मुंबई
सुरक्षित सड़कों की ओर

दुनिया में सबसे अधिक सड़क दुर्घटनाओं से होने वाली मौतें भारत में होती हैं। सड़क दुर्घटनाओं में प्रतिदिन लगभग 29 बच्चों की मौत हो जाती है और प्रति वर्ष लगभग 1.5 लाख मौतें सड़क दुर्घटनाओं में होती हैं। सड़क दुर्घटनाओं के प्रमुख कारक अविवेकपूर्ण वाहन चालन (रैश ड्राइविंग), बुरी सड़क संरचना, और कमजोर यातायात कानून प्रवर्तन हैं। इसके अतिरिक्त, भारतीय वाहनों में चालकों के लिए उच्च सहायता प्रणाली जिसे ए.डी.ए.एस (एडवान्सड ड्राइवर एस्सिट सिस्टम) कहा जाता है , का भी अभाव है जो वाहन चालन में मानवीय त्रुटियों को न्यूनतम कर सड़क दुर्घटनाओं को कम करती है। स्वचालित रोधक (ब्रेक), टक्कर की चेतावनी, और अपने पथ पर चलते रहने में सहायक जैसी सुविधाओं के साथ ए.डी.ए.एस विकसित देशों में वाहनों में पाए जाने वाला एक सामान्य अभिलक्षण है।

हाल ही में किये गये एक अध्ययन में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई (आईआईटी बॉम्बे) की डॉ. अन्ना चार्ली और प्रोफेसर टॉम मैथ्यू ने उन कारकों का विश्लेषण किया जो सड़क दुर्घटनाओं का कारण बनते हैं। इससे भारतीय वाहन चालन परिस्थितियों के अनुकूल ए.डी.ए.एस को विकसित करने में सहायता मिलेगी। यह अध्ययन ट्रांसपोर्टेशन लेटर्स पत्रिका में प्रकाशित हुआ और इसे सिविल अभियांत्रिकी (सिविल इंजीनियरिंग) विभाग, आईआईटी बॉम्बे द्वारा आंशिक रूप से आर्थिक सहयोग दिया गया।

पश्चिमी देशों में सफलतापूर्वक परीक्षित ए.डी.ए.एस को सीधे भारतीय बाज़ार में नहीं लाया जा सकता है। इन प्रणालियों की रचना किसी विशेष स्थान के चालक व्यवहार, सड़क चिन्ह और सड़क संरचना के अनुसार की जाती है। “भारत में चालक व्यवहार पश्चिमी देशों से बहुत भिन्न है। यहाँ अधिकतम दुर्घटनाएं आकस्मिक पथ बदलने की पैंतरेबाज़ी और तेजी से आगे निकलने की होड़ के कारण होती हैं, जबकि वाहन चालन अनुशासन विदेशों में अधिकतर बनाए रखा जाता है। इसलिए भारत में खतरों से भरे वाहन चालन को एक विशिष्ट पहचान दी जानी चाहिए, ” डॉ. चार्ली, सड़क सुरक्षा विशेषज्ञ, स्पष्ट करती हैं।

पिछले अध्ययनों से भिन्न, शोधकर्ताओं ने चालक व्यवहार, सड़क की वक्रता, खड़ी ढलानों की उपस्थिति, और दिन का कौन सा पहर जैसे कई कारकों की एक विस्तृत श्रृंखला का विश्लेषण किया है जो सड़क सुरक्षा को प्रभावित करते हैं। उन्होंने 94 किलोमीटर लंबे मुंबई-पुणे द्रुतगती मार्ग को अध्ययन के लिए चुना, जिसमें विभिन्न प्रकार के सड़क भूभाग शामिल हैं और जहाँ बारम्बार होने वाली सड़क दुर्घटनाओं का एक लंबा इतिहास रहा है। उन्होंने विशिष्ट चालक व्यवहार का अध्ययन करने के लिए द्रुतगामी मार्ग पर यात्रा करने वाले 23 कार चालकों की स्थिति, गति और त्वरण जैसे वास्तविक काल आंकड़ों को लेख्यांकित किया। फिर उन्होंने श्रमसाध्यता से 188 खंडों पर औसत चालक व्यवहार का अध्ययन किया - प्रत्येक खंड द्रुतगति मार्ग पर 1 किलोमीटर लंबा था और इसका उपयोग विभिन्न सड़क भूभागों पर हुई पिछली सड़क दुर्घटनाओं के आंकड़ों को समझाने के लिए किया गया।

शोधकर्ताओं ने अपने अवलोकन में कुछ प्रतिरूप पाये। अधिकतम पिछली दुर्घटनाएँ सड़क के ऐसे खंडों पर घटित हुईं थीं जहाँ सड़क घुमावदार और सपाट थीं या नीचे की ओर ढलान लिए थीं। ऐसे खंडों पर चालक बहुधा अपने पथ या गति बदलते हैं। शोधकर्ताओं ने ये भी पाया कि अधिक दुर्घटनाएँ खड़ी निचली ढलान पर होती थीं , भले ही चालक कैसे भी वाहन चलायें। दुर्घटनाओं की भविष्यवाणी करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण सड़क सुरक्षा कारकों की पहचान करना आवश्यक था। इसके लिए उन्होंने प्रत्येक कारक और पिछली सड़क दुर्घटनाओं के आंकड़ों के बीच ‘सहसंबंध’ की गणना की - यानी, यह पता लगाना था कि कुछ कारकों के प्राय: सड़क दुर्घटनाओं का कारण बनने की संभावना कितनी थी।

शोधकर्ताओं ने निष्कर्ष निकाला कि चालन गति में लगातार बदलाव असुरक्षित था, विशेष रूप से रात्रि पहर में। और दिन के पहर में अकस्मात पथ बदलना असुरक्षित था। खड़ी निचली ढलान की सड़कें अधिक दुर्घटना-प्रवण थीं। उन्होंने इन कारकों का उपयोग सड़क दुर्घटना परिदृश्यों की प्रागोक्ति के लिये किया, जिसे उन्होंने पिछली सड़क दुर्घटनाओं के आंकड़ों का उपयोग करके सत्यापित किया। पारंपरिक रूप से सड़क सुरक्षा विश्लेषण ‘प्रतिक्रियाशील’ प्रकार से किया जाता है और इसमें पिछली सड़क दुर्घटनाओं के तथ्यों का उपयोग किया जाता है, जिन्हें प्रायःमहत्वपूर्ण विवरण के बिना अनुचित रूप से प्रतिवेदित किया जाता है। इसलिए इसके स्थान पर हमने ‘सक्रिय’ दृष्टिकोण का उपयोग किया है जिससे यातायात और चालक व्यवहार आँकड़ों का प्रयोग करते हुए प्रतिनिधि घटनाओं (जिनसे संभावित दुर्घटना के संकेत मिले) की पहचान हो सके, ” प्रो. मैथ्यू कहते हैं। “हमारी प्रणाली कम विश्वसनीय सड़क दुर्घटना के आंकड़ों की आवश्यकता को समाप्त करती है और इसे नयी यातायात सुविधाओं के लिए उपयोग किया जा सकता है, जहां ऐसे तथ्य उपलब्ध नहीं है।" उनके प्रतिमान (माॅडल) का उपयोग संकटप्रद चालक व्यवहार की अवसीमा (थ्रेसहोल्ड) तय करने के लिये और ए.डी.ए.एस को स्वचालित प्रत्युपाय करने में सहायता देने के लिये किया जा सकता है।

हालांकि यह अध्ययन एक द्रुतगामी मार्ग पर किया गया था, लेकिन परिणाम शहर की सड़कों तक विस्तारित किये जा सकते हैं। “महत्वपूर्ण कारकों पर हमारे निष्कर्ष, और वे कैसे संकटप्रद हो सकते हैं, सभी प्रकार की सड़कों पर लागू होते हैं क्योंकि चालक व्यवहार समान है। केवल अवसीमा (थ्रेसहोल्ड) अलग होगी,” डॉ.चार्ली कहती हैं। “उदाहरण के लिए, किसी शहर के भीतर के प्रतिकूल , द्रुतगामी मार्ग पर वाहनों को बहुत तेज़ गति से यात्रा करने की अनुमति है। इसलिए चालन प्रदर्शन की अवसीमा (थ्रेसहोल्ड) इसे ध्यान में रखते हुए की गई है," वह आगे बताती हैं।

शोधकर्ता वर्तमान में अपने पूर्वानुमान प्रतिमान में सुधार कर रहे हैं। “हमने मुख्य रूप से यात्री कारों का अध्ययन किया है, किन्तु चालक व्यवहार वाहन के प्रकार पर निर्भर करता है। एक प्रकार का व्यवहार जो कार चालकों के लिए महत्वपूर्ण है, वह दोपहिया या ट्रक चालकों के लिए नहीं होगा। हम बारिश और दृश्यता जैसे पर्यावरणीय मापदंडों का भी अध्ययन करना चाहते हैं,” डॉ. चार्ली कहती हैं। दिलचस्प बात यह है कि संयुक्त राष्ट्र ने 2010-20 को सड़क सुरक्षा के लिए कार्यवाही का दशक घोषित किया था। अनुसंधान में भी किये जा रहे ऐसे कई प्रयासों के साथ, हमें भविष्य में अधिक सुरक्षित सड़कों की उम्मीद है।

Hindi

Recent Stories

लिखा गया
Industrial Pollution

हाइड्रोजन आधारित प्रक्रियाओं में उन्नत उत्प्रेरकों और नवीकरणीय ऊर्जा के समावेश से स्टील उद्योग में कार्बन विमुक्ति के आर्थिक और औद्योगिक रूप से व्यवहार्य समाधानों का विकास ।

लिखा गया
Representative image of rust: By peter731 from Pixabay

दो वैद्युत-रासायनिक तकनीकों के संयोजन से, शोधकर्ता औद्योगिक धातुओं पर लेपित आवरण पर संक्षारण की दर को कुशलतापूर्वक मापने में सफल रहे।

लिखा गया
प्रतिनिधि चित्र श्रेय: पिक्साहाइव

उत्तम आपदा प्रबंधन एवं आर्थिक सुरक्षा की दृष्टि से, राज्य की वित्त व्यवस्था पर आपदा के प्रभाव का आकलन करने हेतु ‘डिजास्टर इंटेंसिटी इंडेक्स’ का उपयोग करते शोधकर्ता

लिखा गया
Lockeia gigantus trace fossils found from Fort Member. Credit: Authors

ಜೈ ನಾರಾಯಣ್ ವ್ಯಾಸ್ ವಿಶ್ವವಿದ್ಯಾಲಯದ ಸಂಶೋಧಕರು ಜೈಸಲ್ಮೇರ್ ನಗರದ ಬಳಿಯ ಜೈಸಲ್ಮೇರ್ ರಚನೆಯಲ್ಲಿ ಲಾಕಿಯಾ ಜೈಗ್ಯಾಂಟಸ್ ಪಳೆಯುಳಿಕೆಗಳನ್ನು ಕಂಡುಹಿಡಿದಿದ್ದಾರೆ. ಇದು ಭಾರತದಿಂದ ಇಂತಹ ಪಳೆಯುಳಿಕೆಗಳ ಮೊದಲ ದಾಖಲೆ ಮಾತ್ರವಲ್ಲ, ಇದುವರೆಗೆ ಪತ್ತೆಯಾದ ಅತಿದೊಡ್ಡ ಲಾಕಿಯಾ ಕುರುಹುಗಳು.

लिखा गया
ಇಂಡೋ-ಬರ್ಮೀಸ್ ಪ್ಯಾಂಗೊಲಿನ್ (ಮನಿಸ್ ಇಂಡೋಬರ್ಮಾನಿಕಾ). ಕೃಪೆ: ವಾಂಗ್ಮೋ, ಎಲ್.ಕೆ., ಘೋಷ್, ಎ., ಡೋಲ್ಕರ್, ಎಸ್. ಮತ್ತು ಇತರರು.

ಕಳ್ಳತನದಿಂದ ಸಾಗಾಟವಾಗುತ್ತಿದ್ದ ಹಲವು ಪ್ರಾಣಿಗಳ ನಡುವೆ ಪ್ಯಾಂಗೋಲಿನ್ ನ ಹೊಸ ಪ್ರಭೇದವನ್ನು ಪತ್ತೆ ಮಾಡಲಾಗಿದೆ.

लिखा गया
ಸ್ಪರ್ಶರಹಿತ ಬೆರಳಚ್ಚು ಸಂವೇದಕದ ಪ್ರಾತಿನಿಧಿಕ ಚಿತ್ರ

ಸಾಧಾರಣವಾಗಿ, ಫೋನ್ ಅನ್ನು ಅನ್ಲಾಕ್ ಮಾಡುವಾಗ ಅಥವಾ ಕಛೇರಿಯಲ್ಲಿ ಬಯೋಮೆಟ್ರಿಕ್ ಸ್ಕ್ಯಾನರುಗಳನ್ನು ಬಳಸುವಾಗ, ನಿಮ್ಮ ಬೆರಳನ್ನು ಸ್ಕ್ಯಾನರಿನ ಮೇಲ್ಮೈಗೆ ಒತ್ತ ಬೇಕಾಗುತ್ತದೆ. ಬೆರಳಚ್ಚುಗಳನ್ನು ಸೆರೆಹಿಡಿಯುವುದು ಹೀಗೆ. ಆದರೆ, ಹೊಸ ಸಂಶೋಧನೆಯೊಂದು ಈ ಪ್ರಕ್ರಿಯೆಯನ್ನು ಇನ್ನಷ್ಟು ಸ್ವಚ್ಛ, ಸುಲಭ ಮತ್ತು ಹೆಚ್ಚು ನಿಖರವಾಗಿಸುವ ವಿಧಾನವನ್ನು ರೂಪಿಸಿದೆ. ಸಾಧನವನ್ನು ಮುಟ್ಟದೆಯೇ ಬೆರಳಚ್ಚನ್ನು ಸಂಗ್ರಹಿಸುವ ಮಾರ್ಗವನ್ನು ಹುಡುಕಿದೆ.

लिखा गया
ಮೈಕ್ರೋಸಾಫ್ಟ್ ಡಿಸೈನರ್ ನ ಇಮೇಜ್ ಕ್ರಿಯೇಟರ್ ಬಳಸಿ ಚಿತ್ರ ರಚಿಸಲಾಗಿದೆ

ಐಐಟಿ ಬಾಂಬೆಯ ಸಂಶೋಧಕರು ಶಾಕ್‌ವೇವ್-ಆಧಾರಿತ ಸೂಜಿ-ಮುಕ್ತ ಸಿರಿಂಜ್ ಅನ್ನು ಅಭಿವೃದ್ಧಿಪಡಿಸಿದ್ದಾರೆ. ಈ ಮೂಲಕ ಸೂಜಿಗಳಿಲ್ಲದೆ ಔಷಧಿಗಳನ್ನು ಪೂರೈಸುವ ಮಾರ್ಗವನ್ನು ಕಂಡುಹಿಡಿದಿದ್ದಾರೆ.

लिखा गया
ಅತ್ಯಂತ ಪ್ರಾಚೀನ ವಸ್ತುವಿನ ಅಧ್ಯಯನ

ಹಯಾಬುಸಾ ಎಂದರೆ ವೇಗವಾಗಿ ಚಲಿಸುವ ಜಪಾನೀ ಬೈಕ್ ನೆನಪಿಗೆ ತಕ್ಷಣ ಬರುವುದು ಅಲ್ಲವೇ? ಆದರೆ ಜಪಾನಿನ ಬಾಹ್ಯಾಕಾಶ ಸಂಸ್ಥೆ - (ಜಾಕ್ಸ, JAXA) ತನ್ನ ಒಂದು ನೌಕೆಯ ಹೆಸರು ಹಯಾಬುಸಾ 2 ಎಂದು ಇಟ್ಟಿದ್ದಾರೆ. ಈ ನೌಕೆಯನ್ನು ಜಪಾನಿನ ಬಾಹ್ಯಾಕಾಶ ಸಂಸ್ಥೆ ಸೌರವ್ಯೂಹದಾದ್ಯಂತ ಸಂಚರಿಸಿ ರುಯ್ಗು (Ryugu) ಕ್ಷುದ್ರಗ್ರಹವನ್ನು ಸಂಪರ್ಕ ಸಾಧಿಸುವ ಉದ್ದೇಶದಿಂದ  ಡಿಸೆಂಬರ್ 2014 ರಲ್ಲಿ ಉಡಾವಣೆ ಮಾಡಿತ್ತು. ಇದು ಸುಮಾರು ಮೂವತ್ತು ಕೋಟಿ (300 ಮಿಲಿಯನ್) ಕಿಲೋಮೀಟರ್ ದೂರ ಪ್ರಯಾಣಿಸಿ 2018 ರಲ್ಲಿ ರುಯ್ಗು ಕ್ಷುದ್ರಗ್ರಹವನ್ನು ಸ್ಪರ್ಶಿಸಿತ್ತು. ಅಲ್ಲಿಯೇ ಕೆಲ ತಿಂಗಳು ಇದ್ದು ಮಾಹಿತಿ ಮತ್ತು ವಸ್ತು ಸಂಗ್ರಹಣೆ ಮಾಡಿ, 2020 ಯಲ್ಲಿ ಯಶಸ್ವಿಯಾಗಿ ಹಿಂತಿರುಗಿತ್ತು.

लिखा गया
ಕಾಂಕ್ರೀಟ್‌ ಪರೀಕ್ಷೆಗೆ ಪ್ರೋಬ್‌

ಕಾಂಕ್ರೀಟ್‌ನಲ್ಲಿ ಹುದುಗಿರುವ ರೆಬಾರ್‌ಗಳಲ್ಲಿನ ತುಕ್ಕು ಪ್ರಮಾಣವನ್ನು ಮಾಪಿಸಲು ವಿಜ್ಞಾನಿಗಳು ಒಂದು ಹೊಸ ತಪಾಸಕವನ್ನು ಅಭಿವೃದ್ಧಿಪಡಿಸಿದ್ದಾರೆ.

लिखा गया
‘ದ್ವಿಪಾತ್ರ’ದಲ್ಲಿ ಮೈಕ್ರೋ ಆರ್‌ಎನ್‌ಎ

ವೈರಲ್ ಸೋಂಕುಗಳು ಮತ್ತು ಸ್ವಯಂ ನಿರೋಧಕ ಕಾಯಿಲೆಗಳಲ್ಲಿ ಮೈಕ್ರೋ ಆರ್‌ಎನ್‌ಎ ‘ದ್ವಿಪಾತ್ರ’ದಲ್ಲಿ ಕೆಲಸ ಮಾಡುತ್ತದೆ. 

लिखा गया
ರೀಚಾರ್ಜ್ ಮಾಡಬಹುದಾದ ಬ್ಯಾಟರಿಗಳು

ಐಐಟಿ ಬಾಂಬೆ ಯ ಬ್ಯಾಟರಿ ಪ್ರೋಟೋಟೈಪಿಂಗ್ ಲ್ಯಾಬ್ ನ ಸಂಶೋಧಕರು ಇಂಧನ (ಶಕ್ತಿ) ಶೇಖರಣಾ ಸಾಧನವಾಗಿರುವ ರೀಚಾರ್ಜ್ ಮಾಡಬಹುದಾದ ಬ್ಯಾಟರಿಗಳ ಬಗ್ಗೆ ಅಧ್ಯಯನ ನಡೆಸುತ್ತಿದ್ದಾರೆ. 

Loading content ...
Loading content ...
Loading content ...
Loading content ...
Loading content ...