मुंबई
घातक कीटनाशक कार्बारिल का जीवाणु द्वारा निवारण

शोधकर्ताओं ने पता लगाया कि कैसे मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार करने वाला  स्यूडोमोनास नामक जीवाणु  कार्बारिल को हज़म कर जाता  है

हज़ारों जानें लेने वाली और लाखों के स्वास्थ्य को नुक़सान पहुँचाने वाली भोपाल की गैस त्रासदी की यादें तीन दशकों के बाद, अभी भी हमें त्रासती हैं।  इस संहार की ज़िम्मेदार थी एक विषाक्त गैस जो यूनियन कार्बाइड लिमिटेड के कारखाने में ‘कार्बारिल’ नामक कीट नाशक के उत्पादन में प्रयुक्त की जाती है। अफ़सोस कि बात है कि कार्बारिल के हानिकारक असर के बारे में जानकारी होते हुए भी इसका प्रयोग चालू रहा। इसको हमारे परिवेश से पूरी तरह से दूर करना या इसे कम हानिकारक वस्तुओं में विघटित करना परमावश्यक है।

भारतीय प्रौद्योगिक संस्थान मुंबई(आईआईटी मुंबई) के डॉ. फले और उनके दल ने जिनोमिकी और समवेत जीव विज्ञान संस्थान (CSIR-IGIB) दिल्ली के डॉक्टर शर्मा के सहयोग से ऐसे बैक्टीरिया की पहचान करने में महत्त्वपूर्ण सफलता प्राप्त की है जो इस कीटनाशक का पर्यावरण से सफाया का सकता है। साथ ही में उन्हें विघटन की प्रक्रिया को सटीक रूप से समझने में भी सफलता मिली है।

कार्बारिल, जो बाजार में ‘सेविन’ के नाम से बिकता है, कृषि और गैरकृषि (मैदानों, घरेलू बगीचों व सड़क के किनारे की हरियाली) सम्बंधी उपयोग में एफ़िड़्स, मकड़ी, पिस्सू, किलनी और इन्हीं जैसे विभिन्न कीड़े मकोड़ों के विनाश के लिए एक वरीय कीटनाशक की तरह इस्तेमाल किया जाता था। कार्बारिल, नसों में उत्तेजना का आवागमन करवाने वाले एंज़ाइमों को और कीटों के तंत्रिका तंत्र को निष्क्रिय कर देता है। इससे कीटों का साँस लेना दूभर हो जाता है और वे मर जाते हैं ।

दूसरे कीटनाशकों की तरह कार्बारिल भी मानव जाति व अन्य प्रजातियों के लिए हानिकारक है और कैंसर का कारण बन सकता है ।

“कम मात्रा में उपयोग करने पर त्वचा में उत्तेजन और आँखों में सूजन हो सकती है पर अधिक मात्रा में उपयोग करने पर दमा, श्वास रोग व लक़वे आसार भी दिखाई दे सकते हैं,” डॉ.फले ने स्पष्ट किया।

कार्बारिल केंचुओं को मार डालता है जिससे मिट्टी की उपजाने की क्षमता कम हो जाती है और यह मधु मक्खी जैसे परागणकारों को शिथिल और नष्ट कर देता है जिससे कृषि की उपज पर असर पड़ता है। फ़सल की कटाई के कई महीनों के बाद भी कार्बारिल के कुछ अंश मिट्टी में रह जाते हैं।

“फ़सल कटने के कई वर्षों के बाद भी कार्बारिल रह जाता है क्योंकि क्षारीय मिट्टी के मुक़ाबले अम्लीय मिट्टी में इसका विघटन बहुत धीमी गति से होता है। इसका बार बार उपयोग करने पर तो खेत में इसकी सांद्रता इतनी बढ़ जाती है कि प्राणियों के लिए घातक सिद्ध होती है,” डॉ. फले ने बताया।

विघटन के मार्ग की खोज

कार्बारिल का विघटन एक बहुचरणी प्रक्रिया है। बैकटीरिया, एंज़ाइम की सहायता से, कार्बारिल को एक बीच के  यौगिक पदार्थ में परिवर्तित कर देते हैं और शनैः शनैः अलग अलग यौगिक पदार्थों में बदलते चलते है। इस अध्ययन को हाथ में लेने के उद्देश्य के बारे में बताते हुए डॉ. फले ने बताया, “हम  चाहते थे कि खेतों में जीवाणु द्वारा कार्बारिल के विघटन की प्रक्रिया को भली भाँति समझें।”

वैज्ञानिकों को जीवाणुओं की कुछ प्रजातियों के बारे में जानकारी थी जो कार्बारिल के विघटन में समर्थ हैं। परंतु विघटन की संपूर्ण क्रिया अब तक ज्ञात नहीं थी। डॉक्टर फले के गुट ने खेतों से मिट्टी के नमूने एकत्रित किए और जीवाणुओं की नस्लों को अलग किया जो कार्बारिल का विघटन करने में समर्थ हैं। उन्हें स्यूडोमोनास नामक जीवाणु की तीन नस्लें मिलीं जो कार्बारिल को दक्षता से अलग कर  सकती थीं। शोधकर्ताओं ने विघटन के दौरान उत्पन्न  १,२ डाईहाइड्रोक्सी नेफ्थालिन जैसे बीच के उत्पादों की पहचान की और विघटन की पूरी क्रिया की व्याख्या की। उन्होंने आगे के अध्ययन में विघटन की क्रिया को समझने के लिए स्यूडोमोनास नस्ल ‘सी५पीपी (C5pp)’ का प्रयोग किया।

प्रारम्भ में, जीवाणु एंज़ाइम कार्बारिल पर कार्रवाई करके ‘१-नेफ्थॉल’ और मिथाईलामाईन बनाता है।  १-नेफ्थॉल जीवाणुओं के लिए कार्बन का और मिथाईलामाईन नाईट्रोजन के स्रोत का काम करता है। इस प्रकार कार्बारिल, जो दूसरों के लिए एक विषाक्त पदार्थ है, जीवाणुओं के लिए एक खाद्य पदार्थ और ऊर्जा के स्रोत का काम करता है। वैसे तो बहुत से जीवाणु कार्बारिल को विघटित कर सकते हैं पर इस अध्ययन में वर्णित स्यूडोमोनास की नस्लें अधिक सक्षम पाई गईं हैं। वे कीटनाशक को १२-१३ घंटों में विघटित कर सकते हैं और वैज्ञानिक अध्ययनों में वर्णित अन्य जीवाणुओं के मुक़ाबले ४-५ गुना तेज़ी से काम करते हैं।

आख़िर इस उत्तम कार्य कुशलता का राज़ क्या है? स्यूडोमोनास की नस्ल सी५पीपी (C5pp) के जीनोम का अध्ययन करने पर यह पता चला कि कार्बारिल के विघटन के ज़िम्मेदार जीन, तीन प्रकार के विभिन्न सेट में योजित होते हैं जो ‘ओपेरोन’ कहलाते हैं ।

इन जीवाणुओं को यह जीन, स्यूडोमोनास की रालस्टोनिया या किसी और प्रजाति से मिली होगी, जो हानिकारक  यौगिकों को विघटित करने में समर्थ हैं। जीन पदार्थों का एककोशीय और बहुकोशिकीय जीवों के बीच इस प्रकार क्षैतिज चलन ‘क्षैतिज जीन स्थानांतरण’ कहलाता है जो ‘लंबवत जीन स्थानांतरण’ से अलग है जिसमें माता पिता से बच्चों में स्थानांतरण होता है ।

“प्रकृति स्वयं अपनी प्रयोगशाला की तरह काम करती है ।समूचे परितंत्र के जीव एक दूसरे पर प्रभाव डालते हैं और अपने लाभ और अपनी उत्तरजीविता के लिए जीन पदार्थों का विनिमय करते हैं,”  डॉ. फले ने समझाया।

इस चतुर जीवाणु ने दूसरे जीवाणुओं से ऐसे जीन का समावेश किया, जो विभिन्न सुगंधमय यौगिक और कार्बारिल को आंशिक रूप से या पूर्ण रूप से विघटित कर सकते हैं, और इन जीन को व्यवस्थित करके इनकी सहायता से कार्बारिल को खाद्य पदार्थ की तरह उपयोग करके अपने को बचाया।

स्यूडोमोनास: एक होशियार जीवाणु

जीवाणुओं को केवल विषाक्त कार्बारिल का ही सामना नहीं करना पड़ता। जीवाणु के अंदर विघटन से उत्पन्न १-नेफ्थॉल कार्बारिल से कहीं अधिक विषैला होता है। तो जीवाणु कैसे इसका सामना करके जीवित रह पाते हैं? इसकी छान बीन करने पर कुछ रोचक तथ्य सामने आए ।

स्यूडोमोनास जैसे जीवाणु के भीतर दो झिल्लियाँ होती हैं, एक बाहरी और दूसरी अंदरूनी, जिनके बीच में एक कक्ष होता है जिसे पेरिप्लास्म कहते हैं। कीटनाशक कार्बारिल का १-नेफ्थॉल में विघटन इसी पेरिप्लास्म में होता है। अंदरूनी झिल्ली, मुख्य भाग यानी साइटोप्लास्म को, १-नेफ्थॉल, जो सांद्रता अधिक होने पर घातक और कम होने पर कम हानिकारक होती है, से बचाती है। यह १-नेफ्थॉल को धीमी गति से साइटोप्लास्म में प्रवेश करने देती है। साइटोप्लास्म के अंदर १-नेफ्थॉल पहले पानी में घुलनशील विषहीन यौगिक में और बाद में कार्बनिक अम्ल में बदल जाता है जिसका कोश भक्षण कर लेता है और अमीनो ऐसिड, न्यूक़्लीयोटाइड और शर्करा का संश्लेषण करता है। इस प्रकार, विघटन करते समय कोष्ठीकरण, इस जीवाणु की एक और रणनीति है ।

स्यूडोमोनास की इन नस्लों का उपयोग अत्यधिक दूषित खेतों में कीटनाशकों को नष्ट  करने के लिए किया जा सकता है। वे उद्योग, जिनमें कार्बारिल या १-नेफ्थॉल का उत्पादन या उपयोग किया जाता है, उनमें भी इनका उपयोग  मलजल या दूषित जल के उपचार के लिए किया जा सकता है।

“हमने जिन नस्लों को अलग किया है वे वन्य एवं नैसर्गिक है और आनुवंशिक रूप से संशोधित जीव नहीं हैं अतः उनका उपयोग बिना रोक टोक के किया जा सकता है,”  शोधकर्ताओं ने बताया।

कीटनाशकों द्वारा प्रदूषण और उससे स्वास्थ्य को पहुँच रही हानि, विश्व में बढ़ती हुई चिंता का विषय है। डॉ. फले और उनके गुट के द्वारा किया गया शोध एक घातक कीटनाशक को दूर करने के लिए एक नैसर्गिक तरीक़ा बताता है। विघटन की प्रक्रिया और जीवाणुओं के तंत्र के बारे में जानकारी से आनुवंशिक रूप से संशोधित जीव की अभिकल्पना में मदद मिलेगी जिससे विशिष्ट कीटनाशकों द्वारा जनित प्रदूषण दूर करने विधि समझ पाएँगे।

यही नहीं, स्यूडोमोनास पौधों की बढ़त में भी सहायक पाए गए हैं। शोधकर्ताओं का मानना है कि अलग की हुई नस्लों से कई प्रकार के एंज़ाइम और प्रोटीन, कार्बनिक अम्ल और मेटाबोलाइट्स बनते होंगे जो पौधों की बढ़त में वर्धन के कारक हो सकते हैं।

“हम अब इन पौधों की पैदावार की बढ़त की गतिविधियों का अध्ययन कर रहे हैं,”  कहकर डॉ. फले ने अपनी बात समाप्त की। 

 

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