Mumbai
अध्ययन हेतु चयनित सरोवर स्थलों को (पीले रंग में) दर्शाता मानचित्र  श्रेय: प्रा. जे. इंदु एवं कुमार नितीश

अध्ययनों से ज्ञात होता है कि निकट वर्षों में समुद्र सतह के तापमान के साथ-साथ नदियों की सतह के तापमान में लगातार वृद्धि हो रही है। 2023 में समुद्र की सतह के तापमान में इस शताब्दी की सर्वाधिक वृद्धि देखी गई। नदियों की सतह के तापमान में वृद्धि के लिए जलवायु परिवर्तन एवं मानवीय गतिविधियां उत्तरदायी हैं, विशेष रूप से एशिया में। सरोवर भी मीठे जल के महत्वपूर्ण स्रोत हैं, जो प्रभावित हो रहे हैं।

भूमि की सतह पर स्थित पदार्थों की तुलना में जल निकाय अत्यंत धीरे-धीरे गर्म होते हैं, जिससे उनके जल की सतह का तापमान वैश्विक गर्मी (ग्लोबल वार्मिंग) एवं जलवायु परिवर्तन का एक प्रमुख संकेतक हो जाता है। समय के साथ ये परिवर्तन जलीय एवं स्थलीय पारिस्थितिकी तंत्र को गंभीर रूप से प्रभावित करते हैं। सरोवर के जल की सतह के तापमान का अनुवीक्षण (मॉनिटरिंग) जल संसाधनों के प्रबंधन एवं जलवायु परिवर्तन पर दृष्टि रखने में सहायक सिद्ध हो सकता है। उदाहरणार्थ सरोवर की सतह के तापमान में वृद्धि होने से इसमें हानिकारक शैवाल की वृद्धि हो सकती है। फलत: सरोवर में ऑक्सीजन का स्तर कम हो सकता है एवं जलीय जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। इस प्रकार सरोवर जल सतह के तापमान का सटीक आकलन इसके पारिस्थितिकी तंत्र के अनुवीक्षण के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।

जल तापमान के सटीक आकलन की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई (आईआईटी मुंबई) के सिविल अभियांत्रिकी विभाग तथा जलवायु अध्ययन अंतर्विषयक केंद्र के कुमार नितीश एवं प्राध्यापिका जे. इंदु ने ‘IMPART’ (इम्पार्ट) नामक एक नया वेब-आधारित मुक्त-स्रोत (ओपन-सोर्स) एप्लिकेशन विकसित किया है। ‘इंटीग्रेशन ऑफ़ डायनामिक वॉटर एक्सटेन्ट्स टुवर्ड्स इम्प्रूव्ड लेक वॉटर सर्फेस टेम्परेचर’ से यह नाम लिया गया है। यह सरोवर के परिवर्तित होते क्षेत्रफल को ध्यान में रखते हुए इसकी सतह का तापमान पता करता है। यह अध्ययन जर्नल ऑफ एनवायरनमेंटल मैनेजमेंट में प्रकाशित हो चुका है। सरोवर जल सतह के तापमान आकलन की पारंपरिक विधियों में सरोवर के क्षेत्रफल को स्थिर माना जाता है, जो भ्रम उत्पन्न कर सकता है। यह अध्ययन इस भ्रांति को दूर करता है।

प्रमुख शोधकर्ता प्राध्यापिका इंदु ने बताया कि, “जल सतह के विस्तार में समय के साथ होने वाले परिवर्तनों को ध्यान में रखने से, सरोवर जल सतह के तापमान का आकलन अधिक सटीक होता है।”

बढ़ते नगरीकरण एवं ऋतु परिवर्तन तथा बढ़ते तापमान सहित अन्य कारक सरोवर की सतह के क्षेत्रफल एवं आयतन को समय-समय पर परिवर्तित करते रहते हैं। अत: अधिक सूक्ष्म आकलन की आवश्यकता होती है। 

आईआईटी मुंबई की IMPART एप इस अंतर को समाप्त करती है। इसके लिए यह एप सरोवर जल सतह के स्थिर एवं परिवर्तनशील पद्धति से लिए तापमानों की गणना हेतु सरोवर के संपूर्ण प्रसार में होने वाले वास्तविक-समय परिवर्तनों (रियल टाइम चेंज) का समावेश करती है। स्थिर पद्धति में सतह तापमान सरोवर के क्षेत्रफल को स्थिर मानता है जबकि परिवर्तनशील पद्धति में सतह तापमान की गणना में सरोवर के परिवर्तित क्षेत्र को समाहित होता है। IMPART का इंटरफेस सहज एवं उपयोगकर्तानुकूल है। शोधकर्ता एवं संगठन इससे सरोवर जल सतह के तापमान के आँकड़ों को सरलता पूर्वक प्राप्त तथा अंकित कर सकते हैं एवं पारिस्थितिकी तंत्र का प्रभावी अनुवीक्षण कर सकते है। 

आईआईटी मुंबई के शोधकर्ताओं ने उपग्रह उपकरणों (MODIS एवं LANDSAT) द्वारा अंकित किए गए तापमान डेटा तथा विशिष्ट दिवसों हेतु गूगल अर्थ के चित्रों से प्राप्त सरोवर विस्तार के डेटा का उपयोग किया। इन डेटा के संयोजन से उन्होंने समय के अनुरूप सरोवर क्षेत्र का तापमान निर्धारित किया। IMPART टूलकिट ने विश्व भर के 342 सरोवरों के लिए स्थिर एवं परिवर्तनशील सरोवर क्षेत्र पर आधारित जल सतह तापमान की गणना की। इनमें से 115 सरोवर भारत में स्थित हैं। स्थिर घटक (स्टैटिक मॉड्यूल) के लिए सॉफ़्टवेयर ने डेटाबेस में दर्शाए गए उस जल विस्तार का उपयोग किया जिसके लिए मासिक सतही तापमान प्राप्त किए गए थे। परिवर्तनशील घटक के लिए IMPART टूलकिट द्वारा डेटाबेस में सतही तापमान के प्रत्येक मासिक माप के लिए, जल क्षेत्र में होने वाले परिवर्तन का आकलन किया गया।

“दूर संवेदी उपकरणों, क्लाउड-आधारित प्रणाली (जैसे गूगल अर्थ इंजन) एवं परिवर्तनशील सरोवर क्षेत्र से सम्बद्ध परावर्तित डेटा के समावेश करने वाले अल्गोरिद्म में उन्नति के कारण परिवर्तनशील पद्धति का उपयोग अब संभव है, जो कि अधिक सटीक एवं विस्तृत विश्लेषण करने में सक्षम है,” नितीश कहते हैं। 

निष्कर्षों से ज्ञात हुआ कि सरोवरों के स्थिर एवं परिवर्तनशील क्षेत्र पर आधारित जल सतह तापमानों की तुलना करने पर आधे से अधिक सरोवरों के लिए ये तापमान बहुत भिन्न-भिन्न थे। विशिष्टत: तीन-चौथाई से अधिक भारतीय सरोवरों के लिए स्थिर एवं परिवर्तनशील पद्धति के जल सतह तापमान सांख्यिकीय रूप से भिन्न-भिन्न थे।

प्रा. इंदु कहती हैं, “हमारी पद्धति सरोवर सतह क्षेत्र को स्थिर मानने के स्थान पर इसे परिवर्तनशील स्वरुप में देखने के महत्व को रेखांकित करती है। इससे सटीक रूप से ज्ञात होता है कि मीठे जल की पारिस्थितिकी प्रणाली जलवायु परिवर्तन होने पर कैसे प्रतिक्रिया करती है।”

यह अध्ययन उन जलवायु क्षेत्रों की पहचान करने में भी सहायक सिद्ध हुआ, जिनके लिए परिवर्तनशील सरोवर क्षेत्र पर आधारित जल सतह तापमान मापन अधिक महत्वपूर्ण है। शोधकर्ताओं ने सरोवरों वाले स्थानों को पाँच जलवायु क्षेत्रों में विभाजित किया जो उष्णकटिबंधीय, शुष्क, समशीतोष्ण, शीत एवं ध्रुवीय क्षेत्र हैं। उन्होंने इन क्षेत्रों में स्थिर एवं परिवर्तनशील सरोवर क्षेत्र पद्धति से सरोवर के जल सतह तापमानों के मध्य अंतर का विश्लेषण किया। यह अंतर शीत एवं ध्रुवीय जलवायु वाले सरोवरों की तुलना में शुष्क, समशीतोष्ण एवं उष्णकटिबंधीय जलवायु युक्त सरोवरों के लिए अधिक स्पष्ट पाया गया।

IMPART में जलवायु परिवर्तन पर दृष्टि रखने हेतु एक युक्ति के रूप में अत्यधिक क्षमता है एवं इसे अन्य शोध क्षेत्रों में भी प्रयुक्त किया जा सकता है। इस युक्ति के माध्यम से जलवायु वैज्ञानिक सरोवर जल सतह के तापमान का सटीक अनुवीक्षण कर सकते हैं तथा इन तापमान परिवर्तनों के कारण, पारिस्थितिकी तंत्र पर एवं इसके चारों ओर होने वाले प्रभाव का अध्ययन कर सकते हैं। 

प्रा. इंदु निष्कर्ष देते हुए कहती है कि "जल संसाधन प्रबंधन, सरोवरों के पारिस्थितिक स्वास्थ्य आकलन एवं पर्यावरणीय दुष्प्रभावों से प्रभावित सरोवरों के पारिस्थितिकी तंत्र के लिए पूर्व चेतावनी प्रणालियों पर IMPART को भली-भांति प्रयुक्त किया जा सकता है।"

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