मुंबई
संचार व्यवस्था को कैसे जैमर के प्रभाव से मुक्त रखें

मिलिट्री संचार व्यवस्था को कैसे और मज़बूत बनाएँ - भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई द्वारा एक सैद्धांतिक अध्ययन 

सामरिक उपयोग में लाई जाने वाली संचार तंत्र की सुरक्षा और विश्वसनीयता से बिलकुल ही समझौता नहीं किया जा सकता। जैमर (अवरोधक) एक इलाके की संचार व्यवस्था को पूरी तरह नाकाम कर सकते हैं, जैसा कि हाल ही की एक फिल्म में मिलिट्री को एक आतंकवादी गिरोह पर आक्रमण करते समय करते हुए दिखाया गया है। अवरोधक विभिन्न परिस्थितियों में कैसे काम करते हैं ये जानना ज़रूरी हो जाता है।

एक ताज़ा अध्ययन में, जो कि ‘आई ई ई ई ट्रांज़ैक्शन्स ऑन इनफार्मेशन थ्योरी’ नामक जर्नल में प्रकाशित हुआ है, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई के प्राध्यापक बिकाश डे और उनके सहकर्मी और टाटा मूलभूत अनुसंधान संस्थान (TIFR), मुंबई, ने  संचार प्रणाली को नाकाम करने में ऐसे अवरोधकों की कार्य कुशलता की छान बीन  की है, जिन्हें संचार प्रणाली के बारे में विशिष्ट जानकारी होती है, । उन्होंने पता लगाया है कि अवरोधक किसी भी युक्ति का उपयोग करलें, वे उनसे अधिक हानि नहीं पहुँचा सकते जिन्हें संचार प्रणाली के बारे में विशिष्ट सूचना न हो।

किसी भी इलेक्ट्रॉनिकी संचार में, एक प्रेषक प्राप्तकर्ता को, चैनल के द्वारा संदेश भेजता है। चैनल एक माध्यम है जिसमे सन्देश निहित है। चैनल कुछ भी हो सकता है जैसे टेलीफोन का तार, या हवा जो कि वाई फाइ या सेलुलर सिग्नल संचारित करती है या फिर हार्ड डिस्क। आस पास के तारों से, या रेडियो या वैद्युतीय सिग्नल के व्यवधान से पाए गए सन्देश में त्रुटियाँ हो सकती हैंI इन व्यवधानों, जिन्हें ‘शोर’ की संज्ञा दी जा सकती है, के कारण प्राप्त सन्देश की विश्वसनीयता कम हो जाती है।चैनल में शोर बढ़ जाने पर त्रुटियों की गति बढ़ जाती है फलस्वरूप, चैनल की विश्वसनीयता कम हो जाती है।

एक चैनल एक समय में कितने डेटा का धारण कर सकता है यह उसकी क्षमता कहलाती है। एक चैनल की क्षमता का सैद्धांतिक रूप से हिसाब लगाया जा सकता है और इसकी एक सीमा होती है। इस सीमा का महत्त्व यह है कि जब तक डेटा के प्रेषण की गति इस सीमा से कम होगी, हम कोडिंग के चतुर तरीकों का उपयोग कर के उच्च स्तर की विश्वसनीयता सुनिश्चित कर सकेंगे।

सामान्यतः, प्राप्तकर्ता ‘टेस्ट सिग्नल’ का विश्लेषण करके इस बात का पता लगा सकता है कि चैनल, प्रेषित संदेश को कैसे प्रभावित करता है। भेजने वाले को चाहे इस बात का पता न हो कि चैनल के द्वारा कितनी त्रुटियाँ समाविष्ट की गयी हैं, मगर प्राप्तकर्ता उन्हें पहचान कर शायद ठीक भी कर सकता है। कभी कभी प्रेषक को जानकारी होती है कि चैनल सन्देश को कैसे प्रभावित कर रहा है परन्तु प्राप्तकर्ता को मालूम नहीं होता। ऐसी प्रणाली का कूट-लेखन (क्रिप्टोग्राफ़ी) और स्टेगॉनोग्राफी में उपयोग किया जाता है जिसमें कि ज़रूरी सन्देश को किसी दूसरे सन्देश में सन्निहित किया जाता है या उस पर ‘सवारी’ करता है जिससे कि असली सन्देश गुमनाम रहे। “ये बिलकुल वैसा ही है जैसे कि हम लिखने के लिए किसी छायाचित्र का या किसी ऐसे कागज़ का इस्तेमाल करें जिसमें पहले ही से कुछ लिखा हुआ हो। या कि जैसे हम किसी मैले कागज़ का इस्तेमाल करें और इसीलिये इस विधि को ‘डर्टी पेपर मॉडल’ भी कहा गया है”, ये बात समझाते हुए प्राध्यापक डे ने कहा।

संचार प्रणाली को त्रुटि विहीन और विश्वसनीय रखने के लिए ‘पहले से साझा की हुई चाबी’ का उपयोग करते हैं जिसका ज्ञान प्रेषक और प्राप्तकर्ता दोनों को ही होता है। इस अध्ययन में शोधकर्ता इस तकनीक का उपयोग मान कर चलते हैं। चैनल में शोर बढ़ जाने पर डेटा का पुनःसंचारण करके संचार को विश्वसनीय तो बनाया जा सकता है परन्तु इससे संचार की गति बहुत धीमी पड़ सकती है।

इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने एक ऐसे सिस्टम को आधार माना जिसमें प्रेषक चैनल से भली भाँति परिचित है और प्रतिद्वंद्वी, भेजे जाने वाले सन्देश और चैनल के सन्देश पर प्रभाव से वाकिफ़ है। इस हाल में प्रतिद्वंद्वी, चैनल में एक अतिरिक्त सन्देश का समावेश करता है जिससे कि असली सन्देश का संचार विश्वसनीय रूप से न हो पाए। ऐसे सन्देश को ‘जैमिंग सिग्नल’ कहा जाता है और प्रतिद्वंद्वी सन्देश और चैनल के बारे में अपनी जानकारी का उपयोग करके प्राप्तकर्ता को मिले सन्देश में बहुत सी त्रुटियों का समावेश कर सकता है। शोधकर्ताओं ने यह जानने की कोशिश की कि प्रतिद्वंद्वी के चैनल की जानकारी के चलते, संचार की गति पर क्या असर पड़ेगा।

शोधकर्ताओं ने जैमिंग सिग्नल की उपस्थिति में चैनल की धारण शक्ति की गणना करने के लिए एक गणितीय समीकरण का प्रतिपादन किया है। परिणामों से पता चला कि चैनल के बारे में जानकारी से प्रतिद्वंद्वी को कोई विशेष सहायता नहीं मिलती। गणित का उपयोग करके उन्होंने ये सिद्ध किया कि प्रतिद्वंद्वी चाहे कोई भी रणनीति अपना ले, चैनल की धारण शक्ति में कमी नहीं आएगी बजाय तब के जब, प्रतिद्वंद्वी को चैनल के बारे में पता ही न हो।

अगर प्रतिद्वंद्वी सन्देश के बारे में जानकारी रखते हुए किसी रणनीति का उपयोग करके जैमिंग सिग्नल को काम में लाए तो ‘पहले से साझा की हुई चाबी’ का उपयोग करके इसके प्रभाव को निष्फल किया जा सकता है। इसका मतलब ये हुआ कि बिना इस बात की चिंता किये कि प्रतिद्वंद्वी को चैनल के बारे में जानकारी हो सकती है, डिज़ाइन करने वाले एक ऐसी पुख्ता संचार प्रणाली का निर्माण कर सकते हैं जो अत्यधिक शोर के होते हुए भी विश्वसनीय संचलन  कर सकें।

“ये कार्य काफी दिलचस्पी जगाने वाला है क्योंकि प्रचलित मॉडल को और विस्तृत करके एक समझदार जैमर या प्रतिद्वंद्वी को भी अपने दायरे में लेता है। इस तकनीक का दूसरी ऐसी संचार व्यवस्थाओं के विन्यास में भी काम में लाया जा सकता है जहाँ प्रतिद्वंद्वी मौजूद हो”, प्राध्यापक डे ने टिप्पणी की। शोधकर्ता इस अध्ययन को इस प्रकार विस्तृत करना चाहते हैं जिसमें प्रेषक और प्रतिद्वंद्वी ही नहीं, प्राप्तकर्ता भी चैनल के बारे में जानकारी रखता हो।

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