है।

यह उपकरण, जिसे बायो-वाइटेल नाम दिया गया है, टेलीमीटरिंग (दूर-मापन) के सिद्धांत पर आधारित है।इस प्रणाली में  एक धारणीय सेंसर होता है जो वायरलेस (बेतार) के ज़रिये पास के बेस से संपर्क में रहता है और एक ऐसी आवृत्ति पर काम करता है जो चिकित्सीय उपकरणों के लिए आरक्षित है। इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) द्वारा पोषित बायो-वाइटेल भारत का पहला उपकरण है जो पूर्णतया दूर-मापन के सिद्धांत पर आधारित और कस्टम बिल्ट एकीकृत चिप का प्रयोग करता है। यह अध्ययन ‘आई ई ई ई जर्नल ऑफ बायोमेडिकल एंड हेल्थ इंफॉर्मेटिक्स’ में प्रकाशित हुआ।

सामान्यतः व्यावसायिक रूप में उपलब्ध ऐसे उपकरण डाटा भेजने के लिए ब्लूटूथ का उपयोग करते हैं परन्तु ऐसे उपकरणों से जनित विकिरण अगर ज़्यादा समय तक प्रयोग किये जाएँ तो मनुष्य की ऊतकों (टिश्यू)  के लिए हानिकारक सिद्ध हो सकते हैं जब कि बायो-वाइटेल से विकिरण केवल २५ माइक्रोवाट होता है जो लगातार प्रयोग किये जाने पर भी मनुष्य के शरीर के लिए जोखिम रहित है।   

“हमारी प्रेरणा ये थी कि हम दूरमापन पर आधारित एक ऐसी सुरक्षित प्रणाली विकसित करें जो भारत की ‘वायरलेस प्लानिंग एंड कोआर्डिनेशन विंग’ और यू एस ए की ‘फ़ेडरल कम्युनिकेशन कमीशन’ के अधिनियमों के अनुसार हो।”, ऐसा भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई के डा अभिषेक श्रीवास्तव ने बताया जिन्होंने अपने पीएचडी के दौरान इस अध्ययन का नेतृत्व किया था।

यह  बायो-वाइटेल उपकरण, ४०१-४०६ मेगा हर्ट्ज की श्रेणी में काम करता है। इसका विस्तार करीब ३ मीटर तक है और डेटा को मोबाइल फ़ोन व कंप्यूटर के डोंगल को प्रेषित कर सकता है। इंटरनेट के द्वारा डेटा को ग्रहण करके दूर से ही कई रोगियों के स्वास्थ्य का मुआयना किया जा सकता है ।

शोधकों ने बायो-वाइटेल के ट्रांसमीटर, रिसीवर, कम्युनिकेशन सिस्टम और उसके सॉफ्टवेयर को तदनुकूल डिज़ाइन किया है जिससे इसमें समुचित विशेषताएँ डाली जा सकी हैं। ऊर्जा की खपत के अनुरूप सही डेटा रेट निश्चित की गयी क्योंकि डेटा रेट अधिक होने पर ऊर्जा की खपत भी ज़्यादा होती। उन्होंने उचित वायरलेस मॉडुलेशन का तरीका चुना जो मज़बूत और विश्वसनीय था । साथ ही ऐसा आवृत्ति मॉडुलेशन और डेटा रेट चुना जो एक साथ १२ बायो सिग्नल को चलाने में सक्षम हो।बजाय अलग अलग अवयवों  के , उन्होंने एक विशेष रूप से निर्मित एकीकृत चिप का प्रयोग किया है जिससे  लागत और ऊर्जा की खपत दोनों कम हों। इसका विकास करते समय पैकेजिंग और जाँच करने के लिए टेस्ट पांइट्स का समुचित प्रावधान रखा गया है।

शोधकों ने एल्क्ट्रोकार्डिओग्राम (ECG) और फोटोप्लेथाइसमोग्राम (PPG) के डेटा को ३ मीटर की दूरी तक प्रसारित कर के प्रोटोटाइप की परख की। ECG ह्रदय की वैद्युतीय सिग्नल का मापन करता है जब कि PPG रोगी की नब्ज़ और शरीर के कुछ भागों में पंप की गई रक्त की मात्रा बताता है। उन्होंने ट्रांसमीटर द्वारा उपयोग की गई ऊर्जा, उसकी संवेदनशीलता, रिसीवर द्वारा उपयोग की गई ऊर्जा और अधिकतम डेटा के प्रसारण की क्षमता और त्रुटि की दर को भी मापा। ये सारे परिणाम संतोषजनक पाए गए।

उन्होंने बायो-वाइटेल के कार्य की इसी प्रकार के ७ दूसरे धारणीय उपकरणों से तुलना की । उन्होंने पाया कि तुलनात्मक डेटा दर पर बायो-वाइटेल काफी कम वोल्टेज पर काम करता है और ऊर्जा की खपत भी तीन से चार गुना कम है। इसकी संवेदनशीलता भी उत्तम थी और त्रुटि की दर भी संतोषजनक पाई गयी।

शोधकों का विश्वास है कि इस उपकरण से रोगियों की दशा की निगरानी और भी आसान हो जाने के कारण कई जान लेवा बीमारियों का निदान जल्दी हो पायेगा। “ऐसे उपकरणों की सहायता से रोगियों को ICU, जहाँ भारी भरकम यंत्रों से लगातार निगरानी करवाने की सहूलियत होती है, ले जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।”, डा श्रीवास्तव ने  कहा।

शोधकर्ताओं के बायो-वाइटेल पर आधारित लेख को २०१९ के ‘इंटरनेशनल कांफ्रेंस ऑन वीएलएसआई डिज़ाइन’ में सर्वोत्तम लेख पुरस्कार दिया गया और २०१८ का सर्वोत्तम लेख मनोनीत किया गया है। शोधकर्ताओं  ने  बायो-वाइटेल के तीन पेटेंट फाइल किये हैं और आशा करते हैं कि जल्दी ही इनका वाणिज्यीकरण हो पायेगा।

“हमारे इस काम से अनुसंधान के और भी कई नए आयाम सामने आये हैं जैसे, इस प्रणाली का स्वचलीकरण  जिससे रोगियों को वास्तविक समय पर फीडबैक मिल सके और ऐसी तकनीक का उपयोग जिससे उपकरण को रोगी के शरीर से ही उपकरण के चालन के लिए ऊर्जा मिल सके जिससे बैटरी की आवश्यकता ही न हो।”, ऐसा कहकर  डा श्रीवास्तव ने अपनी बात समाप्त की। 

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