Kanpur
अनभिव्यक्त समझे जाने वाले ग्राही पाए गए अभिव्यक्त !

जीवित कोशिकाएं सूचना संचार हेतु विभिन्न आणविक संकेत प्रणालियों का उपयोग करती हैं। जैव अणुओं का बाहुल्य, जैसे कि प्रोभूजिन (प्रोटीन), प्रोभूजिन खंड एवं वसा अणु हमारे शरीर का दूसरे विभिन्न भागों के साथ समन्वय स्थापित करने में सहायता करते हैं। ग्राही एक अणु होता है जो कोशिका झिल्ली पर बैठता है एवं एक सूचना संकेत की प्रतीक्षा करता है। एक शर्करा अणु, एक न्यासर्ग (हॉरमोन), या मात्र एक रोगजनक अंश भी, एक कोशकीय ग्राही (सेल्यूलर रिसेप्टर) से बंध सकते हैं तथा कोशिका के बाहर से अंदर की ओर संकेत ग्रहण करना प्रारम्भ कर सकते हैं। यह बंधन आणविक घटनाओं की अनवरत श्रृंखला को सक्रिय करता है जो कोशिका के अंदर विभिन्न शारीरिक (फिजियोलॉजिकल) क्रियाओं को प्रेरित करता है।

पूर्व में दो ग्राही संकेतन (सिग्नलिंग) सहभागिता से वंचित मानकर 'अन-अभिव्यक्त ग्राही' (सायलेंट रिसेप्टर्स) कहे जाते थे। किन्तु मोलिक्युलर सैल  नामक शोध-पत्रिका में प्रकाशित एक नवीन अध्ययन में, शोधार्थियों के एक समूह ने दर्शाया कि ये ग्राही एक अणु के माध्यम से, जो कभी इस संकेतन को रोकने वाला समझा जाता था, संकेतन करते हैं। यह खोज शोथ (इन्फ़्लेमेशन) एवं कर्करोग (कैंसर) सहित अनेक दशाओं के विरुद्ध औषधियों के अभिकल्पन (डिज़ाइन) में क्रांति ला सकती है।  

कोशिकीय संकेतों की प्रतिक्रिया देने वाले ग्राहियों का एक प्राथमिक वर्ग जी-प्रोभूजिन (जी-प्रोटीन) युग्मित ग्राही होते हैं, जो जीपीसीआर कहलाते हैं। ये देखने एवं गंध लेने से लेकर हृदय-स्पंदन तथा प्रतिरक्षी प्रतिक्रियाओं एवं और भी बहुत कुछ तक,  प्राय: प्रत्येक शारीरिक प्रक्रिया में सम्मिलित रहते हैं। ये ग्राही संकेतन हेतु, जी-प्रोभूजिन अर्थात गुआनाइन न्यूक्लिओटाइड-बाइंडिंग प्रोभूजिन का उपयोग करते हैं। समस्त जीपीसीआर संरचनात्मक रूप से विशिष्ट होते हैं - ये दीर्घ श्रृंखला प्रोभूजिन हैं, जिनकी श्रृंखला एक कोशिका झिल्ली का ठीक सात बार अंदर से बाहर की ओर चक्रमण करती है। एक संकेत-अणु कोशिका झिल्ली पर एक जीपीसीआर से बाहर की ओर बंधा होता है। जीपीसीआर सक्रिय हो जाता है तथा अंदर एक विशिष्ट जी-प्रोभूजिन को उत्तेजित करता है। जी-प्रोभूजिन आगे पुन: कोशिका के अंदर संकेत-अंत:क्रियाओं को आरंभ करता है, जो कोशिका से एक विशेष प्रतिक्रिया को प्रेरित करता है। 

वर्तमान शोध में, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, कानपुर के अरुण के शुक्ला तथा उनके समूह ने टोहोकु विश्वविद्यालय, जापान, मॅकग्रिल विश्वविद्यालय (कनाडा) एवं क्वीन्सलैंड विश्वविद्यालय (ऑस्ट्रेलिया) के वैज्ञानिकों के साथ मिलकर पता लगाया कि दो ग्राही जो पारंपरिक जीपीसीआर सदृश दिखाई देते हैं, अत: जीपीसीआर माने जाते हैं,  पारंपरिक जी-प्रोभूजिन के माध्यम से संकेतन नहीं करते। इसके स्थान पर, वे एरेस्टिन नामक एक प्रोभूजिन का उपयोग करते हैं। पाठ्य-पुस्तकों का पुनर्लेखन करना होगा! जैसा कि आप जानते हैं, आरंभ में ऐसा विश्वास था कि एरेस्टिन ग्राही को बाँधता है एवं संकेतन को अवरुद्ध करता है; अत: एरेस्टिन कहलाता है।     

समस्त जीपीसीआर, अकेले जी-प्रोभूजिन को ही प्रेरित करने के पुस्तकीय ज्ञान के अनुरूप कार्य नहीं करते। कुछ जीपीसीआर जी-प्रोभूजिन एवं एरेस्टिन दोनों के माध्यम से संकेतों को प्रेषित करते हैं। और अब, इस अध्ययन के साथ, हम जानते हैं कि जीपीसीआर समझे जाने वाले कुछ ग्राही, एरेस्टिन संकेतन (सिग्नलिंग) के द्वारा कार्य करते हैं, न कि जी-प्रोभूजिन जनित संकेतन के द्वारा।  

शोधकर्ता C5a पेप्टाइड नामक एक प्रकार के ग्राही का अध्ययन कर रहे थे, जिसमें संरचनात्मक रूप से समान ग्राहियों C5aR1 और C5aR2 का एक युग्म सम्मिलित है, जो शरीर की रक्षा के लिए शोथ उत्पन्न कर एक व्याधिजनक आक्रमण (पैथोजेनिक अटैक) का प्रत्युत्तर देते हैं। व्याधिजनक आक्रमण काल में हमारा शरीर पीड़ा की उत्तेजित अवस्था में विभिन्न अणुओं का उत्पादन करता है जो कोशिकाओं में विभिन्न क्रियाओं को उद्दीपित कर अतिक्रमी (इंट्रूडर) के विरुद्ध संकेतन को प्रेरित करते हैं। C5a पेप्टाइड इसी प्रकार का एक अणु है। यह C5aR1 एवं C5aR2 दोनों से बंधता है। वैज्ञानिकों ने प्रदर्शित किया है कि C5aR1 जी-प्रोभूजिन के माध्यम से अंतर्कोशिकीय संकेतन (इंट्रासेल्युलर सिग्नलिंग) आरंभ करता है। दूसरी ओर C5aR2 भी एक जीपीसीआर है, जो जी-प्रोभूजिन के माध्यम से संकेतन करता नहीं दिखाई देता। अत: C5aR2 को अनभिव्यक्त ग्राही समझा गया। किंतु C5aR2 संरचनात्मक रूप से C5aR1 के समान होने एवं समान उद्दीपक के द्वारा सक्रिय किये जाने पर भी C5aR1 के सदृश अंतर कोशिकीय संकेतन कैसे नहीं उत्पन्न कर सकता है? यही वह प्रश्न था जिसने C5aR2 में एरेस्टिन संकेतन की खोज हेतु शोध-दल का मार्ग प्रशस्त किया। 

"हम जानते थे कि इन ग्राहियों (D6R एवं C5aR2) को अवरुद्ध करने से महत्वपूर्ण शरीर क्रियात्मक परिवर्तन हुये। किंतु यह कैसे हुआ, कोई नहीं जानता था क्योंकि ये ग्राही पारंपरिक जी-प्रोभूजिन पथ के माध्यम से संकेतन नहीं कर रहे थे। हम इन शारीरिक परिवर्तनों के पीछे छिपी हुई प्रणाली को समझना चाहते थे, तभी हम इसकी गहराई में गए," शुक्ला जी स्पष्ट करते हैं।  

श्री शुक्ला एवं उनके समूह ने दर्शाया कि उनके द्वारा अध्ययन किए गए दो विशिष्ट जीपीसीआर, D6R एवं C5aR2, जो दोनों ही संकेतन-रहित जीपीसीआर के रूप में वर्गीकृत किए गए हैं, एरेस्टिन के द्वारा संकेतन कर सकते थे किंतु जी-प्रोभूजिन के द्वारा नहीं। वर्तमान खोज संरचनात्मक रूप से जीपीसीआर सदृश दो ग्राहियों के द्वारा प्रेरित अपारंपरिक संकेतन प्रणाली पर विशेष रूप से प्रकाश डालती है।  

"जब हमें इन ग्राहियों की संकेतन क्षमता ज्ञात हुई, तब हमारे लिए यह 'यूरेका' क्षण था , विशेषकर जब 'अनभिव्यक्त' (सायलेंट) के रूप में मान्य हुए इनको लगभग 20 वर्ष से अधिक हो चुके हैं। कोई नहीं जानता था कि वे वस्तुत: एक वैकल्पिक प्रणाली के माध्यम से संकेत करते हैं," डॉ. शुक्ला की प्रयोगशाला में कार्यरत विद्यावाचस्पति (पीएचडी) की एक शोध छात्रा एवं इस अध्ययन के प्रथम लेखकों में से एक, शुभि पांडे कहती है। 

विभिन्न प्रयोगों का उपयोग करते हुये, शोध दल ने स्पष्ट किया कि कैसे एरेस्टिन के साथ संकेतन का प्रसारण होता है एवं कुछ आणविक घटनाएं सम्मिलित होती हैं। किंतु यह खोज महत्वपूर्ण क्यों है?   

उच्च - रक्तचाप, दमा, तीव्रग्राहिता (एलर्जी), अम्लता, कर्क-रोग, एवं अन्य कई को सम्मिलित करते हुये, विपणि (मार्केट) में विद्यमान वर्तमान औषधियों में से प्राय: आधी औषधियाँ जीपीसीआर को लक्षित  करती हैं। औषधियाँ जी-प्रोभूजिन को उद्दीप्त कर सकने वाले जीपीसीआर क्षेत्र को अवरुद्ध कर कार्य करती हैं - इस प्रकार कोशिका संकेत की प्रतिक्रिया देने में विफल हो जाएगी। यह चिकित्सकीय रूप से उपयोगी है, विशेषकर यदि संकेत, कोशिकाओं को प्रेरित करता है, उदाहरण के लिए तीव्रग्राहिता प्रतिक्रिया की उत्पत्ति के लिए ।  

"जी-प्रोभूजिन एवं एरेस्टिन के माध्यम से प्राप्त संकेतन एवं शारीरिक प्रतिक्रियाएँ विशिष्ट रूप से बहुत भिन्न हैं। एक जीपीसीआर को अवरुद्ध करना दोनों संकेतन मार्गों (सिग्नलिंग पाथवे) को अवरुद्ध कर सकता है, और विशिष्टता का यह अभाव जीपीसीआर को लक्षित करने वाली अनेकों औषधियों के दुष्प्रभाव को जन्म देता है,” शुक्ला जी विस्तृत रूप से कहते हैं।

शुक्ला जी एवं उनके दल के द्वारा स्पष्ट किया गया इन संकेतन मार्गों का ज्ञान उन औषधीय अणुओं के निर्माण में सहायता करेगा, जो या तो जी-प्रोभूजिन अथवा एरेस्टिन के माध्यम से संकेतन हेतु विशिष्ट हैं एवं संभावित दुष्प्रभावों को कम करते हैं। आवश्यकता होने पर यह एक ही समय पर दोनों मार्गों के विरुद्ध औषधि की खोज में सहायता कर सकता है।     

हम कोरोना विषाणु आक्रमण के परिदृश्य में C5aR1 एवं C5aR2 का उदाहरण लेते हैं। विषाणु के आक्रमण के उपरांत, दोनों ग्राही सक्रिय हो जाते हैं तथा क्रमश: जी-प्रोभूजिन एवं एरेस्टिन के माध्यम से संकेतन का आरम्भ करते हैं, जिसकी प्रतिक्रिया शोथ (इन्फ्लेमेशन) के रूप में परिणामित होती है। मान लीजिये स्थितियाँ और अधम होकर तीव्र एवं अत्यधिक शोथ (इन्फ़्लेमेशन) प्रतिक्रिया के रूप में परिणामित हो जाती हैं। तो ऐसी  स्थिति में, यह विविध अंग विफलताओं  (मल्टी ऑर्गन फेलियर) एवं अंतत: मृत्यु का कारण भी हो सकती है।

वर्तमान में वैज्ञानिक कुछ कोविड-19 प्रकरणों में संभावित चिकित्सा के रूप में C5a पेप्टाइड की C5aR1 के साथ अंत:क्रिया को अवरुद्ध करने हेतु प्रयासरत हैं। वर्तमान अध्ययन से प्राप्त ज्ञान से अब C5aR1 के अतिरिक्त C5aR2 को भी लक्षित करने वाली औषधियों का  विकास हो  सकता हैं।         

“आगामी चरण संरचनात्मक स्वरूप को समझ कर यह ज्ञात करने का है कि किस प्रकार से एरेस्टिन की इन दोनों पृथक-पृथक ग्राहियों के साथ होने वाली यह विशिष्ट अंत:क्रिया, कोशिका में विभिन्न संकेतन प्रतिक्रियाओं का संचालन करती है, ताकि हम इन ग्राहियों को बाँध सकने वाले औषधीय-अणुओं की पहचान कर सकें,” आगामी लक्ष्यों के संदर्भ में सुश्री पाण्ड्या कहती हैं।  

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