मुंबई
प्राध्यापक अमर्त्य मुखोपाध्याय को अगली पीढ़ी की रिचार्जेबल बैटरी के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए वर्ष 2021 स्वर्णजयंती फैलोशिप से सम्मानित किया गया

प्राध्यापक अमर्त्य मुखोपाध्याय, स्वर्णजयंती फैलोशिप 2020-21 के प्राप्तकर्ता

विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार ने भारत की स्वतंत्रता के पचासवें वर्ष के उत्सव के उपलक्ष्य में स्वर्णजयंती फैलोशिप योजना की शुरुआत की थी। प्रत्येक वर्ष, कुछ प्रख्यात युवा वैज्ञानिकों को जीव विज्ञान, रसायन विज्ञान, पर्यावरण विज्ञान, अभियांत्रिकी, गणित, चिकित्सा और भौतिकी के विभिन्न प्रयुक्त और मौलिक क्षेत्रों में उल्लेखनीय और उत्कृष्ट शोध के लिए स्वर्ण जयंती फैलोशिप से सम्मानित किया जाता है।

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, मुंबई के धातुकर्म अभियांत्रिकी और पदार्थ विज्ञान विभाग के प्राध्यापक अमर्त्य मुखोपाध्याय को अभियांत्रिकी विज्ञान के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए वर्ष 2021 के लिए प्रतिष्ठित स्वर्ण जयंती फैलोशिप प्रदान की गई है। स्वर्ण जयंती फैलोशिप में पुरस्कार स्वरूप प्रतिमाह 25,000 रुपये पुरस्कार राशि के साथ पांच साल के लिए शोध अनुदान दिया जाता है। प्राध्यापक अमर्त्य मुखोपाध्याय अन्य कई पुरस्कारों और सम्मानों के प्राप्तकर्ता भी हैं। उन्हें विशेष रूप से, रॉयल सोसाइटी ऑफ केमिस्ट्री (यूनाइटेड किंगडम) की पत्रिकाओं द्वारा '2019 उभरते अन्वेषक' में से एक के रूप में चुना गया और भारतीय राष्ट्रीय इंजीनियरिंग अकादमी द्वारा यंग इंजीनियर अवार्ड (युवा इंजीनियर पुरस्कार) से सम्मानित किया गया है। इसके अलावा, उन्होंने एक पाठ्यपुस्तक- इंटरडिसिप्लिनरी इंजीनियरिंग साइंसेज: कॉन्सेप्ट्स एंड एप्लीकेशन टू मैटेरियल्स साइंस का सह-लेखन भी किया है।

प्राध्यापक मुखोपाध्याय भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, मुंबई में उच्च तापमान और ऊर्जा पदार्थ प्रयोगशाला के प्रमुख हैं। लिथियम-आयन और सोडियम-आयन बैटरी के लिए एनोड डिजाइन करने के लिए नए क्रियाशील मिश्र धातुओं की खोज में की जा रही अग्रणी शोध में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है। प्राध्यापक मुखोपाध्याय कहते हैं कि

"हमारा लक्ष्य उन्नत अनुप्रयोगों जैसे इलेक्ट्रिक वाहन और अक्षय स्रोतों से प्राप्त ऊर्जा के भंडारण के लिए बेहतर, दृढ़, लंबे समय तक चलने वाली रिचार्जेबल बैटरी बनाना है।”

मिशन इनोवेशन इंडिया के तहत, हमारा देश बिजली उत्पादन के लिए जीवाश्म ईंधन के उपयोग को न्यूनतम करने और इन उन्नत बैटरियों पर चलने वाले पर्यावरण के अनुकूल इलेक्ट्रिक वाहनों को प्रोत्साहित करने की राह पर अग्रसर है। प्राध्यापक मुखोपाध्याय कहते हैं कि, इन दिशाओं में यथार्थवादी समाधान प्राप्त करने के लिए डिज़ाइन संबंधी कई चुनौतियां हैं जिन्हें इन बैटरियों से दूर करने की आवश्यकता है। बैटरियों के इन उन्नत अनुप्रयोगों के लिए विभिन्न कारकों में सुधार की आवश्यकता होती है, जैसे कि प्रति इकाई द्रव्यमान/आयतन (ऊर्जा घनत्व) में संग्रहीत ऊर्जा; विशेष रूप से इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए संग्रहीत ऊर्जा (शक्ति घनत्व) का तेज भराव/वितरण; संचालन चक्र के दौरान गिरावट के बिना बैटरी की उम्र बढ़ाना,और कई सुरक्षा पहलू।

प्राध्यापक मुखोपाध्याय का समूह सक्रिय रूप से नए विकल्पों पर शोध कर रहा है। उनका एक दल एक नए मिश्र धातु पदार्थ को डिजाइन करने पर ध्यान केंद्रित कर रहा है जो लिथियम-आयन बैटरी सिस्टम में लिथियम-प्लेटिंग और 'डेंड्राइट' के गठन को कम करेगा। इस प्रकार बैटरी के सुरक्षा पहलुओं में सुधार होगा। इसके अतिरिक्त, वे बैटरी की ऊर्जा भंडारण क्षमता में सुधार, बैटरी को तेजी से चार्ज करने की संभावना (कुछ ही मिनटों में) और बैटरी के लम्बे जीवनकाल के लिए प्रयास कर रहे हैं।

लिथियम-आयन बैटरी में तरल इलेक्ट्रोलाइट में निलंबित झिल्ली द्वारा अलग किए गए दो इलेक्ट्रोड होते हैं। कैथोड आमतौर पर लिथियम ट्रांजीशन धातु ऑक्साइड आधारित यौगिकों से बना होता है और अपने लैटिस (क्रिस्टल संरचना) से लिथियम आयन उत्पन्न करता है। एनोड पदार्थ ग्रेफाइटिक कार्बन है, जो आयनों को अपने लैटिस में संग्रहित कर सकते हैं। एनोड पदार्थ की संरचना और रासायनिक प्रकृति ऐसी होती है कि आने वाले लिथियम आयन, चार्जिंग-डिस्चार्जिंग चक्र के दौरान लैटिस स्थानों में संग्रहित और विस्थापित होते हैं (एक प्रक्रिया जिसे इंटरकेलेशन कहा जाता है)। धनात्मक और ऋणात्मक धारावाही टर्मिनल उस इलेक्ट्रोड से जुड़ जाते हैं जिससे धारा प्रवाहित होती है।

लिथियम-आयन बैटरी का ग्राफिक निरूपण (बायीं ओर); अगली पीढ़ी की बैटरी का लैब-स्केल परीक्षण  (दाईं ओर) (चित्र सौजन्य:प्राध्यापक मुखोपाध्याय)

चार्जिंग चक्र के दौरान, कैथोड लिथियम आयन उत्पन्न करता है जो विभाजक झिल्ली के माध्यम से प्रवेश करता है और एनोड के लैटिस में जमा हो जाता है। इलेक्ट्रॉन बाहरी सर्किट से गुजरते हैं और बैटरी चार्ज कर देते हैं। डिस्चार्ज चक्र में, इसका विपरीत होता है, इसमें  लिथियम आयन, रासायनिक रूप से संयोजित होने के लिए कैथोड में वापस चले जाते हैं।

वर्तमान लिथियम आयन बैटरी प्रणाली में कुछ अंतर्निहित कमियां हैं, जैसे बैटरी का कम जीवनकाल (सैल घटकों के क्षरण के कारण), धीमी चार्जिंग/डिस्चार्जिंग दर, सैल की संभावित शॉर्ट सर्किटिंग (जो परिचालन और सुरक्षा खतरों का कारण बन सकती है) और उपयोग में लिए जाने वाले ज्वलनशील और खतरनाक रसायन आदि प्रमुख हैं। प्राध्यापक मुखोपाध्याय कहते हैं कि “मौजूदा बैटरी प्रणाली के सामने आने वाली समस्याएं मुख्यतः उपयोग किये जाने वाले पदार्थ और उनकी परिचालन स्थितियों में निहित हैं”। "तीव्र चार्जिंग-डिस्चार्जिंग चक्र पदार्थ को संरचनात्मक रूप से अस्थिर बना सकते हैं, विशेष रूप से,अगर हम कैथोड लैटिस से अधिक लिथियम खींचने का प्रयास करते हैं और एनोड लैटिस में अधिक लिथियम को धकेलते हैं। यह बैटरी के सीमित स्थान में यांत्रिक तनाव को भी बढ़ाता है। ये कारक प्रत्येक चार्ज-डिस्चार्ज चक्र में बैटरी को शीघ्र खराब कर देते हैं,” प्राध्यापक मुखोपाध्याय आगे कहते हैं।

इन बैटरियों में एक और कमी यह है कि लिथियम आयन अक्सर, विशेष रूप से तेज चार्जिंग दरों पर एनोड की तरफ ग्रेफाइटिक कार्बन इलेक्ट्रोड पर परत बनाते हैं। परिणामस्वरूप, ये जमाव डेन्ड्राइट नामक स्पाइकी संरचनाओं का निर्माण करते हैं। समय के साथ, डेंड्राइट बढ़ते हैं और उनके नुकीले सिरे विभाजक तक पहुंच कर उसमें छेद कर सकते है। फलस्वरूप बैटरी में अंदरूनी शॉर्ट सर्किटिंग हो सकती है।

प्राध्यापक मुखोपाध्याय कहते हैं कि, अब तक, जब से लिथियम-आयन बैटरी विकसित की गई है, इसमें अधिकांश सुधार केवल कैथोड की तरफ हुए हैं, और वास्तविकता में एनोड पर न के बराबर काम हुआ है। इसलिए हम एनोड पर चुनौतियों का समाधान कर रहे हैं। "हम विशेष मिश्र धातुओं को  विकसित कर रहे हैं जो ऊर्जा भंडारण क्षमता को महत्वपूर्ण रूप से बढ़ा सकते हैं। ये तेज गति से बैटरी में चार्ज-डिस्चार्ज चक्र को संचालित कर सकते हैं और लिथियम-डेंड्राइट संरचनाओं को रोक/न्यूनतम कर सकते हैं। ये आगामी सोडियम आयन बैटरी प्रणाली के व्यापक सफल विकास को भी बढ़ावा देगा,” प्राध्यापक मुखोपाध्याय आगे कहते हैं।

प्राध्यापक मुखोपाध्याय ने सूचित किया कि लिथियम और सोडियम आयन बैटरी पर उनका वर्तमान शोध टीआरएल 4 (प्रौद्योगिकी तैयारी स्तर) चरण में है। इसका मतलब यह है कि उन्होंने अपने शोध परिणामों का परीक्षण करने के लिए प्रयोगशाला स्तर पर कार्यरत प्रारूप (लैब-स्केल वर्किंग प्रोटोटाइप) तैयार कर लिए हैं। ये फैलोशिप उन्हें इस अनुसंधान को अगले स्तर पर पहुँचा कर एक औद्योगिक मॉडल का निर्माण करने में सक्षम बनाएगी। उनकी संस्थान और विभाग, इंजीनियरिंग-विज्ञान के शैक्षणिक और प्रायोगिक पहलुओं को संतुलित करते हुए उद्योग जगत के साथ मिलकर काम कर रहे हैं।

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