कानपुर
प्रोस्टेट कैंसर के विस्तार में जैविक आकृति संबंधित जीन की भूमिका को समझने की दिशा में शोध

अध्ययन प्रोस्टेट कैंसर में DLX1 जीन की भूमिका की पहचान एवं इसके उन्मूलन से चूहों में कैंसरजनन कम होने की पुष्टि करता है

मानव शरीर में असंख्य अणु मिलकर काम करते हैं। ये अणु एक जटिल संकेतन तंत्र (सिग्नलिंग नेटवर्क) बनाते हैं जो हमारे जीवित तंत्र को चलाते हैं। इनमे से कुछ आणविक अंतःक्रियाएं स्पष्ट हैं एवं वैज्ञानिकों के लिए पहचानने में सरल हैं जबकि कुछ अभी भी अस्पष्ट हैं। इन तंत्रो (नेटवर्कों) को समझने से हमें शरीर की कार्य पद्धति के बारे में जानकारी मिलती है, जिससे चिकित्सा विज्ञान की उन्नति होती है।

उदाहरणार्थ , DLX1, AR, ERG, और TMPRSS2 नाम के चार अणुओं में से प्रत्येक के कार्य असंबंधित प्रतीत होते हैं। जबकि, ये अणु प्रोस्टेट (पुरस्थग्रंथि) कैंसर के रोगियों में विशिष्ट व्यवहार दिखाते हैं।

DLX1 को शरीर की बनावट (पैटर्न) में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए जाना जाता है, उदाहरण के लिए, जबड़े का निर्माण, तंत्रिका तंत्र और अस्थिपंजर ढांचा, आदि। यद्यपि, शरीर की बनावट वाले ये जीन कैंसर रोग में अत्यधिक रूप में व्यक्त किए जाने के लिए जाने जाते हैं। DLX1 भ्रूण के विकास के समय एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, लेकिन असंबंधित रूप से, उच्च और फैलने वाले प्रोस्टेट कैंसर चरणों के 60% रोगियों में DLX1 का उच्च स्तर दिखाई देता है। AR एक पुरुष हार्मोन संग्राहक (रिसेप्टर) है जो सामान्य पुरुष यौन विकास के लिए आवश्यक है। इसकी अधिकता प्रोस्टेट कैंसर को अग्रिम चरणों की ओर अग्रेषित करता है।

ERG एक जीन डीकोडिंग नियामक (रेगुलेटर) है, जो कैंसर के विकास में अंतर्निहित जीन को नियंत्रित करता है। TMPRSS2, हमारे श्वसन तंत्र में कोरोनावायरस प्रवेश में सम्मिलित होने वाला अणु, सामान्यतः विभिन्न अंगों की आंतरिक परत पर पाया जाता है। मात्र ERG प्रोस्टेट ऊतकों में भी व्यक्त नहीं किया जाता है। तथापि, TMPRSS2 के साथ, आनुवंशिक पुनर्व्यवस्था के कारण प्रोस्टेट कैंसर के लगभग आधे रोगियों में एक नया संयुक्त TMPRSS2-ERG फ्यूजन उत्पाद देखा गया है।

पश्चिमी देशों में, ये अणु प्रोस्टेट कैंसर की नैदानिक ​​जांच के लिए परीक्षण किए गए अणुओं की सूची (पैनल) का एक भाग है । लेकिन क्या ये अणु प्रोस्टेट कैंसर में सिर्फ अपने स्तर में वृद्धि या गिरावट दिखाने के लिए होते हैं, या इसमें कोई गहरा संबंध है? शोध से पता लगता हैं कि इसमें गहरा संबंध है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, कानपुर की प्राध्यापक बुशरा अतीक के नेतृत्व में वैज्ञानिकों के एक दल ने नेचर कम्युनिकेशंस  नामक पत्रिका में प्रकाशित शोध से  प्रोस्टेट कैंसर में DLX1 की भूमिका का पता लगता हैं।

"कुछ जीन कुछ कैंसर में अत्यधिक व्यक्त किए जाते हैं लेकिन आवश्यक नहीं कि कैंसर के विस्तार में उनकी भूमिका हो। लेकिन हमने पाया है कि DLX1 के साथ ऐसा नहीं है," प्रा. बुशरा बताती हैं।

वर्ष 2015 में, प्रा. बुशरा की प्रयोगशाला ने पाया कि भारतीय प्रोस्टेट कैंसर के रोगियों में, लगभग 50% मामले TMPRSS2-ERG जीन फ्यूजन के लिए सकारात्मक हैं, जिससे ERG प्रोटीन के उच्च स्तर का उत्पादन हुआ। हाल ही के एक अध्ययन में, दल ने उन चरणों की पहचान की है जिनके  कारण DLX1 की अधिक अभिव्यक्ति होती है एवं परिणामस्वरूप प्रोस्टेट कैंसर का विकास होने लगता है और कैंसर शरीर में फैलना शुरू हो जाता है।

"TMPRSS2-ERG फ्यूजन, अर्थात् ERG के कारण उत्पाद के उच्च स्तर दिखाने वाले रोगी के नमूने भी उच्च DLX1  स्तर प्रदर्शित करते हैं। इसके अलावा TMPRSS2-ERG फ्यूजन या ERG के बिना भी कुछ रोगी उच्च DLX1 स्तर प्रदर्शित करते हैं। हम जानना चाहते थे कि ऐसे मामलों में DLX1 के लिए संचालक क्या है," प्रा. बुशरा विस्तार से बताती हैं।

जाँच करने पर, शोधकर्ताओ पाया कि ERG और AR दोनों अपने नियामक क्षेत्रों से जुड़कर DLX1 की अभिव्यक्ति को संशोधित करते हैं। प्रा. बुशरा और उनके दल द्वारा किए गए अध्ययन से यह भी ज्ञात होता है कि इस बंधन को रोकने के लिए BET अवरोधक (कैंसर रोधी दवाओं का एक वर्ग) अकेले या एंटी-एंड्रोजन दवाओं के साथ संयोजन में AR सिग्नलिंग को बाधित करके DLX1 के स्तर को कम करता है।

उन्होंने DLX1 के उच्च स्तर वाले मानव प्रोस्टेट कैंसर कोशिकाओं को प्रयोगशाला के चूहों में इंजेक्ट किया। ट्यूमर के एक निश्चित मात्रा तक पहुंच जाने के पश्चात उन्होंने चूहों को BETअवरोधक एकल रूप से और एंटी-एंड्रोजन के साथ संयोजन में दवा दी। उन्होंने पाया कि इससे DLX1 का स्तर कम हो गया और ट्यूमर की मात्रा में भी कमी दिखाई दी। विशेष रूप से उपचार समूह के चूहों ने अन्य अंगों में कैंसर कोशिकाओं के प्रसार को कम दिखाया, जो प्रायः विकसित या अग्रिम चरण के कैंसर रोगियों में पाया जाता है। उनके अध्ययन से ज्ञात हुआ कि तीन वंशाणु- ERG, AR एवं FOXA1,  DLX1  की अधिकता के लिए उत्तरदायी हैं।

"हमारे अध्ययन के परिणाम DLX1 को प्रोस्टेट कैंसर के रोगियों में संभावित रूप से प्रभावी चिकित्सीय लक्ष्य के रूप में निर्धारित करते हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हमने जिन अवरोधकों (BET अवरोधक) का परीक्षण किया, वे पहले से ही नैदानिक ​​​​परीक्षणों में हैं और लगभग 60% उच्च DLX1 स्तरीय प्रोस्टेट कैंसर रोगियों को लाभान्वित कर सकते हैं, " प्रा. बुशरा स्पष्ट करती हैं।

अनुसन्धान समूह अब पूरे देश में प्रोस्टेट कैंसर के मामलों के व्यापक आंकड़े देख रहा है। आनुवंशिकी में नस्लीय पूर्वाग्रह होने के कारण पश्चिम देशो में प्रोस्टेट कैंसर के आणविक सहभागी भारतीय मूल के रोगियों के लिए समान नहीं होने की संभावना हैं। "हम भारत के रोगियों में प्रोस्टेट कैंसर के प्रसार में संलग्न प्रमुख आणविक सहभागियो की पहचान करना चाहते हैं। यह खोज प्रभावी निदान और उपचार के विकास में सहायता करेगी, जो विशेष रूप से भारतीय आबादी के लिए उचित एवं अनुकूल हैं, " अपनी शोध के अगले चरणों के बारे में बात करते हुए डॉ बुशरा निष्कर्ष निकालती हैं।

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