मुंबई
कार ,रेलगाड़ी ,बस या पैदल --मुंबई निवासी मॉल तक कैसे जाना पसंद करते हैं?

यह अध्ययन विश्लेषण करता है कि शॉपिंग मॉल तक जाने के लिए लोग किस प्रकार का परिवहन चुनते हैं?

अगर आप मुंबई निवासी हैं तो आनन् फानन में हवा की नमी के कारण पसीने से तरबतर होकर बदबू मारने लगेंगे। पसीने से भीगे कपड़े लेकर और बिना वातानुकूलित कार की सुविधा के भला कौन ख़रीददारी करने जाना चाहेगा? नगर में इतने सारे सुसज्जित मॉल खुल रहे हैं मगर मॉलों तक जाएँ कैसे? क्या लोग अपनी गाड़ी चलकर अपने गंतव्य स्थान पर सुखद हाल में पहुँचना चाहेंगे या कोई दूसरे विकल्प हैं उनके पास ? एक हालिया अध्ययन में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई (आईआईटी मुंबई) के शोधकर्ताओं ने इस बात को समझने की कोशिश की है कि मुंबई निवासी मॉल तक जाने का कौन सा तरीका चुनते हैं और किन कारणों से इस निर्णय पर पहुँचते हैं।

“परंपरागत रूप से ख़रीददारी के लिए जाना, इतना ज़्यादा नहीं था। परन्तु नगरों में जीवन शैली में बदलाव और कई  मॉलों में मनोरंजन के साधन उपलब्ध होने के कारण लोगों का जाना बढ़ गया है”, ऐसा भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई के स्थापत्य अभियांत्रिकी विभाग के प्राध्यापक और इस अध्ययन के प्रमुख लेखक गोपाल पाटिल कहते हैं।

“इसलिए यह जानना आवश्यक हो जाता है कि लोग मॉल जाने के लिए कौन सा तरीका चुनते हैं। परिवहन के योजनाकारों और इस बारे में निर्णय लेने वालों के लिए यात्रियों की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए इस जानकारी से मदद मिलेगी”, उन्होंने आगे कहा। ‘ट्रांसपोर्टेशन रिसर्च पार्ट F: ट्रैफिक साइकोलोजी एंड बिहेवियर’ नामक जर्नल में इस अध्ययन के परिणाम प्रकाशित किये गए हैं।

शोधकर्ताओं ने मुंबई नगर के विभिन्न क्षेत्रों में पाँच मॉलों में ६५० पर्यटकों का सर्वेक्षण किया।एक प्रश्नावली की सहायता से पर्यटकों की आयु, लिंग, व्यवसाय, आमदनी, कार का स्वामित्व और चालक लाइसेंस के बारे में जानकारी एकत्रित की ।

लोग ख़रीददारी के लिए कौन सा दिन और समय चुनते हैं और उनका मुख्य उद्देश्य क्या है, इस बारे में तथ्य जमा किये। लोगों से पूछा गया वे कैसे मॉलों तक जाते हैं, इसमें कितना खर्चा लगता है, पहुँचने में कितना समय लगता है और वापस कैसे आते हैं। अध्ययन में दो सांख्यिकीय मॉडल का उपयोग करके ये समझने का प्रयास किया कि इन कारकों से कैसे मॉल जाने का निर्णय लेते हैं।

इस अध्ययन के अनुसार, ज़ाहिर है कि लगभग आधे लोग मॉलों में ख़रीददारी करने के लिए आते हैं। परन्तु बाकी लोग सिनेमा देखने या दूसरे मनोरंजन के लिए, जैसे वीडियो गेम खेलने, आते हैं। ख़रीददारी करने के लिए आये लोगों में ४० प्रतिशत कार वाले थे जिससे हम ये निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि धनी ख़रीददार, अपनी कार का उपयोग करते हैं। मगर अधिकतर लोग, जो वहाँ मटरगश्ती करने आये थे, पैदल ही आये थे। माल के कर्मचारी, जिनके लिए ये रोज़गार है, अधिकतर सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करते पाए गए।

                                      

                                       
आकृती 1: शॉपिंग मॉल जाने के उद्देश्यों का वितरण [डेटा स्रोत]

 

मॉल जाने के विकल्पों के चुनाव में आयु का काफी महत्व पाया गया। ५५ वर्ष की आयु से अधिक वाले लोगों ने अपनी कार से यात्रा की और १८ वर्ष से कम वालों ने ऑटो रिक्शा या कार का सहारा लिया। शारीरिक रूप से मुस्तैद, १८- ३० वर्ष की आयु वालों ने दुपहिया वाहनों या सार्वजनिक परिवहन को चुना। अध्ययन से यह भी पता चला कि आय के बढ़ने पर कारों का उपयोग बढ़ा। परन्तु ऑटोरिक्शा, जो कि मुंबई में काफी प्रचलित है, का उपयोग हर प्रकार की आमदनी वालों में  समान पाया गया। वे लोग, जिनके पास चालक लाइसेंस था, अपने वाहनों का अधिक उपयोग करते देखे गए।

अध्ययन के अनुसार, करीब आधे लोगों ने सप्ताहांत में मॉल जाना अधिक पसंद किया, विशेषकर मध्यान्ह में और  संध्या के समय। कार और ऑटोरिक्शा का इस्तेमाल कार्य दिवसों और सप्ताहांत में ज़्यादा रहा। साथ ही साथ सप्ताहांत में सार्वजनिक परिवहन और दुपहियों के  उपयोग में बढ़ोत्तरी देखी गई।

अध्ययन में यह भी पाया गया कि मॉल जाने वाले लोगों का ५३% , केवल ख़रीददारी के लिए नहीं जाकर दूसरी वजहों  से जाता है, जिससे ये पता चलता है कि मॉल, ख़रीददारी के साथ साथ मनोरंजन के क्षेत्र बने रहेंगे। यह झुकाव विकासशील देशों के ज़्यादातर महानगरों में देखा गया,ऐसा शोधकर्ता कहते हैं ।

हालाँकि मुंबई में ७०% भ्रमण, सार्वजनिक परिवहन से किये जाते हैं, इनमें से केवल २० % मॉल के लिए होते हैं।

“सार्वजनिक परिवहन की यात्रा उतनी आरामदेह और भरोसेमंद नहीं होती; इसलिए लोग अपने खुद के वाहन के उपयोग को वरीयता देते हैं। लोगों में बढ़ी आय के चलते अधिकतर घरों में दुपहिए हैं और बहुत से लोग कार रखने की सामर्थ्य रखते हैं,” प्रोफेसर पाटिल इस झुकाव के बारे में कहते हैं ।

इस अध्ययन के परिणामों की सहायता से प्राधिकारी वर्ग को मॉलों के आसपास यातायात और परिवहन सम्बन्धी ज़रूरतों को पूरा करने में सहायता मिलेगी.  “ इससे मॉल के मालिकों को वाहनों की गतिविधि और पार्किंग की सुविधाएँ जुटाने में मदद मिलेगी,” प्रोफेसर पाटिल कहते हैं। उन्होंने प्राधिकारी वर्ग के लिए कुछ सुझाव भी दिए हैं कि कैसे वे  मॉलों के इर्द गिर्द यातायात का प्रबंधन कर सकते हैं. “ एक सुझाव यह है कि  सारे मुख्य स्थानकों और टर्मिनलों के अंदर ही आधुनिक मॉल हों जो दुकानों और मनोरंजन के साधनों से सुसज्जित हों अथवा मौजूदा मॉल का सार्वजनिक परिवहन से सीधा संपर्क होना चाहिए,” वे कहते हैं. जनता की आवाजाही की गुणवत्ता और आराम में  सुधार से बहुत सहायता मिलेगी.

शोधकर्ताओं का अगला कदम होगा मॉलों के आसपास माल के आवागमन का अध्ययन। मॉल की दुकानों तक माल को लाना पड़ता है और ग्राहकों द्वारा ख़रीदे हुए सामान को उनके घर तक पहुँचाना पड़ता है, इसलिए माल को लाना ले जाना बहुत महत्त्वपूर्ण हो जाता है।

“यह आवश्यक हो जाता है कि माल की मात्रा निर्धारित की जाए और साथ ही दुकानदारों और ग्राहकों के आचरण का विश्लेषण किया जाए,” ऐसा कहकर प्रोफेसर पाटिल ने अपनी बात समाप्त की।

                    

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