मुंबई
चिर-परिचित भौतिकी पर कृत्रिम प्रज्ञा आधारित अनूठे एल्गॉरिद्म, प्रौद्योगिकी को गति दे  सकते हैं

अन्स्प्लेश छायाचित्र : साइंस इन एचडी 

प्राकृतिक पदार्थ अपने स्वाभाविक स्वरूप में अभियांत्रिकी उद्देश्यों के लिए सदैव उपयोगी नहीं होते हैं, किंतु वैज्ञानिक इन्हें उपयोगी गुण प्रदान करने वाले पदार्थ के रूप में संशोधित कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, संचार प्रौद्योगिकी में, वैज्ञानिक विभिन्न तरंगदैर्ध्य वाली प्रकाश अथवा विद्युत चुम्बकीय तरंगों की पदार्थों के साथ होने वाली अंत:क्रिया (इंटर-एक्शन) को परिवर्तित करने के लिए इनके माप, आकार, और अभिविन्यास में परिवर्तन करते हैं। मेटा-सतहों अर्थात विशिष्ट अनुप्रयोगों के लिए निर्मित संशोधित पदार्थों की नैनो-मीटर मोटाई की सतह, की निर्माण विधि में पिछले कुछ वर्षों में प्रगति हुई है। वैज्ञानिक अब प्रकाशीय लैंसों जैसे स्थूल पदार्थों के स्थान पर नैनो आकार की मेटा-सतहों की सहायता से प्रकाश के गुण-धर्म को परिवर्तित कर सकते हैं।

मेटा-सतहों एवं प्रकाश की अंत:क्रिया विद्युत-चुम्बकत्व के नियमों की प्रकृति के द्वारा संचालित होती है, जिसे भौतिक-विज्ञानी 'मैक्सवेल समीकरण' नामक चार समीकरणों के संग्रह के द्वारा व्यक्त करते हैं। मेटा-सतहों के निर्माण में लगे वैज्ञानिक तकनीकी नवाचारों हेतु प्रकाश-पदार्थ अंत:क्रिया (लाइट-मैटर इंटर-एक्शन) के उपयोग के लिए संगणकों पर इन समीकरणों को हल करते हैं। निर्मित सतहों की जटिलता पर निर्भर इन गणनाओं में घंटों से लेकर कुछ दिनों तक का समय लग सकता है। एक नवीन अध्ययन में, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, मुंबई (आईआईटी बॉम्बे) के शोधकर्ताओं ने मेटा-सतहों की प्रकाश के साथ अंत:क्रिया के अध्ययन हेतु एक नूतन संख्यात्मक विधि को विकसित किया है। साइंटिफिक रिपोर्ट्स नामक शोध-पत्रिका में प्रकाशित इस अध्ययन को विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार तथा औद्योगिक अनुसंधान एवं परामर्श केंद्र, आईआईटी मुंबई द्वारा वित्त पोषित किया गया था।

अपनी संख्यात्मक विधि में निहित शक्ति के प्रदर्शन हेतु एक उदाहरण तंत्र के रूप में, शोधकर्ताओं ने दो स्वर्ण परतों के मध्य एक सिलिकॉन परत को स्थापित कर एक मेटा-सतह निर्मित की। उन्होंने कुछ एक नैनोमीटर मोटाई की सबसे ऊपरी स्वर्ण परत की ज्यामितीय आकृतियों में संशोधन करके चार भिन्न-भिन्न युक्तियों की रचना की। इन चारों युक्तियों की मोटाई में परिवर्तन करते हुये, उन्होंने कई और मेटा-सतहें निर्मित की।

शोधकर्ताओं ने गणितीय रूप से अध्ययन किया कि प्रत्येक मेटा-सतह अपने ऊपर प्रकाश के आपतित होने पर इसके 'ध्रुवीकरण' नामक एक विशिष्ट गुण को कैसे प्रभावित करती है। आने वाले प्रकाश पुंज के साथ अंत:क्रिया करने के अतिरिक्त, मेटा-पदार्थ प्रकाश- पुंज की तीव्रता को भी परिवर्धित करते हैं।

"यह परिवर्धन (एम्प्लीफिकेशन) सतह पर आपतित प्रकाश में छोटे से छोटे परिवर्तन का पता लगाना आसान बनाता है," इस अध्ययन के प्रथम शोध लेखक, श्री अभिषेक मल्ल कहते हैं।

शोधकर्ताओं ने संगणक पर आभासी रूप से (वर्चुअली) एवं कुछ ध्रुवीकरण के साथ प्रकाश आपतित किया तथा विपरीत ध्रुवीकरण वाला प्रकाश उत्पन्न करने का लक्ष्य रखा। "ऐसा करने के लिए हमें प्रत्येक मेटा-सतह पर आगम (इनपुट) के लिए तब तक मैक्सवेल समीकरणों को हल करना होगा, जब तक हमें वांछित निर्गम (आउटपुट) प्राप्त नहीं होता," अभिषेक कहते हैं। हल तक पहुँचाने वाली संख्यात्मक गणनायें बहुत सारा समय और संगणक शक्ति का उपभोग करती हैं।

"इसके अतिरिक्त युक्ति प्रक्रिया मानवीय सहज ज्ञान के द्वारा सीमित होती है, और समीकरणों को शुद्धता से हल करने के लिए अंतर्ज्ञान को विकसित कर पाना अविश्वसनीय रूप से कठिन है," यह कहना है प्राध्यापक अंशुमन कुमार का, जो इस अध्ययन के सह-लेखक हैं। इन परिणतियों को दूर करने के लिए, वे मैक्सवेल समीकरणों को हल किए बिना प्रकाश और मेटासतहों के मध्य अंत:क्रिया का अध्ययन करने हेतु एक विधि बनाना चाहते थे।

शोधकर्ताओं ने एक एल्गॉरिद्म विकसित किया है जो बताता है कि मेटा-सतह में सबसे ऊपरी स्वर्ण परत की कौन सी ज्यामितीय युक्ति वांछित निर्गत पुंज उत्पन्न करने के लिए सबसे उपयुक्त है। एल्गॉरिद्म प्रकाशीय प्रतिक्रिया के आधार पर ज्यामितीय युक्तियों की रचना करना सीखता है एवं वास्तविक युक्ति से समीपता के आधार पर इनमें उत्तरोत्तर सुधार करता है। उन्होंने उत्पन्न ज्यामितियों के लिए स्वतंत्र रूप से मैक्सवेल के समीकरणों को हल किया और सत्यापित किया कि एल्गॉरिद्म ने प्रकाशीय प्रतिक्रिया की सटीक भविष्यवाणी की थी।

यह तकनीक कृत्रिम प्रज्ञा अर्थात आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) का एक रूप है।

"इस प्रकार की कृत्रिम प्रज्ञा (एआई) आधारित तकनीकें हमारी क्रय- सूचियों से लेकर वीडियो अनुशंसाओं, ऑनलाइन प्रचार, सहायता प्राप्त चिकित्सा निदान, स्वचालित कारों और गवेशकों (सर्च इंजिन) तक आज सर्वत्र व्याप्त हैं," प्राध्यापक कुमार बताते हैं।

मैक्सवेल समीकरणों को हल करना चूंकि एक समय लेने वाला कार्य है, दल ने मैक्सवेल समीकरणों के स्वतः समाधान के सदृश एक और कृत्रिम प्रज्ञा (एआई) एल्गॉरिद्म बनाया। जब वे नैनोमीटर आकार की स्वर्ण- परत की ज्यामिति को एल्गॉरिद्म में अंकित करते हैं, तो इससे संबंधित प्रकाशीय प्रतिक्रिया निर्गम (आउटपुट) में दिखेगी।

शोधकर्ताओं ने दोनों एल्गॉरिद्म को संयोजित किया, जिसने परिणामत: वांछित प्रतिक्रिया हेतु सटीक ज्यामितीय आकृति की पहचान करने, एवं मैक्सवेल समीकरणों के अनुरूप इसकी पुष्टि करने की सम्पूर्ण प्रक्रिया को चलाया। संयोजित उपाय ज्यामितीय आकृति के सटीक अनुमान के लिए मात्र 11 मिलीसेकंड्स लेता है। "जब एल्गॉरिद्म की कार्य-प्रणाली हमारी अपेक्षा के अनुरूप होती है, हम इसमें मात्र प्रकाशीय प्रतिक्रिया को अंकित करते हैं, और परिणामत: अपेक्षित ज्यामिति इसकी पुष्टि के साथ सामने आती है," अभिषेक स्पष्ट करते हैं। वर्तमान में, वे युक्तियाँ जो वैसा ही प्रदर्शन करती हैं जैसा कि उनकी मेटा-सतहें, एक मिलीमीटर से भी अधिक मोटी हैं। "यद्यपि हमारे एल्गॉरिद्म के उपयोगकर्ता अपेक्षित किसी भी मोटाई को निर्दिष्ट कर सकते हैं" वह कहते हैं।

शोधकर्ताओं ने वर्तमान अध्ययन में विभिन्न प्रकार की केवल चार ज्यामितीय आकृतियों का उपयोग किया है। "यद्यपि, हमारा कृत्रिम प्रज्ञा आधारित एल्गॉरिद्म भी नवीन मेटा-सतह युक्तियों को निर्मित कर सकता है, जिसे हमने निर्दिष्ट नहीं किया है," प्राध्यापक कुमार बताते हैं। यह विशेषता बहुविकल्पी अनुप्रयोगों हेतु मेटा-सतह युक्तियों को उत्पन्न करने में उपयोगी हो सकती है।

"वर्तमान में हम अपने एल्गॉरिद्म को और दृढ़ आवश्यकताओं, जिन्हें उपयोगकर्ता निर्दिष्ट करना चाहेंगे, के साथ काम करने हेतु कार्यान्वित कर रहे हैं। हम इन मेटा-सतहों को अत्यंत पतले एवं हल्के रूप में भी प्राप्त करना चाहते हैं, ताकि श्रेष्ठतम प्राप्त कर सकें," वह विदा लेते हुए कहते हैं।

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