मुंबई
सस्ती कैंसर चिकित्सा के लिए स्वदेशी प्रौद्योगिकी

इम्यूनोथेरेपी कैंसर के इलाज का एक उभरता हुआ तरीका है, जिसमें कैंसर कोशिकाओं पर हमला करने के लिए रोगी की प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत किया जाता है। सर्जरी, कीमोथेरेपी या विकिरण चिकित्सा की तुलना में यह कम कष्टकर होता है, और इसमें कैंसर के लौटने की सम्भावना कम रहती है। हाल ही में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुम्बई (आईआईटी बॉम्बे) के शोधकर्ताओं ने कैंसर के इलाज के लिए रोगी की प्रतिरक्षा प्रणाली का उपयोग करने के लिए एक पेटेंट तकनीक विकसित की है।

प्राध्यापक राहुल पुरवार और जीवशास्त्र औेर जैवअभियांत्रिकी विभाग, आईआईटी बॉम्बे के वैज्ञानिकों के उनके दल ने कैंसर कोशिकाओं पर धावा बोलने और उन्हें मारने के लिए प्रतिरक्षा कोशिकाओं को संशोधित करने के लिए जीन थेरेपी और सेल थेरेपी के संयोजन का उपयोग किया है। उन्होंने अपने पद्धति के लिए पेटेंट भी प्राप्त किया है और टाटा मेमोरियल अस्पताल के प्राध्यापक गौरव नरूला के साथ मिलकर वे जल्द ही इसके नैदानिक परीक्षण शुरू करने की योजना बना रहे हैं।

मानव प्रतिरक्षा प्रणाली में 'टी-सेल्स' नामक विशिष्ट घातक कोशिकाएँ हमारे शरीर को कैंसर और अन्य बीमारियों से बचाती हैं। वे ट्यूमर और कैंसर के विकास को पहचान सकते हैं और उन्हें नष्ट कर सकते हैं। उन्नत चरणों में कैंसरग्रस्त कोशिकाएँ 'टी-सेल्स' को निष्क्रिय कर सकती हैं, या खुद को इस तरह से संशोधित कर सकती हैं कि ये उनका पता न लगा सकें। इम्यूनोथेरेपी में एक नई पद्धति, जिसे सीएआर टी-सेल थेरेपी (CAR T-cell therapy) कहा जाता है, कैंसर कोशिकाओं को पहचानने और उन्हें मारने के लिए 'टी-सेल्स' की क्षमता को पुनर्स्थापित करता है।

काइमिरिक एंटीजन रिसेप्टर्स या सी.ए.आर. वे प्रोटीन होते हैं जो कैंसर कोशिकाओं पर मौजूद किसी विशिष्ट प्रोटीन या एंटीजन को पहचानने और उससे संलग्न होने के लिए 'टी-सेल्स' की मदद करते हैं। इन दो प्रोटीनों के बीच की अंतःक्रिया से कैंसर की कोशिका का विनाश होता है।

पहली बार 2017 में प्रस्तुत की गई सीएआर टी-सेल तकनीक कैंसर के उपचार के लिए, ख़ासकर ल्यूकेमिया के लिए, बहुत आशाजनक है। फिलहाल यह चिकित्सा भारत में उपलब्ध नहीं है, और विदेशों में इसमें करोड़ों रुपये खर्च होते हैं। एक निजी कंपनी इस प्रौद्योगिकी का आयात कर इसे भारतीय मरीजों के लिए लगभग ₹35,00,000 में उपलब्ध कराना चाहती है। प्राध्यापक पुरवार और उनके दल द्वारा हाल ही में बनाए सीएआर (CAR) और रोगी-विशिष्ट सीएआर टी-सेल बनाने की विधि लागत की इस बाधा को दूर करने में मदद कर सकती है।

“भारत में विकसित यह तकनीक समाज के बड़े वर्ग के लिए वहन करने योग्य होगी। आयातित तकनीक के इस्तेमाल से इलाज करने पर करोड़ों का खर्च आ सकता है, लेकिन अब एक ही ख़ुराक वाला यह इलाज लगभग 15 लाख में संभव होगा,” प्राध्यापक पुरवार कहते हैं।

सीएआर टी-सेल्स को लोकव्यापी रूप से ‘सजीव औषधि’ कहा जाता है, क्योंकि टी-कोशिकाएँ जीवित कोशिकाएँ होती हैं और हमेशा शरीर में रहती हैं। वे रोगी के टी-सेल्स से निर्मित की जाती हैं। थेरेपी के दौरान मरीज का रक्त लिया जाता है और उसमें टी-सेल्स को अलग किया जाता है. तत्पश्चात, एक गैर-रोगजनक वायरस की मदद से इनकी जेनेटिक इंजीनियरिंग की जाती है, जिससे सीएआर का उत्पादन किया जाता है। ये कोशिकाएँ, जो अब कैंसर कोशिकाओं के प्रतिजन को पहचान सकती हैं और उन्हें नष्ट कर सकती हैं, दोबारा मरीज के रक्तप्रवाह में शामिल कर दी जाती हैं।

पिछले छह वर्षों से प्राध्यापक पुरवार और उनका दल सीएआर टी-सेल प्रौद्योगिकी को विकसित करने के लिए उपयुक्त बुनियादी ढाँचे, और कर्मचारियों और छात्रों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम विकसित करने की चुनौतियों पर काबू पाने के लिए काम कर रहा है। वे राष्ट्रीय कैंसर संस्थान के साथ एक ज्ञान भागीदार के रूप में जुड़े हुए हैं, और उनके साथ वैज्ञानिकों के आदान-प्रदान के लिए एक अल्पकालिक कार्यक्रम स्थापित कर चुके हैं। उन्होंने ऐसी रणनीतियाँ खोजी हैं जो इस तकनीक की प्रभावकारिता में सुधार लायेंगी । वे यह भी प्रदर्शित कर चुके हैं कि एक एकल इंजेक्शन की खुराक संशोधित टी-सेल्स की कई गुणा वृद्धि करता है जो कैंसर कोशिकाओं को नष्ट कर सकते हैं। उन्होंने कृत्रिम रूप से विकसित कैंसर कोशिकाओं पर इसका परीक्षण किया और उपचार की दीर्घकालिक सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कई गुणवत्ताओं की जाँच की।

शोधकर्ता अब नियामक अनुमोदन के लिए ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (डी.सी.जी.आई.) को आवेदन प्रस्तुत करने की योजना बना रहे हैं और टाटा मेमोरियल अस्पताल में नैदानिक परीक्षण शुरू करने की प्रक्रिया में हैं।

“यह डी.सी.जी.आई. के अनुमोदन पर निर्भर करता है, लेकिन हमें उम्मीद है कि 2020 के मध्य या अंत तक परीक्षण शुरू हो जाएंगे,” प्राध्यापक पुरवार कहते हैं। वे आगे यह भी कहते हैं कि यह उत्पाद लगभग दो वर्षों में बाजार में उपलब्ध हो जाएगा ।

Hindi

Recent Stories

लिखा गया
Research Matters
Industrial Pollution

हाइड्रोजन आधारित प्रक्रियाओं में उन्नत उत्प्रेरकों और नवीकरणीय ऊर्जा के समावेश से स्टील उद्योग में कार्बन विमुक्ति के आर्थिक और औद्योगिक रूप से व्यवहार्य समाधानों का विकास ।

लिखा गया
Research Matters
Representative image of rust: By peter731 from Pixabay

दो वैद्युत-रासायनिक तकनीकों के संयोजन से, शोधकर्ता औद्योगिक धातुओं पर लेपित आवरण पर संक्षारण की दर को कुशलतापूर्वक मापने में सफल रहे।

लिखा गया
Research Matters
प्रतिनिधि चित्र श्रेय: पिक्साहाइव

उत्तम आपदा प्रबंधन एवं आर्थिक सुरक्षा की दृष्टि से, राज्य की वित्त व्यवस्था पर आपदा के प्रभाव का आकलन करने हेतु ‘डिजास्टर इंटेंसिटी इंडेक्स’ का उपयोग करते शोधकर्ता

लिखा गया
Research Matters
Lockeia gigantus trace fossils found from Fort Member. Credit: Authors

ಜೈ ನಾರಾಯಣ್ ವ್ಯಾಸ್ ವಿಶ್ವವಿದ್ಯಾಲಯದ ಸಂಶೋಧಕರು ಜೈಸಲ್ಮೇರ್ ನಗರದ ಬಳಿಯ ಜೈಸಲ್ಮೇರ್ ರಚನೆಯಲ್ಲಿ ಲಾಕಿಯಾ ಜೈಗ್ಯಾಂಟಸ್ ಪಳೆಯುಳಿಕೆಗಳನ್ನು ಕಂಡುಹಿಡಿದಿದ್ದಾರೆ. ಇದು ಭಾರತದಿಂದ ಇಂತಹ ಪಳೆಯುಳಿಕೆಗಳ ಮೊದಲ ದಾಖಲೆ ಮಾತ್ರವಲ್ಲ, ಇದುವರೆಗೆ ಪತ್ತೆಯಾದ ಅತಿದೊಡ್ಡ ಲಾಕಿಯಾ ಕುರುಹುಗಳು.

लिखा गया
Research Matters
ಇಂಡೋ-ಬರ್ಮೀಸ್ ಪ್ಯಾಂಗೊಲಿನ್ (ಮನಿಸ್ ಇಂಡೋಬರ್ಮಾನಿಕಾ). ಕೃಪೆ: ವಾಂಗ್ಮೋ, ಎಲ್.ಕೆ., ಘೋಷ್, ಎ., ಡೋಲ್ಕರ್, ಎಸ್. ಮತ್ತು ಇತರರು.

ಕಳ್ಳತನದಿಂದ ಸಾಗಾಟವಾಗುತ್ತಿದ್ದ ಹಲವು ಪ್ರಾಣಿಗಳ ನಡುವೆ ಪ್ಯಾಂಗೋಲಿನ್ ನ ಹೊಸ ಪ್ರಭೇದವನ್ನು ಪತ್ತೆ ಮಾಡಲಾಗಿದೆ.

लिखा गया
Research Matters
ಸ್ಪರ್ಶರಹಿತ ಬೆರಳಚ್ಚು ಸಂವೇದಕದ ಪ್ರಾತಿನಿಧಿಕ ಚಿತ್ರ

ಸಾಧಾರಣವಾಗಿ, ಫೋನ್ ಅನ್ನು ಅನ್ಲಾಕ್ ಮಾಡುವಾಗ ಅಥವಾ ಕಛೇರಿಯಲ್ಲಿ ಬಯೋಮೆಟ್ರಿಕ್ ಸ್ಕ್ಯಾನರುಗಳನ್ನು ಬಳಸುವಾಗ, ನಿಮ್ಮ ಬೆರಳನ್ನು ಸ್ಕ್ಯಾನರಿನ ಮೇಲ್ಮೈಗೆ ಒತ್ತ ಬೇಕಾಗುತ್ತದೆ. ಬೆರಳಚ್ಚುಗಳನ್ನು ಸೆರೆಹಿಡಿಯುವುದು ಹೀಗೆ. ಆದರೆ, ಹೊಸ ಸಂಶೋಧನೆಯೊಂದು ಈ ಪ್ರಕ್ರಿಯೆಯನ್ನು ಇನ್ನಷ್ಟು ಸ್ವಚ್ಛ, ಸುಲಭ ಮತ್ತು ಹೆಚ್ಚು ನಿಖರವಾಗಿಸುವ ವಿಧಾನವನ್ನು ರೂಪಿಸಿದೆ. ಸಾಧನವನ್ನು ಮುಟ್ಟದೆಯೇ ಬೆರಳಚ್ಚನ್ನು ಸಂಗ್ರಹಿಸುವ ಮಾರ್ಗವನ್ನು ಹುಡುಕಿದೆ.

लिखा गया
Research Matters
ಮೈಕ್ರೋಸಾಫ್ಟ್ ಡಿಸೈನರ್ ನ ಇಮೇಜ್ ಕ್ರಿಯೇಟರ್ ಬಳಸಿ ಚಿತ್ರ ರಚಿಸಲಾಗಿದೆ

ಐಐಟಿ ಬಾಂಬೆಯ ಸಂಶೋಧಕರು ಶಾಕ್‌ವೇವ್-ಆಧಾರಿತ ಸೂಜಿ-ಮುಕ್ತ ಸಿರಿಂಜ್ ಅನ್ನು ಅಭಿವೃದ್ಧಿಪಡಿಸಿದ್ದಾರೆ. ಈ ಮೂಲಕ ಸೂಜಿಗಳಿಲ್ಲದೆ ಔಷಧಿಗಳನ್ನು ಪೂರೈಸುವ ಮಾರ್ಗವನ್ನು ಕಂಡುಹಿಡಿದಿದ್ದಾರೆ.

लिखा गया
Research Matters
ಅತ್ಯಂತ ಪ್ರಾಚೀನ ವಸ್ತುವಿನ ಅಧ್ಯಯನ

ಹಯಾಬುಸಾ ಎಂದರೆ ವೇಗವಾಗಿ ಚಲಿಸುವ ಜಪಾನೀ ಬೈಕ್ ನೆನಪಿಗೆ ತಕ್ಷಣ ಬರುವುದು ಅಲ್ಲವೇ? ಆದರೆ ಜಪಾನಿನ ಬಾಹ್ಯಾಕಾಶ ಸಂಸ್ಥೆ - (ಜಾಕ್ಸ, JAXA) ತನ್ನ ಒಂದು ನೌಕೆಯ ಹೆಸರು ಹಯಾಬುಸಾ 2 ಎಂದು ಇಟ್ಟಿದ್ದಾರೆ. ಈ ನೌಕೆಯನ್ನು ಜಪಾನಿನ ಬಾಹ್ಯಾಕಾಶ ಸಂಸ್ಥೆ ಸೌರವ್ಯೂಹದಾದ್ಯಂತ ಸಂಚರಿಸಿ ರುಯ್ಗು (Ryugu) ಕ್ಷುದ್ರಗ್ರಹವನ್ನು ಸಂಪರ್ಕ ಸಾಧಿಸುವ ಉದ್ದೇಶದಿಂದ  ಡಿಸೆಂಬರ್ 2014 ರಲ್ಲಿ ಉಡಾವಣೆ ಮಾಡಿತ್ತು. ಇದು ಸುಮಾರು ಮೂವತ್ತು ಕೋಟಿ (300 ಮಿಲಿಯನ್) ಕಿಲೋಮೀಟರ್ ದೂರ ಪ್ರಯಾಣಿಸಿ 2018 ರಲ್ಲಿ ರುಯ್ಗು ಕ್ಷುದ್ರಗ್ರಹವನ್ನು ಸ್ಪರ್ಶಿಸಿತ್ತು. ಅಲ್ಲಿಯೇ ಕೆಲ ತಿಂಗಳು ಇದ್ದು ಮಾಹಿತಿ ಮತ್ತು ವಸ್ತು ಸಂಗ್ರಹಣೆ ಮಾಡಿ, 2020 ಯಲ್ಲಿ ಯಶಸ್ವಿಯಾಗಿ ಹಿಂತಿರುಗಿತ್ತು.

लिखा गया
Research Matters
ಕಾಂಕ್ರೀಟ್‌ ಪರೀಕ್ಷೆಗೆ ಪ್ರೋಬ್‌

ಕಾಂಕ್ರೀಟ್‌ನಲ್ಲಿ ಹುದುಗಿರುವ ರೆಬಾರ್‌ಗಳಲ್ಲಿನ ತುಕ್ಕು ಪ್ರಮಾಣವನ್ನು ಮಾಪಿಸಲು ವಿಜ್ಞಾನಿಗಳು ಒಂದು ಹೊಸ ತಪಾಸಕವನ್ನು ಅಭಿವೃದ್ಧಿಪಡಿಸಿದ್ದಾರೆ.

लिखा गया
Research Matters
‘ದ್ವಿಪಾತ್ರ’ದಲ್ಲಿ ಮೈಕ್ರೋ ಆರ್‌ಎನ್‌ಎ

ವೈರಲ್ ಸೋಂಕುಗಳು ಮತ್ತು ಸ್ವಯಂ ನಿರೋಧಕ ಕಾಯಿಲೆಗಳಲ್ಲಿ ಮೈಕ್ರೋ ಆರ್‌ಎನ್‌ಎ ‘ದ್ವಿಪಾತ್ರ’ದಲ್ಲಿ ಕೆಲಸ ಮಾಡುತ್ತದೆ. 

लिखा गया
Research Matters
ರೀಚಾರ್ಜ್ ಮಾಡಬಹುದಾದ ಬ್ಯಾಟರಿಗಳು

ಐಐಟಿ ಬಾಂಬೆ ಯ ಬ್ಯಾಟರಿ ಪ್ರೋಟೋಟೈಪಿಂಗ್ ಲ್ಯಾಬ್ ನ ಸಂಶೋಧಕರು ಇಂಧನ (ಶಕ್ತಿ) ಶೇಖರಣಾ ಸಾಧನವಾಗಿರುವ ರೀಚಾರ್ಜ್ ಮಾಡಬಹುದಾದ ಬ್ಯಾಟರಿಗಳ ಬಗ್ಗೆ ಅಧ್ಯಯನ ನಡೆಸುತ್ತಿದ್ದಾರೆ. 

Loading content ...
Loading content ...
Loading content ...
Loading content ...
Loading content ...