मुंबई
बेहतर थर्मोइलेक्ट्रिक उपकरण बनाने के बारे में प्रकाशिकी (Optics ) से प्राप्त नई समझ

थर्मोइलेक्ट्रिक उपकरणों की नई अभिकल्पना से शक्ति और कार्यक्षमता दोनों बढ़ाई जा सकती हैं

इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का उपयोग करते समय ऊष्मा की उत्पत्ति एक बड़ी समस्या है। इससे न केवल वैद्युतीय ऊर्जा का ह्वास होता है बल्कि उपकरण को भी क्षति पहुँच सकती है। थर्मोइलेक्ट्रिक पदार्थों, जो ऊष्माको विद्युतमें और विद्युत् को ऊष्मा में बदल सकते हैं, का उपयोग करके उत्पन्न हुई ऊष्मा को वापस विद्युत् में बदल सकते हैं जिससे ऊर्जा की बचत होगी और उपकरणों को अधिक गरम होने से बचा सकेंगे।

एक हालिया अध्ययन में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई के प्राध्यापक भास्करन मुरलीधरन और स्वर्णदीप मुखर्जी ने इस जनित ऊष्मा का उपयोग करने के लिए थर्मोइलेक्ट्रिक जनरेटर के डिज़ाइन के लिए एक नई रूपरेखा का प्रस्ताव रखा है। उनका कहना है कि उनके इस नए अभिकल्प से जेनेरेटर के द्वारा उत्पन्न ऊर्जा को दुगना किया जा सकता है और आज की समरूप तकनीकों के मुकाबले १० प्रतिशत अधिक कार्यक्षमता प्राप्त की जा सकती है। यह अध्ययन ‘फिजिकल रिव्यू एप्लाइड’ जर्नल में प्रकाशित हुआ और भारतीय अंतरिक्ष अनुसन्धान संस्थान द्वारा वित्त पोषित किया गया।

थर्मोइलेक्ट्रिक उपकरणों की ऊष्मा को विद्युत् में बदलने की क्षमता को फिगर-ऑफ़-मेरिट की सहायता से मापा जाता है। उपलब्ध ऊष्मा के अधिकाधिक हिस्से को विद्युत् में बदल पाना उपकरण की सक्षमता का मापदंड है।

“एक उत्तम थर्मोइलेक्ट्रिक जनरेटर को उच्च रूपांतर क्षमता पर उच्च शक्ति का उत्पादन करना चाहिए। परन्तु इन दोनों मापदंडों को  कहाँ तक बढ़ाया जा सकता है इसकी भी एक सीमा है। इनमें से एक मापदंड को अधिक बढ़ाने की कोशिश करने से दूसरे पर प्रभाव पड़ेगा, ” ऐसा प्राध्यापक मुरलीधरन ने समझाया। 

अध्ययनों से ज्ञात हुआ है कि नैनो मेटेरियल का उपयोग करके हम फिगर-ऑफ़-मेरिट को काफी बढ़ा सकते हैं। परन्तु इन नन्हें उपकरणों से उच्च शक्ति का उत्पादन करना काफी चुनौतीपूर्ण है। कार्य क्षमता को ज़्यादा बढ़ाने से अधिकतम शक्ति नहीं मिल पाएगी और अगर शक्ति को अधिकतम बनाने की कोशिश करें तो कार्य क्षमता पर असर पड़ेगा।

कार्य क्षमता और शक्ति के उत्पादन के बीच के ट्रेड ऑफ को समझ पाना और ऑप्टिमाइज़ करने का तरीका निकाल पाना, यही इस अध्ययन का उद्देश्य है। प्रस्तावित डिज़ाइन में, अर्धचालक नैनो मेटेरियल जो कि एल्युमीनियम, गैलियम और आर्सेनिक के महीन परतों से व्यवस्थित यौगिकों से बने होते हैं, का इस्तेमाल किया गया है। आप्टिक्स में पाई जाने वाली फाब्री-पेरो कैविटी से प्रेरित प्रस्तुत अभिकल्प, वर्तमान तरीकों से बेहतर विधि है। फाब्री-पेरो कैविटी में, दो परावर्तन वाले दर्पण एक दूसरे के सामने रखे होते हैं। ये एक ऑप्टिक फ़िल्टर की तरह काम करते हैं और विशिष्ट आवृत्ति की प्रकाश की तरंग को बिना उनकी प्रबलता को घटाए निकलने देते हैं।

पिछले अध्ययनों में दिखाया गया है कि अगर कोई थर्मोइलेक्ट्रिक पदार्थ केवल एक विशिष्ट ऊर्जा फैलाव वाले इलेक्ट्रान को ही अपने अंदर से गुजरने देता है और अन्य इलेक्ट्रानों को रोक लेता है तब ये एक निर्दिष्ट शक्ति पर अधिकतम क्षमता प्राप्त कर सकते हैं। नैनो स्ट्रक्चर्स, जो रेज़ोनेन्ट टनलिंग डिवाइस (RTD) कहलाते हैं, में ऐसे गुण पाए जाते हैं और इनका उपयोग थर्मोइलेक्ट्रिक उपयोगों में किया जाता है।

प्रस्तुत अध्ययन का उद्देश्य रेज़ोनेन्ट टनलिंग डिवाइस (RTD) का उपयोग करके थर्मोइलेक्ट्रिक उपकरण का डिज़ाइन करना है जिनकी कार्यक्षमता, परंपरागत रेज़ोनेन्ट टनलिंग डिवाइस (RTD) के मुकाबले, अधिकतम शक्ति पर बहुत ज़्यादा  होती है। इसे पाने के लिए ऐसे थर्मोइलेक्ट्रिक उपकरण के डिज़ाइन का प्रस्ताव है जिनकी बनावट फाब्री-पेरो कैविटी की तरह होती है। हमारे इस उपकरण में दो पदार्थों की परतों के बीच एक रेज़ोनेन्ट टनलिंग डिवाइस (RTD) को रखा जाता है जो एक इलेक्ट्रॉन के लिए एक अवरोध की तरह काम करती है। ये अवरोध दर्पण के जोड़ों के समान होता है, जैसा कि ऑप्टिकल फाब्री-पेरो की व्यवस्था में लगता है। यह उपकरण भी ऑप्टिकल फाब्री-पेरो कैविटी के सिद्धांत पर काम करता है , जिसमें  कुछ निर्धारित ऊर्जा वाले इलेक्ट्रॉन ही गुजर पाते है,” डॉक्टर मुख़र्जी कहते हैं।

इस अध्ययन से पता चलता है कि अवरोधों की ऊँचाई दर्पणों के अपवर्तक सूचकांक ( refractive index) के अनुरूप होती है। इनसे प्राप्त परिणामों से वैज्ञानिकों को कैविटी अवरोधों के डिज़ाइन के नियम सुझाने में सहायता मिली है। इन निर्देशों आधार पर वैज्ञानिकों ने दो नमूने तैयार करके उनके व्यवहार का ब्यौरेवार संगणन किया है.

“कुछ अर्धचालक उपकरणों पर हमारे डिज़ाइन के नियमों का उपयोग करके हमने उच्च रूपांतरण दक्षता  (conversion efficiency) पर थर्मोइलेक्ट्रिक शक्ति में बहुत बढ़ोत्तरी पाई,” श्री मुख़र्जी ने कहा।

कंप्यूटर सिमुलेशन के द्वारा शोधकर्ताओं ने दिखाया कि उनका डिज़ाइन, इसी प्रकार के दूसरे डिज़ाइनों के मुकाबले काफी बेहतर हैं और ये भी पता लगाया कि किन हालातों में ये बेहतर परिणाम देंगे।

“हमारा विश्वास है कि हमारे इस अध्ययन से विभिन्न उपयोगों के लिए सॉलिड स्टेट डिवाइसों के डिज़ाइन का रास्ता खुल गया है जो आज की तकनीकों से बनाए जा सकते हैं,” प्राध्यापक मुरलीधरन ने अध्ययन की संभावनाओं के बारे में बताते हुए कहा। 

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