भोपाल
माइक्रोआरएनए, एक दो-धारी तलवार की वायरल संक्रमण और स्व प्रतिरक्षित बीमारियों में भूमिका

हमारे प्रतिरक्षा तंत्र के पास माइक्रोबियल संक्रमण से लड़ने के लिए आवश्यक अस्त्र-शस्त्र मौजूद हैं। हालांकि इसे सक्रिय करने के लिए केवल एक ट्रिगर की आवश्यकता होती है। जब वायरस हम पर आक्रमण करता है तो हमारा शरीर कई जीन्स के साथ उनसे लड़ता है। ये जीन्स इंटरफेरॉन और साइटोकॉइन्स नामक रसायनों का उत्पादन करते हैं। लेकिन इन जीन्स को क्या नियमित करता है और उन्हें कब अभिव्यक्त किया जाना चाहिए?

भारतीय विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान (IISER), भोपाल, के वैज्ञानिकों ने एक ऐसे अणु की खोज की है जो हमलावर वायरल एजेंट्स के विरुद्ध शस्त्रागार करने के लिए एक उत्प्रेरक निर्धारित करता है। ट्रिगर एजेंट एक छोटा राइबोन्यूक्लिक एसिड (आरएनए) अणु पाया गया जिसे miR-30e कहा जाता है। यह miRNA सामान्य आरएनए (डीएनए से संदेश ले जाने वाला अणु) की तुलना में बहुत छोटे होते हैं। अध्ययन से यह पता चला है कि miRNA को लक्षित करने से स्व प्रतिरक्षित बीमारियों जैसे सिस्टमिक ल्यूपस एरिथेमेटोसस, जिसे आमतौर पर ल्यूपस के नाम से जाना जाता है, के उपचार के विकल्प मिल सकते हैं। यह शोध सेल प्रेस से आईसाइंस पत्रिका में प्रकाशित हुआ था और इसे IISER भोपाल, इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च (ICMR), और होक्काइडो विश्वविद्यालय, जापान द्वारा फंड किया गया था।

संक्रमण के लिए प्रतिक्रिया करने वाले जीन्स को हमेशा सक्रिय रहने  की आवश्यकता नहीं होती है, लेकिन जब संक्रामक एजेंट हमला करते हैं तब  उन्हें सक्रियकृत होना चाहिए। इस प्रक्रिया की जांच और उसे ठीक रखने के लिए एक और नकारात्मक नियामक नामक एक और जीन का सेट चलन में आता है, जो सेनानी  जीन की अभिव्यक्ति को दबा देता है। हालांकि जब कोई वायरस आक्रमण करता है तो इन नकारात्मक नियामकों को दबाने की आवश्यकता होती है,जिससे प्रतिरक्षी जीन्स को वांछित प्रकार के इंटरफेरॉन और साइटोकाइन्स के उत्पादन की अनुमति मिलती है।

तो इन नियामकों को कौन नियंत्रित करता है। एक छोटा आरएनए अणु जिसे microRNA-30e (या संक्षेप में miR-30e) कहते हैं जो मास्टर नियामक की तरह काम करता है। इन miRNAs का सामान्य कार्य अन्य जीन की अभिव्यक्ति को नियमित करना है।

इन miRNAs के पास अन्य जीन्स की अभिव्यक्ति को नियंत्रित करने का एक विचित्र तरीका है। आमतौर पर, जीन डीएनए से एक संदेशक आरएनए (mRNA) द्वारा जानकारी की प्रतिलिपि बनाकर अभिव्यक्त करते हैं जिसे बाद में प्रोटीन में अनुवादित कर दिया जाता है। जीन की संदेशक आरएनए में प्रतिलिपि  बनाने के बाद miRNAs सक्रिय हो जाते हैं और फिर mRNA से जुड़ जाते हैं (एक प्रक्रिया द्वारा जिसे पूरक बंधन या पूरक आधार युग्मन कहा जाता है)। लक्षित m आरएनए को अन्य एन्ज़ाइमों द्वारा या तो नष्ट कर दिया जाता है या प्रोटीन के उत्पादन से दबा दिया।

जब कोई वायरस संक्रमित करता है तो miR-30e इसी प्रकार रोगक्षम  प्रतिक्रिया जीन्स को नियमित करता है। वायरस से संक्रमित कोशिकाओं का अवलोकन करते  समय शोधकर्ताओं को miRNA-30e की भूमिका के बारे में पहला सुराग मिला था। उन्होंने पाया कि ये संक्रमित कोशिकाएँ इन सूक्ष्म आरएनए अणुओं से परिपूर्ण थीं। इस शोध पत्र की पहली लेखिका सुश्री रिचा मिश्रा कहती हैं कि “जब हमने माइक्रो आरएनए के स्तर को देखा तो पाया कि सामान्य कोशिकाओं की तुलना में संक्रमित कोशिकाओं में miR-30e का उत्पादन अधिक मात्रा में हुआ था”।

आमतौर पर शोधकर्ता डीएनए, आरएनए और माइक्रोआरएनए अनुक्रमों के लिए एक डेटाबेस बनाकर रखते हैं। इसके अलावा, वायरस से संक्रमित कोशिकाओं में व्यक्त जीन अनुक्रमों के लिए एक विशेष डेटाबेस बनाकर रखा जाता है। शोधकर्ताओं ने जब वायरस संक्रमित कोशिकाओं के ऐसे डेटाबेस को स्कैन किया तब miR-30e हमेशा दिखाई दिया। इससे यह प्रदर्शित होता  है कि miR-30e हमेशा वायरस संक्रमित कोशिकाओं में पाया जाता है।

वायरल संक्रमण प्रतिक्रिया के लिए एक महत्वपूर्ण कारक  के रूप में  miR-30e पर ध्यान केंद्रित करने  के पश्चात, शोधकर्ताओं ने इस miRNA की अधिक प्रतियाँ बनाने के लिए अगली संवर्धित कोशिकाओं को तैयार किया। फिर उन्होंने इन संवर्धित कोशिकाओं को विभिन्न प्रकार के वायरस से संक्रमित किया। सुश्री मिश्रा कहती हैं कि “उन्होंने देखा कि miR-30e के समावेशन ने  गैर-संक्रमित कोशिकाओं की तुलना में  संक्रमित कोशिकाओं में वायरल के भार को कम कर दिया था। इसलिए, विभिन्न वायरस से संक्रमणों पर क्रमश: miR-30e से उपचारित कोशिकाओं में बढ़ी हुई प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया के हमारे प्रारम्भिक परिणामों में, अंतत: कम वायरस संक्रमण से जुड़े”। इसलिए miR-30e वायरस संक्रमण के विरुद्ध प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया बढ़ाने में आधारभूत भूमिका निभा रहा था। और वायरस के संक्रमण के खिलाफ एक चिकित्सकीय प्रत्याशी  के रूप में माना जा सकता है।

टीम ने आगे इस अणु की सटीक भूमिका की जांच की। miRNA-30e को रोगक्षम जीन के नकारात्मक नियामकों को दबाने के लिए खोजा गया, इससे प्रतिरक्षा जीन को वायरस के संक्रमण से लड़ने के लिए इंटरफेरॉन और सायटोकॉइन्स का उत्पादन करने की अनुमति मिली। इस प्रकार, यह विशिष्ट माइक्रोआरएनए,  सर्कस में  रिंग मास्टर की तरह एक  केन्द्रीय स्थिति में रह कर  प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को प्रारम्भ करता है  और नियमित करता है।

हालांकि, अगर miRNA-30e का उत्पादन और गतिविधि अनियंत्रित हो जाती है तो यह प्रक्रिया इतनी सरल नहीं है। miRNA के दीर्घकालीन उत्पादन से ऐसी स्थिति पैदा हो सकती है जहाँ प्रतिरक्षा जीन हर समय सक्रिय रहते हैं। इसके परिणामस्वरूप प्रतिरक्षा जीन शरीर में स्वस्थ ऊतकों पर हमला कर सकते हैं, जिससे स्वप्रतिरक्षित रोग हो सकते है। जब शोधकर्ताओं ने रोगग्रस्त चूहों पर प्रयोग किया, यानी स्वप्रतिरक्षित रोग चूहों के मॉडल सिस्टम और रोगियों के नमूनों में भी, तब उन्होंने चूहों और मानव रोगियों दोनों की कोशिकाओं में miRNA-30e का उत्पादन अधिक पाया।

इसलिए शोधकर्ताओं ने पाया कि जब miR-30e नकारात्मक अनुक्रमों को पृथक करता है और प्रतिरक्षा बढ़ाता है, वहीं स्व प्रतिरक्षित बीमारियों जैसे ल्यूपस (SLE) की अवस्था में कोशिकाओं में अणुओं का स्तर  बहुत महत्वपूर्ण था।

सुश्री मिश्रा कहती हैं कि “इसलिए हमने miR-30e के एक रासायनिक या संश्लेषित अवरोधक का प्रस्ताव रखा जिसे ‘एंटागोमिर’ कहा जाता है। इसके संश्लेषण के पीछे एक जटिल रसायन है जिसे ल्यूपस के संभावित नैदानिक उपचार के तौर पर पाया गया है”।

जब शोधकर्ताओं ने एंटागोमिर को रोगग्रस्त चूहों में डाला, तो इसने miR-30e की प्रचुरता को बहुत कम करके, प्रतिरक्षा जीन की अत्यधिक गतिविधि को नियंत्रित किया – इससे  स्व प्रतिरक्षित बीमारियों के निदान की महत्ता का पूर्वानुमान लगाया गया ।

यह अध्ययन इस ओर इशारा करता है कि वायरल संक्रमण और अन्य कुछ स्व प्रतिरक्षा बीमारियों का प्रतिरोध करने के लिए miR-30e के माध्यम से प्रतिरक्षा नियमन का उपयोग एक विशेषज्ञ चिकित्सकीय  और रोगनिरोधी विकल्प हो सकता है।

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