मुंबई
परमाण्विक स्तर पर विद्युत चुम्बकत्व के नियम

अन्स्प्लैश छायाचित्र : मिका बॉमैस्टर

भौतिकशास्त्रियों ने एक सदी से भी अधिक समय पहले विद्युत और  चुम्बकत्व के मध्य संबंध को खोजा था। इन इकाइयों जिन्हें पूर्व में पृथक-पृथक माना गया था, के मध्य स्थित जटिल संबंध अब 'विद्युत-चुम्बकत्व' के नाम से जाना जाता है।  यह बृहत रूप में उस संसार को नियंत्रित करता है जिसमें हम रहते हैं। बड़े-बड़े पावरग्रिडों से लेकर हमारे कमरे में स्थित पंखों एवं इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों तक सब कुछ इन भली भांति जाने-समझे सिद्धांतों पर ही कार्य  करते हैं ।

चुम्बकत्व को नियंत्रित करने के लिए वैज्ञानिक बहुधा विद्युत ऊर्जा का उपयोग करते हैं, जो उन्हें संगणकों की गति बढ़ाने में सक्षम बनाता है। चुम्बकत्व से समय परिवर्ती विद्युत का उत्पादन कर उन्होंने इसका व्युत्क्रम भी प्राप्त किया, जो उन्नीसवीं शताब्दी में सर्वप्रथम देखा गया था। एक नवीन अध्ययन में, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई (आईआईटी बॉम्बे)  के शोधकर्ताओं के एक दल ने, केवल कुछ ही परमाणु-स्तरीय मोटाई की माप पर, प्राकृतिक रूप से प्राप्त होने वाले चुंबकीय पदार्थों के एक प्रकार, एक लौह चुम्बक (फेरोमैग्नेट), में पहली बार व्युत्क्रम प्रभाव का प्रदर्शन किया है। इस प्रकार, उन्होंने दर्शाया कि परमाण्विक स्तर पर दो प्रभाव परस्पर कैसे जुड़े हुये हैं। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी), भारत सरकार के द्वारा वित्तपोषित किया गया यह अध्ययन साइंस  एड्वान्सेज नामक शोध पत्रिका में प्रकाशित किया गया।

इस प्रभाव के अध्ययन हेतु, शोधकर्ताओं ने विद्युतधारा को एक परिष्कृत विद्युत परिपथ में प्रवाहित किया जिसके  परिणामस्वरूप एक चुम्बकीय क्षेत्र निर्मित हुआ। विद्युत-चुम्बकत्व के नियमों के अनुसार, यह चुम्बकीय क्षेत्र अपने निकट स्थित किसी भी चुम्बक को प्रभावित करेगा। तब, उन्होंने एक ऑक्साइड और एक लौहचुम्बक के मध्य स्थित अन्तराफलक (इंटरफेस) की एक पतली परमाण्विक परत वाली एक युक्ति (डिवाइस) को परिपथ के अत्यंत समीप रखा। परत के चुम्बकीकरण (मैग्नेटाइजेशन) से उत्पन्न विद्युत क्षेत्र के मापन द्वारा, उन्होंने दर्शाया कि यह चुम्बकीकरण की दिशा के साथ परिवर्तित हुआ।

ऑक्साइड और चुम्बक के मध्य का परमाणु स्तरीय अन्तराफलक विशिष्ट है। इस मापन-स्तर को नियंत्रित करने वाले भौतिक नियमों पर कार्य करके शोधकर्ताओं ने यह भी जाना, कि कोई भी बाह्य चुम्बकीय क्षेत्र केवल इस विशिष्टता युक्त अन्तराफलक को ही भेद सकता है, इसके परे नहीं। चुम्बकीय क्षेत्र जो बाह्य परिपथ के द्वारा उत्पन्न होता है, बाह्य चुम्बकीय क्षेत्र की भूमिका का निर्वहन करता है, जो कि पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र के एक हजार गुने से भी अधिक शक्तिशाली हो सकता है।  यद्यपि, ऑक्साइड और चुम्बकीय अन्तराफलक का नमूना बनाना आसान नहीं, क्योंकि यह अशुद्धता रहित होना चाहिए।

"हमें यह भली-भाँति सुनिश्चित करना था कि नमूना पूर्ण रूप से स्वच्छ है," इस अध्ययन के अग्रणी लेखक आईआईटी, मुंबई के डॉ. अंबिका शंकर शुक्ला कहते हैं। वस्तुतः, ये नमूने उन्होंने वायुमार्ग के द्वारा जापान में स्थित अपने सहयोगियों से प्राप्त किए हैं।

व्युत्क्रम प्रभाव — फिल्म के चुम्बकीकरण को परिवर्तित कर विद्युत धारा की उत्पत्ति इतने सूक्ष्म स्तर पर पहले कभी नहीं देखी गई, और  यही इस कार्य-दल का अभीष्ट था। इस के अवलोकन के लिए उन्होंने परिपथ में प्रवाहित धारा को परिवर्तित किया और एक दूसरे परिपथ को तनु फिल्म के निकट स्थापित किया।

"प्रभाव को सत्यापित करने हेतु यद्यपि ये दोनों परिपथ एवं तनु फिल्म,  एक-दूसरे से पूर्णत: पृथक्कृत (आईसोलेटेड) होने चाहिए" इस परियोजना के पर्यवेक्षक प्राध्यापक अश्विन तुलापुरकर साझा करते हैं। यह सुनिश्चित करता है कि कारण और प्रभाव विशिष्ट  (डिस्टिंग्विशेबेल) हैं, जो  निर्णयात्मक रूप से प्रदर्शित करता है कि व्युत्क्रम प्रभाव निस्संदेह घटित हो रहा है।

जब शोधकर्ताओं ने प्रथम परिपथ में से एक परिवर्ती विद्युत धारा प्रवाहित की तो उन्होंने पाया कि तनु फिल्म का  चुम्बकीकरण (मैग्नेटाइजेशन) समय के साथ परिवर्तित हुआ। इसने परिणामतः एक विद्युत क्षेत्र को उत्पन्न किया, जो दूसरे स्वतंत्र विद्युत परिपथ में, विद्युत धारा का प्रवाह उत्पन्न करने में पर्याप्त रूप से समर्थ था। "ऐसा पहली बार हुआ है कि व्युत्क्रम प्रभाव को इतने सूक्ष्म मापन स्तर पर देखा गया हो" डॉ. शुक्ला दावा करते हैं।

शोधकर्ताओं ने प्रदर्शित किया कि इस व्युत्क्रम प्रभाव की सहायता से वे चुम्बकीकरण के साथ-साथ इसकी दिशा को यांत्रिक रूप से घुमाये बिना ही नियंत्रित कर सके। शोधकर्ताओं का विचार है कि यह नियंत्रण उन्हें स्मृति यंत्रों (स्टोरेज डिवाइस) की रचना करने में सहायता कर सकता है। बाह्य परिपथ के नियंत्रण के द्वारा, वे चुम्बकीकरण की दिशा के आधार पर इसको दो पृथक अवस्थाओं में उत्पन्न कर सकते हैं।  यह उन्हें आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक्स के मूलभूत अंग, द्विचर (बायनरी) अवस्थाओं के निर्माण में सक्षम बनाएगा।

व्युत्क्रम प्रभाव यह भी दर्शाता है कि एक बाह्य क्षेत्र से संबंधित सूचना, एक चुम्बकीय पदार्थ के द्वारा इसके मूल संघटक ऋणविद्युदणुओं (इलेक्ट्रॉन्स) के मूलभूत गुणों का उपयोग करते हुए, कैसे संचरित होती है।

"प्रचलित स्मृति यंत्रों की तुलना में यह गुण हमें लगभग हजार गुना कम शक्ति-हानि के साथ सूचना के संचार में सक्षम बनाता है" डॉ. शुक्ला स्पष्ट करते हैं। "हम अब एक ऐसे स्मृति यंत्र (मेमोरी डिवाइस) की रचना करने के प्रयास में हैं जो न्यूनतम शक्ति के साथ कार्य कर सके," वह विदा लेते हुए कहते  हैं।

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