मुंबई
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आईआईटी मुंबई के शोधकर्ताओं ने, सिमुलेशन का उपयोग कर उड़ीसा के पारादीप बंदरगाह (भारत) में आगामी तटरेखीय परिवर्तनों का अनुमान लगाया|

मानव-प्रेरित जलवायु परिवर्तन के कई प्रभावों में से एक प्रभाव यह भी है कि ये दुनिया भर की तटरेखाओं में परिवर्तन ला सकता है। हवाओं, लहरों, ज्वारभाटों , और जलधाराओं की प्रबलता और पैटर्न में होने वाले बदलाव कई शहरों को,जिनके तट कभी उनकी शान हुआ करते थे , खतरे में डालते हैं| लेकिन, वास्तव में जलवायु परिवर्तन इन तटों को कैसे प्रभावित करता है, और बंदरगाह अधिकारी इन बदलावों से निपटने के लिए क्या कर सकते हैं? भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई के शोधकर्ताओं ने मुख्य रूप से उड़ीसा के पारादीप बंदरगाह में तटरेखाओं की पूर्व स्थिति और संभावित स्थिति को सिमुलेट किया। उन्होंने हवा की गति में बढ़त, लहरों की ऊँचाई, और समुद्र तट के साथ रेत की गतिविधि का अनुमान लगाया।

पारादीप बंदरगाह भारत के पूर्वी तट पर स्थित एक गहरे पानी का बंदरगाह है और दो शहरों कोलकाता और विशाखापत्तनम के बीच में स्थित है। किसी समय में यह एक मैन्ग्रोव पूरित दलदल था जो स्थानीय लोगों द्वारा मछली पकड़ने और लकड़ी इकठ्ठा करने के लिए उपयोग किया जाता था, अब यह भारत का आठवाँ मुख्य बंदरगाह है। शुरू होने के बाद पिछले ६० सालों से, बंदरगाह और तटरेखा स्थिर रहे हैं। फिर भी, हाल ही के वर्षों में वे मुख्यतः जलवायु परिवर्तन की वजह से, उच्च स्तर पर भू कटाव और रेत के जमाव का सामना कर रहे हैं। जलवायु परिवर्तन का आशय औसत मौसम की स्थिति में अपेक्षाकृत लम्बे समय के दौरान, अर्थात १० वर्षों से अधिक समय में परिवर्तन से है। इसमें समुद्र और भूमि के तापमान, हवा और बारिश की तीव्रता और पैटर्न में परिवर्तन सम्मिलित हैं ।

प्रोफेसर देव कहते हैं कि, "जलवायु परिवर्तन का प्रभाव काफ़ी हद तक स्थान विशिष्ट या क्षेत्र- विशिष्ट है। जो भी इंग्लैंड या दुबई के तटों पर होता है, जरुरी नहीं है कि वो भारतीय तटों में भी होगा। हमारे यहाँ लगभग ७००० किमी. के समुद्र तट हैं और जलवायु परिवर्तन का प्रभाव सभी समुद्र तटों पर समान हो ऐसी संभावना कम है ।"

अध्ययन के शोधकर्ताओं ने विश्व जलवायु अनुसंधान कार्यक्रम द्वारा विकसित 'कोऑर्डिनेटेड रीजनल क्लाइमेट डाउनस्कलिंग एक्सपेरिमेंट' (CORDEX) के परिणामों से बनाये गये एक जलवायु मॉडल का उपयोग किया। उन्होंने दो समय अंतरालों, १९८१ से २००५ तक और २०११ से २०३५ तक, में लहरों को सिमुलेट किया, और फिर उन्होंने इन समय अवधियों के दौरान हुए तलछट परिवहन और तटरेखीय परिवर्तनों का आकलन किया। अध्ययन यह मान कर चलता है कि समुद्र तट पर अगले २५ वर्षों में कोई निर्माण कार्य या विकास कार्य नहीं होगा और न ही ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से समुद्र के स्तर में वृद्धि को गिनती में लेता है जो पिछले कुछ अध्ययनों में बहुत कम पायी गई थी। अतः, यह अनुमान न्यूनतम परिवर्तन हैं जिनकी अपेक्षा पारादीप बंदरगाह पर की जा सकती है।

अध्ययन की विषय वस्तु के बारे में प्रोफेसर देव बताते हैं कि, "तटरेखाओं पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव अकेले समुद्री तटरेखाओं तक ही सीमित नहीं है। हमें सामाजिक-आर्थिक मानकों जैसे कि भविष्य में समुद्र तट के किनारे रहने वाली मानव आबादी की बढ़त , उभरते हुए रोड नेटवर्क, आधारिक संरचना, पर्यटन का विकास इत्यादि का भी अध्ययन करना होगा ।

अध्ययन के अनुसार अनुमान है कि अगले २५ वर्षों में पारादीप बंदरगाह में हवा की औसत गति में १९% की और लहरों की औसत ऊंचाई में ३२% की वृद्धि का सामना करना पड़ सकता है। शोधकर्ताओं का कहना है कि, भविष्य में, हम छोटी लहरों की तुलना में कई ऊँची लहरों और उनकी टकराने वाली दिशाओं में परिवर्तन का निरीक्षण साथ में कर सकते हैं। वे यह भी अनुमान लगाते हैं कि तटीय प्रवाह- लहरों के कारण किनारे की ओर रेत कणों का संचार - की शुद्ध और कुल मात्रा में ३७% और २४% तक की वृद्धि हो सकती है।

लहरों की तीव्रता को कम करने और उसकी वजह से तटीय क्षरण को कम करने के लिए एक संरचना जिसे ब्रेकवाटर कहते हैं, दुनिया भर के कई बंदरगाहों में बने हुए हैं।पारादीप के पास भी दो ब्रेकवाटर्स हैं, एक उत्तर में जिसकी लम्बाई ५०० मीटर है और दूसरा दक्षिण में जो लगभग १२०० मीटर लम्बा है। शोधकर्ताओं का अनुमान है कि जलवायु परिवर्तन के कारण, ब्रेकवॉटर के दक्षिण में तटरेखा बड़ी मात्रा में क्षरण का सामना करेगी, जो वर्तमान स्तर की तुलना में ४ से ८ मीटर तक बढ़ सकता है।

पारादीप में, वर्तमान क्षरण को रोकने के लिये बंदरगाह अधिकारी पहले से ही एक १६०० मीटर लम्बा समुद्रगामी ब्रेकवाटर बना रहे हैं। शोधकर्ताओं का मानना है कि इस अध्ययन के परिणाम इसको भविष्य के बदलावों से अप्रभावित बनाकर, बजट और निर्माण नीति तैयार करने में उनकी मदद कर सकते हैं। वे जल्द ही पारादीप बंदरगाह के अधिकारियों के साथ अनुमानों पर चर्चा करने की योजना बना रहे हैं।

शोधकर्ताओं ने हमारी तटरेखाओं पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने के लिए वैकल्पिक रणनीतियों का भी सुझाव दिया है। उनका कहना है, इन क्षेत्रोँ में मानव का कम से कम हस्तक्षेप, विकास की गतिविधियों और संरक्षण का संतुलन, और अधिनियम के मानदंडों का अनुसरण हमारे समुद्री तटों की सुरक्षा में काफ़ी दूर तक सहायक सिद्ध होंगे। इसके अलावा, प्रस्तावित सिंचाई परियोजना जो जल भराव और लवणता के अनुक्रमण का कारण बन सकती है, का आंकलन और समुद्र तट का पोषण ,रेत के टीलों का पुनः स्थापन , वनरोपण और मैन्ग्रोव संरक्षण जैसी गतिविधियों की योजना भी मदद कर सकती है।

“लोगों को पता होना चाहिए कि जलवायु भविष्य में समान नहीं रहेगी, ये बदलेगी। इसके परिणामस्वरूप जलवायु संबंधी परिस्थितियों में तेजी आएगी, और इसलिए तटीय पारिस्थितिकी तंत्र के भविष्य के योजनाकारों को पिछली जलवायु स्थितियों के आधार पर रणनीति तैयार करने के बजाय, बदलती जलवायु को ध्यान में रखना चाहिए और तदनुसार अल्पीकरण योजनाओं पर विचार करना चाहिये", प्राध्यापक देव का सुझाव है।

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