Mumbai
प्रतिनिधि चित्र Rawpexel

कच्चे तेल को गैसोलीन एवं डीजल जैसे उपयोगी उत्पादों में परिवर्तित करने वाली रिफाइनरीज बड़ी मात्रा में अपशिष्ट जल उत्पन्न करती हैं। वाष्पोत्पादन एवं ऊष्मा हस्तांतरण जैसी गतिविधियों में उपयोग किया जाने वाला यह पानी नाइट्रोजन युक्त यौगिकों सहित बहुधा हानिकारक कार्बनिक एवं अकार्बनिक प्रदूषकों से युक्त होता है। पर्यावरण में सुरक्षित रूप से छोड़े जाने के पूर्व इस जल को उपचार के कई चरणों से गुजरना होता है ताकि इनमें से अधिकांश प्रदूषकों को हटाया जा सके। वैज्ञानिक ऐसे वैकल्पिक उपचार चरणों की खोज में रत हैं जो पर्यावरण की दृष्टि से सुरक्षित होने के साथ आर्थिक रूप से भी व्यवहार्य हों।

एक नवीनतम अध्ययन में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई (आईआईटी मुंबई) के शोधकर्ताओं द्वारा जैव-निस्यंदक (बायोफिल्टर) पर किए गए अध्ययन में एक आकर्षक परिणाम सामने आया है - रिफाइनरीज से प्राप्त आंशिक रूप से उपचारित अपशिष्ट जल में पहले ही अपशिष्ट जल से कार्बनिक प्रदूषकों को दूर करने वाले जीवाणु होते हैं। शोधकर्ताओं को केवल एक अध:स्तर (सब्सट्रेट) की आवश्यकता थी जिस पर चिपक कर ये जीवाणु कार्य कर सकते थे। इस अध्ययन हेतु उन्होंने एक शुद्ध क्वार्ट्ज बालू स्तंभ को इस रूप में चुना।

अपने अध्ययन के लिए शोधकर्ताओं ने जैव-निस्यंदक के रूप में बालू के गुणों को परखा।

"बालू को चुनने के पीछे तर्क यह है कि इसका उपयोग बहुधा पानी एवं अपशिष्ट जल के उपचार हेतु गहन संस्तर निस्यंदक (डीप बेड फिल्टर) के रूप में किया जाता है," अध्ययन की नेतृत्वकर्ता एवं आईआईटी मुंबई के पर्यावरण विज्ञान एवं अभियांत्रिकी विभाग की प्राध्यापिका सुपर्णा मुखर्जी का कहना है।

शोधकर्ताओं ने 45 सेमी लंबाई एवं 2 सेमी व्यास वाले ऐक्रेलिक बेलन से निर्मित एक जैव-निस्यंदक निर्मित किया एवं इसे 15 सेमी की गहराई तक शुद्ध क्वार्ट्ज बालू से भर दिया। इस प्रक्रिया में जैव-निस्यंदक के माध्यम से उपचारित रिफाइनरी अपशिष्ट जल को, जिसमें से विषैले रसायन निकाल दिए गए हैं, 1 से 10 मिली लीटर प्रति मिनट की नियंत्रित दर से प्रवाहित किया जाता है। बालू के माध्यम से बहने वाला अपशिष्ट जल, इन बालू कणों पर एक्स्ट्रा-सेल्युलर पॉलीमेरिक पदार्थों में निबद्ध विविध प्रकार के जीवाणुओं से निर्मित जैविक झिल्ली (बायोफिल्म) का निर्माण करता है।

"जब पानी बालू के माध्यम से बहता है, तो इस पानी/अपशिष्ट जल में स्थित जीवाणु इन बालू कणों द्वारा अवशोषित कर लिए जाते हैं। ये जीवाणु अपनी प्रतिकृति निर्मित करते हैं एवं इन बालू कणों की सतह पर जैव-झिल्ली (बायोफिल्म) निर्मित करने हेतु एक्स्ट्रा-सेल्युलर पॉलीमेरिक पदार्थों को स्रावित करते हैं। ये जीवाणु अपनी वृद्धि हेतु बालू संस्तर के माध्यम से बहने वाले पानी में घुली हुई ऑक्सीजन, जैविक कार्बन एवं अन्य पोषक तत्वों का उपयोग करते हैं," प्रा. मुखर्जी बताती हैं।

प्रतिक्रिया स्वरुप यह जैव-झिल्ली पानी में स्थित कार्बनिक प्रदूषकों का भक्षण कर लेती है। नाइट्रोजन युक्त कार्बनिक यौगिकों के विघटन से अमोनियम के रूप में अकार्बनिक नाइट्रोजन निकलता है, जिसे नाइट्रेट में परिवर्तित कर दिया जाता है। यद्यपि नाइट्रेट का सीमित निष्कासन हुआ हो सकता है, जैवनिस्यंदन के पश्चात नाइट्रेट का संचय देखा गया।

Schematic of sand biofiltration, photo of Sand biofilters made of acrylic, and microscopic images of the sand with and without the biofilm. (Credits: Authors of the study)
रेखाचित्र: वालुका जैव-निस्यंदन का आरेखीय निरूपण; प्रतिमा: ऐक्रेलिक निर्मित वालुका जैव-निस्यंदक; सूक्ष्म चित्र: जैव झिल्ली सहित एवं इसके रहित बालू । (साभार: अध्ययन लेखक)

शोध दल ने रासायनिक ऑक्सीजन मांग (केमिकल ऑक्सीजन डिमांड), कुल जैविक कार्बन (टोटल जैविक कार्बन) एवं स्वांगीकरणीय जैविक कार्बन (एसिमिलेबेल ऑर्गनिक कार्बन) का विश्लेषण किया, जो पानी में विभिन्न कार्बनिक यौगिकों के मापक हैं। रासायनिक ऑक्सीजन मांग तथा कुल जैविक कार्बन के विश्लेषण से पानी में कार्बनिक संदूषकों की सांद्रता के आकलन में सहायता होती हैं। शोधकर्ताओं ने विशिष्टत: जैव-निस्यंदक के माध्यम से अपशिष्ट जल का मात्र दो बार पुनर्संचरण (रीसर्कुलेशन) करके रासायनिक ऑक्सीजन मांग, कुल जैविक कार्बन एवं स्वांगीकरणीय जैविक कार्बन में उल्लेखनीय कमी देखी।

शोधदल ने पानी में विशिष्ट कार्बनिक यौगिकों के संसूचन (डिटेक्शन) एवं उनकी मात्रा निर्धारित करने के लिए GCxGC-TOF-MS, अर्थात गैस क्रोमैटोग्राफी टाइम ऑफ फ्लाइट मास स्पेक्ट्रोमेट्री नामक तकनीक का भी उपयोग किया।

"अपशिष्ट जल का 12 बार पुनर्संचरण करने पर रासायनिक ऑक्सीजन मांग एवं कुल जैविक कार्बन में अधिकतम कमी आई, जो क्रमशः 62% और 55% (आधे से भी अधिक) थी। GCxGC-TOF-MS परिणामों से ज्ञात हुआ कि 12 बार पुनर्संचरण के उपरांत लक्षित (हानिकारक) यौगिकों में से कई, अपशिष्ट जल में अनुपस्थित रहे। यह हानिकारक यौगिकों के 100% दूर किये जाने का संकेत देता है," आईआईटी मुंबई में पूर्व पीएचडी छात्र एवं अध्ययन के लेखक डॉ. प्रशांत सिन्हा ने बताया।

निस्यंदन के समय जीवाणुओं द्वारा उत्पादित नाइट्रेट्स, नाइट्रोजन के अन्य रूपों में रूपांतरण के कारण उपचारित पानी में नाइट्रेट्स का संचय करते हैं।

"नाइट्रेट्स का यह संचय अवांछनीय है। यद्यपि रिफाइनरीज अंतिम उपचार चरण के रूप में रिवर्स ऑस्मोसिस (आरओ) का उपयोग करती हैं। यह प्रक्रिया अंतिम अपशिष्ट में नाइट्रेट्स के स्तर को कम कर सकती है," प्रा. मुखर्जी कहती हैं।

जैवनिस्यंदन (बायोफिल्ट्रेशन) स्वांगीकरणीय जैविक कार्बन को कम कर आरओ मेंब्रेन पर अवांछित सामग्री के संचय को भी कम कर सकता है।

अध्ययन में जैव-निस्यंदक के सूक्ष्मजीव समुदाय का भी गहन अध्ययन किया गया, जिससे ज्ञात हुआ कि प्रमुख जीवाणु प्रोटियोबैक्टीरिया नामक समूह से संबंधित थे। यह समूह सजीवों के लिए हानिकारक, पॉलीन्यूक्लियर एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन (पीएएच) जैसे जटिल कार्बनिक यौगिकों को तोड़ने की क्षमता रखता है। प्रोटियोबैक्टीरिया समूह में स्फिंगोमोनाडेल्स, बर्कहोल्डेरियल्स, रोडोबैक्टेरेल्स एवं रोडोस्पिरिलेल्स जैसे सहायक जीवाणु सम्मिलित हैं, जिन्हें हानिकारक प्रदूषकों को साफ करने के लिए जाना जाता है।

बालू जैव-निस्यंदन विधि अपनी सरलता के लिए जानी जाती है, जो विश्व भर के कई औद्योगिक संयंत्रों के लिए एक सुलभ समाधान हो सकता है। यह विधि रिफाइनरीज के पर्यावरणीय पदचिह्न (एन्वायर्नमेंटल फूटप्रिंट) को एक बड़ी सीमा तक कम कर सकती है। शुद्ध क्वार्ट्ज बालू की सरल उपलब्धता ऐसे जैवनिस्यन्दकों के निर्माण एवं रखरखाव की कुल लागत को अत्यधिक कम करती है।

प्रा. मुखर्जी अपने आगामी कदमों की योजना बताते हुए कहती हैं, "हम अन्य माध्यमों एवं विभिन्न प्रकार के पानी/अपशिष्ट जल का उपयोग करके इस प्रक्रिया का और अधिक अभ्यास करना चाहेंगे

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