मुंबई
ग्राफीन ऑक्साइड का उपयोग कर मिट्टी की आर्द्रता मापने हेतु सटीक सेंसर का निर्माण

शोधकर्ताओं ने मिट्टी की नमी या आर्द्रता को मापने के लिए ग्राफीन ऑक्साइड का प्रयोग कर एक स्थिर एवं किफायती माइक्रोसेन्सर का निर्माण किया है

भारत में उपलब्ध जल का लगभग 80% उपयोग कृषि कार्य के लिए होता है। हालाँकि, सिंचाई प्रणाली के अप्रभावी होने के कारण बहुत अधिक मात्रा में यह व्यर्थ हो जाता है। चूँकि पौधों को मिट्टी की नमी में घुलने वाले पोषक तत्वों से पोषण मिलता है, और वे उस मिट्टी में सबसे अच्छे से बढ़ते हैं जिसमें नमी की मात्रा इष्टतम होती है। इसलिए किसानों को नमी के स्तर की जाँच के लिए नियमित अंतराल पर जमीन की जाँच करने की जरूरत होती है। यह नियमित कार्य बड़े खेतों (क्षेत्रफल की दृष्टि से) में अधिक कठिन हो जाता है।

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, मुंबई के शोधकर्ताओं के अनुसार इस समस्या का एक तकनीकी समाधान संभव है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, मुंबई और गुवाहाटी विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने प्राध्यापक मरियम शोजाइ बागिनी के नेतृत्व में ग्राफीन ऑक्साइड का उपयोग करके मिट्टी की आर्द्रता मापने हेतु एक सटीक एवं सस्ता सेंसर तैयार किया है। यह सेंसर मिट्टी की आर्द्रता में छोटे बदलावों का पता लगाता है और यह मिट्टी के तापमान और लवणता में परिवर्तन से ज्यादा प्रभावित नहीं होता है। यह एक सुव्यवस्थित सेंसर है, जो लम्बी समयावधियों में भी सुस्थिर परिमाण दिखाता है। साथ ही साथ बड़े पैमाने पर उत्पादन करने पर इस सेंसर की कीमत लगभग 2000 रूपये हो सकती है, जो बाजार में उपलब्ध अन्य सेंसरो की तुलना में 40 से 50 गुना सस्ती है। ये विशेषताएँ इस सेंसर का उपयोग (मुख्य रूप से बड़े क्षेत्रफल वाले खेतों में) करने के लिए इसे आकर्षक बनाती हैं।

जब मिट्टी में नमी की मात्रा बदलती है, तो उसके विभिन्न विद्युतीय गुण भी बदलते हैं। उदाहरण के लिए, जब मिट्टी में अधिक नमी होती है तो उसका विद्युतीय प्रतिरोध कम हो जाता है। बाजार में उपलब्ध अन्य सेंसर मिट्टी की नमी मापने के लिए इन गुणों में से किसी एक गुण का उपयोग करते हैं। हालांकि इन उपलब्ध सेंसरों में तापमान के बदलने से नमी की मात्रा सम्बन्धी मापों में बड़ा बदलाव आ जाता है, जिसको सुधारना आवश्यक होता है। एक अन्य प्रकार का सेंसर, टाइम-डोमेन रिफ्लेमेट्री या टीडीआर नामक तकनीक पर काम करता है, जिसमे विद्युत सिग्नल की आवृत्ति के बदलाव के अनुसार मिट्टी के गुणों में हुए बदलाव को मापा जाता है। हालांकि ये सेंसर सटीक और सुव्यवस्थित है, लेकिन इनका मूल्य 80,000 से 150,000 रूपये तक होता है, जो अपेक्षाकृत बहुत अधिक है। बड़े खेतों में, पूरे क्षेत्र को समाविष्ट करने के लिए ऐसे कई सेंसर की आवश्यकता होती है जो बड़े खेतों में इसके उपयोग को व्यावहारिक नहीं बनाते। माइक्रोसेन्सर्स, जो प्रवाहकीय पॉलिमर का उपयोग करते हैं अपेक्षाकृत सस्ते होते है, लेकिन उनमें स्थिरता और संवेदनशीलता की कमी होती है।

वर्तमान अध्ययन में शोधकर्ता मिट्टी की नमी मापने के लिए ग्राफीन ऑक्साइड के उपयोग का पता लगाना चाहते थे। ग्राफीन कार्बन का एक रूप है जिसमें एकल अणु वाले  शीट होते हैं और जो सेंसर के लिए व्यापक रूप से अध्ययन किये जाने वाले नैनो पदार्थों में से एक है। एकल शीट वाले पदार्थ अणुओं को बांधने के लिए अधिक से अधिक सतह क्षेत्र देते हैं, इसलिए इनकी संवेदनशीलता भी अधिक होती है। ग्राफीन ऑक्साइड ग्राफीन का व्युत्पादित पदार्थ है, और इसमें भी एक एकल शीट होते हैं। यह एक इन्सुलेटर है, और इसकी धारिता (कॅपैसिटॅन्स) नमी के बदलाव के साथ बदलती है। शोधकर्ताओं ने इस कार्य में कैपेसिटिव माइक्रोसेंसर बनाने के लिए ग्राफीन ऑक्साइड का उपयोग किया है।

शोधकर्ताओं ने एम.ई.एम.एस. प्रौद्योगिकी का उपयोग करते हुए ग्राफीन ऑक्साइड माइक्रोसेंसर का निर्माण किया। एम.ई.एम.एस. या माइक्रोइलेक्ट्रॉनिक सिस्टम छोटे आकार की प्रणालियां हैं जिनमें माइक्रोसेन्सर और माइक्रोएक्टुएटर के साथ-साथ यांत्रिक और विद्युतीय घटक शामिल होते हैं। वे आकार में कुछ माइक्रोमीटर से लेकर कुछ मिलीमीटर तक बड़े होते हैं, और इनका सटीक निर्माण कम लागत में भी संभव है। “एम.ई.एम.एस. प्रौद्योगिकियों में हुई उन्नति ने माइक्रोसेन्सर निर्माण को बेहतर और सस्ता बना दिया है। बड़े खेतों के लिए सेंसरो की संख्या को बढ़ाने में ये प्रौद्योगिकी प्रभावी रूप से मदद करेगी,” इस अध्ययन के लेखकों में से एक, डॉ. विनय पालपरथी बताते हैं।

सेंसर में एक सिलिकॉन ऑक्साइड सब्सट्रेट होता है, जिसकी सतह पर कांटे के आकार के इलेक्ट्रोड होते हैं। ग्राफीन  ऑक्साइड की एक परत इलेक्ट्रोड के बीच में संवेदन-तत्व के रूप में कार्य करती है। पूरी संरचना को त्रि-स्तरीय जाल से ढका जाता है  ताकि सेंसर के संपर्क में केवल नमी आ सके और दूषित पदार्थों को दूर रखा जा सके।

शोधकर्ताओं ने पहले एक परीक्षण कक्ष में सापेक्ष आर्द्रता को मापकर सेंसर का परीक्षण किया। चूँकि दोनों जल वाष्प की मात्रा को मापते हैं, उन्हें उम्मीद थी कि मिट्टी की नमी के लिए सेंसर की प्रतिक्रिया सापेक्ष आर्द्रता की प्रतिक्रिया के समान होगी। उन्होंने सेंसर को एक कक्ष में रखा और जल वाष्प की विभिन्न सांद्रता के लिए सेंसर के धारिता के परिमानों को दर्ज किया। ऐसा देखा गया कि सापेक्ष आर्द्रता के 50% से 94% तक बदलने से  सेंसर की धारिता लगभग 1200% तक बदल गई।

शोधकर्ताओ ने मैदान से एकत्रित लाल और काली मिट्टी के नमूनों में मिट्टी की आर्द्रता को मापने के लिए ग्राफीन ऑक्साइड सेंसर का उपयोग किया। मिट्टी में 1% से 55% आर्द्रता के बदलाव के साथ सेंसर की धारिता लाल मिट्टी के लिए 340% और काली मिट्टी के 370% तक बदल गयी। सेंसर की धारिता में इस परिवर्तन ने सापेक्ष आर्द्रता के साथ धारिता में परिवर्तन के समान पैटर्न का पालन किया। उन्होंने पाया कि लगातार चार महीनों से अधिक समय तक सेंसर त्वरित, सटीक और सुव्यवस्थित था, जो उन्हें एक फसल चक्र के दौरान उपयोग के लिए व्यवहार्य बनाते हैं। शोधकर्ता अब अलग-अलग फसल चक्रों के लिए इन माइक्रोसेंसरों के उपयोग का रास्ता खोज रहे हैं।

तापमान में बदलाव के साथ ये सेंसर कैसी प्रतिक्रिया करते हैं, यह पता लगाने के लिए शोधकर्ताओं ने मिट्टी में आर्द्रता की मात्रा को स्थिर रखा और तापमान को 25 डिग्री सेल्सियस से 65 डिग्री सेल्सियस तक बदलकर देखा। इस परिवर्तन के साथ शोधकर्ताओ ने सेंसर आउटपुट में केवल 6% का परिवर्तन दर्ज किया। जबकि लवणता में 0 मोल्स से 0.35 मोल्स के बदलाव से सेंसर आउटपुट में 4% का परिवर्तन देखा गया।

मिट्टी से आर्द्रता नापने वाले सेंसरो की जुड़ी हुई शृंखला बड़े खेतों की स्वचालित सिंचाई को आसान और कुशल बना सकती है। इस अध्ययन के अनुसार इस तरह के ग्राफीन ऑक्साइड-आधारित सेंसर सस्ते होने के साथ ही भविष्य के लिए आशाजनक दिखते हैं। शोधकर्ताओं ने कहा कि व्यापक क्षेत्र परीक्षण और बेहतर पैकेजिंग के साथ ये सेंसर भविष्य के व्यवसायीकरण के लिए उपयुक्त होंगे।

Hindi

Recent Stories

लिखा गया
Industrial Pollution

हाइड्रोजन आधारित प्रक्रियाओं में उन्नत उत्प्रेरकों और नवीकरणीय ऊर्जा के समावेश से स्टील उद्योग में कार्बन विमुक्ति के आर्थिक और औद्योगिक रूप से व्यवहार्य समाधानों का विकास ।

लिखा गया
Representative image of rust: By peter731 from Pixabay

दो वैद्युत-रासायनिक तकनीकों के संयोजन से, शोधकर्ता औद्योगिक धातुओं पर लेपित आवरण पर संक्षारण की दर को कुशलतापूर्वक मापने में सफल रहे।

लिखा गया
प्रतिनिधि चित्र श्रेय: पिक्साहाइव

उत्तम आपदा प्रबंधन एवं आर्थिक सुरक्षा की दृष्टि से, राज्य की वित्त व्यवस्था पर आपदा के प्रभाव का आकलन करने हेतु ‘डिजास्टर इंटेंसिटी इंडेक्स’ का उपयोग करते शोधकर्ता

लिखा गया
Lockeia gigantus trace fossils found from Fort Member. Credit: Authors

ಜೈ ನಾರಾಯಣ್ ವ್ಯಾಸ್ ವಿಶ್ವವಿದ್ಯಾಲಯದ ಸಂಶೋಧಕರು ಜೈಸಲ್ಮೇರ್ ನಗರದ ಬಳಿಯ ಜೈಸಲ್ಮೇರ್ ರಚನೆಯಲ್ಲಿ ಲಾಕಿಯಾ ಜೈಗ್ಯಾಂಟಸ್ ಪಳೆಯುಳಿಕೆಗಳನ್ನು ಕಂಡುಹಿಡಿದಿದ್ದಾರೆ. ಇದು ಭಾರತದಿಂದ ಇಂತಹ ಪಳೆಯುಳಿಕೆಗಳ ಮೊದಲ ದಾಖಲೆ ಮಾತ್ರವಲ್ಲ, ಇದುವರೆಗೆ ಪತ್ತೆಯಾದ ಅತಿದೊಡ್ಡ ಲಾಕಿಯಾ ಕುರುಹುಗಳು.

लिखा गया
ಇಂಡೋ-ಬರ್ಮೀಸ್ ಪ್ಯಾಂಗೊಲಿನ್ (ಮನಿಸ್ ಇಂಡೋಬರ್ಮಾನಿಕಾ). ಕೃಪೆ: ವಾಂಗ್ಮೋ, ಎಲ್.ಕೆ., ಘೋಷ್, ಎ., ಡೋಲ್ಕರ್, ಎಸ್. ಮತ್ತು ಇತರರು.

ಕಳ್ಳತನದಿಂದ ಸಾಗಾಟವಾಗುತ್ತಿದ್ದ ಹಲವು ಪ್ರಾಣಿಗಳ ನಡುವೆ ಪ್ಯಾಂಗೋಲಿನ್ ನ ಹೊಸ ಪ್ರಭೇದವನ್ನು ಪತ್ತೆ ಮಾಡಲಾಗಿದೆ.

लिखा गया
ಸ್ಪರ್ಶರಹಿತ ಬೆರಳಚ್ಚು ಸಂವೇದಕದ ಪ್ರಾತಿನಿಧಿಕ ಚಿತ್ರ

ಸಾಧಾರಣವಾಗಿ, ಫೋನ್ ಅನ್ನು ಅನ್ಲಾಕ್ ಮಾಡುವಾಗ ಅಥವಾ ಕಛೇರಿಯಲ್ಲಿ ಬಯೋಮೆಟ್ರಿಕ್ ಸ್ಕ್ಯಾನರುಗಳನ್ನು ಬಳಸುವಾಗ, ನಿಮ್ಮ ಬೆರಳನ್ನು ಸ್ಕ್ಯಾನರಿನ ಮೇಲ್ಮೈಗೆ ಒತ್ತ ಬೇಕಾಗುತ್ತದೆ. ಬೆರಳಚ್ಚುಗಳನ್ನು ಸೆರೆಹಿಡಿಯುವುದು ಹೀಗೆ. ಆದರೆ, ಹೊಸ ಸಂಶೋಧನೆಯೊಂದು ಈ ಪ್ರಕ್ರಿಯೆಯನ್ನು ಇನ್ನಷ್ಟು ಸ್ವಚ್ಛ, ಸುಲಭ ಮತ್ತು ಹೆಚ್ಚು ನಿಖರವಾಗಿಸುವ ವಿಧಾನವನ್ನು ರೂಪಿಸಿದೆ. ಸಾಧನವನ್ನು ಮುಟ್ಟದೆಯೇ ಬೆರಳಚ್ಚನ್ನು ಸಂಗ್ರಹಿಸುವ ಮಾರ್ಗವನ್ನು ಹುಡುಕಿದೆ.

लिखा गया
ಮೈಕ್ರೋಸಾಫ್ಟ್ ಡಿಸೈನರ್ ನ ಇಮೇಜ್ ಕ್ರಿಯೇಟರ್ ಬಳಸಿ ಚಿತ್ರ ರಚಿಸಲಾಗಿದೆ

ಐಐಟಿ ಬಾಂಬೆಯ ಸಂಶೋಧಕರು ಶಾಕ್‌ವೇವ್-ಆಧಾರಿತ ಸೂಜಿ-ಮುಕ್ತ ಸಿರಿಂಜ್ ಅನ್ನು ಅಭಿವೃದ್ಧಿಪಡಿಸಿದ್ದಾರೆ. ಈ ಮೂಲಕ ಸೂಜಿಗಳಿಲ್ಲದೆ ಔಷಧಿಗಳನ್ನು ಪೂರೈಸುವ ಮಾರ್ಗವನ್ನು ಕಂಡುಹಿಡಿದಿದ್ದಾರೆ.

लिखा गया
ಅತ್ಯಂತ ಪ್ರಾಚೀನ ವಸ್ತುವಿನ ಅಧ್ಯಯನ

ಹಯಾಬುಸಾ ಎಂದರೆ ವೇಗವಾಗಿ ಚಲಿಸುವ ಜಪಾನೀ ಬೈಕ್ ನೆನಪಿಗೆ ತಕ್ಷಣ ಬರುವುದು ಅಲ್ಲವೇ? ಆದರೆ ಜಪಾನಿನ ಬಾಹ್ಯಾಕಾಶ ಸಂಸ್ಥೆ - (ಜಾಕ್ಸ, JAXA) ತನ್ನ ಒಂದು ನೌಕೆಯ ಹೆಸರು ಹಯಾಬುಸಾ 2 ಎಂದು ಇಟ್ಟಿದ್ದಾರೆ. ಈ ನೌಕೆಯನ್ನು ಜಪಾನಿನ ಬಾಹ್ಯಾಕಾಶ ಸಂಸ್ಥೆ ಸೌರವ್ಯೂಹದಾದ್ಯಂತ ಸಂಚರಿಸಿ ರುಯ್ಗು (Ryugu) ಕ್ಷುದ್ರಗ್ರಹವನ್ನು ಸಂಪರ್ಕ ಸಾಧಿಸುವ ಉದ್ದೇಶದಿಂದ  ಡಿಸೆಂಬರ್ 2014 ರಲ್ಲಿ ಉಡಾವಣೆ ಮಾಡಿತ್ತು. ಇದು ಸುಮಾರು ಮೂವತ್ತು ಕೋಟಿ (300 ಮಿಲಿಯನ್) ಕಿಲೋಮೀಟರ್ ದೂರ ಪ್ರಯಾಣಿಸಿ 2018 ರಲ್ಲಿ ರುಯ್ಗು ಕ್ಷುದ್ರಗ್ರಹವನ್ನು ಸ್ಪರ್ಶಿಸಿತ್ತು. ಅಲ್ಲಿಯೇ ಕೆಲ ತಿಂಗಳು ಇದ್ದು ಮಾಹಿತಿ ಮತ್ತು ವಸ್ತು ಸಂಗ್ರಹಣೆ ಮಾಡಿ, 2020 ಯಲ್ಲಿ ಯಶಸ್ವಿಯಾಗಿ ಹಿಂತಿರುಗಿತ್ತು.

लिखा गया
ಕಾಂಕ್ರೀಟ್‌ ಪರೀಕ್ಷೆಗೆ ಪ್ರೋಬ್‌

ಕಾಂಕ್ರೀಟ್‌ನಲ್ಲಿ ಹುದುಗಿರುವ ರೆಬಾರ್‌ಗಳಲ್ಲಿನ ತುಕ್ಕು ಪ್ರಮಾಣವನ್ನು ಮಾಪಿಸಲು ವಿಜ್ಞಾನಿಗಳು ಒಂದು ಹೊಸ ತಪಾಸಕವನ್ನು ಅಭಿವೃದ್ಧಿಪಡಿಸಿದ್ದಾರೆ.

लिखा गया
‘ದ್ವಿಪಾತ್ರ’ದಲ್ಲಿ ಮೈಕ್ರೋ ಆರ್‌ಎನ್‌ಎ

ವೈರಲ್ ಸೋಂಕುಗಳು ಮತ್ತು ಸ್ವಯಂ ನಿರೋಧಕ ಕಾಯಿಲೆಗಳಲ್ಲಿ ಮೈಕ್ರೋ ಆರ್‌ಎನ್‌ಎ ‘ದ್ವಿಪಾತ್ರ’ದಲ್ಲಿ ಕೆಲಸ ಮಾಡುತ್ತದೆ. 

लिखा गया
ರೀಚಾರ್ಜ್ ಮಾಡಬಹುದಾದ ಬ್ಯಾಟರಿಗಳು

ಐಐಟಿ ಬಾಂಬೆ ಯ ಬ್ಯಾಟರಿ ಪ್ರೋಟೋಟೈಪಿಂಗ್ ಲ್ಯಾಬ್ ನ ಸಂಶೋಧಕರು ಇಂಧನ (ಶಕ್ತಿ) ಶೇಖರಣಾ ಸಾಧನವಾಗಿರುವ ರೀಚಾರ್ಜ್ ಮಾಡಬಹುದಾದ ಬ್ಯಾಟರಿಗಳ ಬಗ್ಗೆ ಅಧ್ಯಯನ ನಡೆಸುತ್ತಿದ್ದಾರೆ. 

Loading content ...
Loading content ...
Loading content ...
Loading content ...
Loading content ...