मुंबई
सूखे दागों का विकोडन

सूखे रंग या जमा स्याही के आकार इन कोलॉइड में मौजूद कणों की एकाग्रता और आकार से संबंध रखते हैं

क्या आपने कभी सोचा है कि हम इंकजेट प्रिंटर के लिए केवल विशिष्ट स्याही का उपयोग ही क्यों करते हैं? मन मर्ज़ी के किसी डाई का प्रयोग क्यों नहीं? गलत स्याही से प्रिंटिंग उबड़-खाबड़ और धब्बों भरी हो सकती है। प्रिंटर की स्याही के तत्व कोलॉइड होते हैं, जो कि तरल पदार्थ में छोटे ठोस कणों को निलंबित करने से बनते हैं। प्रिंटर के लिए निर्दिष्ट स्याही में ठोस कणों के आकार और एकाग्रता को ऐसे डिज़ाइन किया जाता है, ताकी वे समान रूप से कागज पर जमा हो सकें।

प्रिंटर की स्याही की तरह, पेंट और कुछ दवाएं भी कोलॉइड होती हैं। रक्त भी एक प्रकार का कोलॉइड होता है, जिसके सूखे दागों को देखकर व्यक्ति का स्वास्थ्य निर्धारित किया जा सकता है। शोधकर्ता दशकों से जमे हुए कोलॉइड का अध्ययन करते आये हैं। इलेक्ट्रॉनिक्स बनाने के लिए भी कोलॉइड का उपयोग किया जाता है। ट्रैक बनाने के लिए तांबे के कोलॉइड को सर्किट बोर्ड पर जमा किया जा सकता है। तांबे के कणों के आकार और सांद्रता को नियंत्रित कर हम यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि ट्रैक का घनत्व एक समान हो।

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई (आईआईटी बॉम्बे) में प्राध्यापक रजनीश भारद्वाज और उनका समूह कोलॉइडल जमाव और उनकी विशेषताओं को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारकों का अध्ययन करता है। ठोस सतह पर जमाव के सूखने पर उसका विशिष्ट आकार और घनत्व होता है। मोनाश विश्वविद्यालय के सहकार्यता में किये गए हाल के एक अध्ययन में प्राध्यापक भारद्वाज और उनके दल ने जांच की कि किसी कोलॉइड में निलंबित कणों की एकाग्रता और आकार ने इन जमावों को कैसे प्रभावित किया। उन्होंने पाया कि कोलॉइड में ठोस पदार्थ की एकाग्रता अत्यधिक होने पर जमाव में दरार पड़ने की संभावना अधिक हो जाती है। साथ ही, जब एकाग्रता अधिक होती होती है और निलंबित कणों का आकार छोटा होता है, तो जमाव के कई स्तर बनते हैं।

प्रोफेसर भारद्वाज ने जिस मसले का समाधान निकाला है वह पुरानी कॉफी-रिंग समस्या जैसी है। आपने देखा होगा कि कॉफी गिरने से बने दाग परिधि के आसपास गहरे और बीच में हलके होते हैं। ऐसा इसलिए होता है कि जैसे जैसे बूंद सूखती जाती है, अधिकांश कण परिधि के पास जमा होते रहते हैं। कई कोलॉइड इसी तरह के रिंग जैसे आकार वाले दाग बनाते हैं, जो ठोस और तरल पदार्थों की किस्म पर निर्भर नहीं करते।

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई के शोधकर्ताओं ने पानी में पॉलीस्टीरीन के मानकों वाले कोलॉइडल घोल का इस्तेमाल किया और इस बात का अवलोकन किया कि इसकी बूंदें साफ काँच की स्लाइड्स पर कैसे जमा होती हैं। हमने पूछा पॉलीस्टीरीन ही क्यों?

“पॉलीस्टीरीन आदर्श कण हैं। इनका घनत्व पानी के बराबर होता है,” प्रा.भारद्वाज ने बताया।

चूंकि इनका घनत्व पानी के समान है, ये मनके पानी में समान रूप से मिश्रित रहते हैं और नीचे आकर नहीं बैठते।

शोधकर्ताओं ने पाया कि जब कोलॉइड्स का गाढ़ापन अधिक होता है तो छल्ले अधिक मोटे होते हैं। कणों के आकार छोटे होने से जमाव में दरारें अधिक प्रकट हो जाती हैं।

“जब बूंदें सूखने लगती हैं, तो पॉलीस्टीरीन के कण काँच की सतह पर चिपक जाते हैं। वे जैसे जैसे सूखते हैं, इन कणों को यांत्रिक तनाव महसूस होता है जो जमाव में दरारें पैदा करते हैं। बड़े कणों के बीच अधिक जगह मौजूद होती है। इसलिए वे कम तनाव महसूस करते हैं और इनमें दरारें नहीं पैदा होती,” प्रा.भारद्वाज ने समझाया।

इसके अलावा, शोधकर्ताओं ने जमाव में तीन अलग-अलग साँचे देखे; टूटे हुए एकल-स्तर वाले छल्ले, अखंडित एकल-स्तर वाले छल्ले और बहु-स्तरिय छल्ले। कम गाढ़ेपन में निलम्बित बड़े कण टूटे हुए एकल-स्तर वाले छल्ले बनाते हैं, जबकि अधिक गाढ़ेपन में ये अखंडित एकल-स्तर वाले छल्ले बना देते हैं। अधिक गाढ़ेपन में घुले छोटे कण और बहुत अधिक गाढ़ेपन में घुले बड़े कण कई परतों वाले छल्लों का निर्माण करते हैं।

शोधकर्ताओं ने पता लगाया कि कोलॉइड के बढ़ते गाढ़ेपन के साथ छल्ले के जमाव की ऊंचाई और चौड़ाई कैसे बढती जाती है। उन्होंने परिधि में कोलॉइडल कण के जमा होने के दर की भी जांच की। इन जांच के परिणाम मौजूदा गणितीय मॉडल के अनुकूल साबित हुए।

काँच जैसी लसलसी और पानी को आकर्षित करने वाली सतहों पर छोटी बूंद की सीमा निर्धारित होती है। इसे संपर्क रेखा का पिनिंग किया जाना कहते हैं। नॉनस्टिक या पानी का प्रतिरोध करती सतहों पर पानी की पिन की हुई कॉन्टैक्ट लाइन नहीं होती है। "सतह और तरल के बीच का घर्षण पिनिंग निर्धारित करता है," प्राध्यापक भारद्वाज बताते हैं। जब संपर्क लाइन को पिन किया जाता है तो कोलॉइडल जमाव छल्ले के आकार का होता है। एक छोटी बूंद केंद्र में मोटी और परिधि पर पतली होती है। परिधि से तरल पदार्थ जल्दी ही वाष्प में बदल जाता है।

"चूंकि संपर्क लाइन पिन की हुई रहती है और बूँद का घेरा सिकुड़ता नहीं है, अतएव सूखते तरल की भरपाई करने के लिए केंद्र से तरल परिधि की ओर बहती है। यह प्रवाह अपने साथ बूंद में बिखरे ठोस कणों को भी ले जाता है, जो छल्ला बनाते हैं," प्रा.भारद्वाज बताते हैं।

शोधकर्ताओं ने यह अनुमान लगाने के लिए एक रूपरेखा तैयार की कि कोलॉइड कणों के आकार और गाढ़ेपन के आधार पर उसके जमाव के छल्ले एकल-स्तर वाले होंगे या एकाधिक स्तर वाले, और उनमें दरार पैदा होगी या नहीं। इस रूपरेखा का उपयोग किसी विशेष प्रयोजन में कोलॉइडल मापदंडों को ठीक करने के लिए किया जा सकता है।

“इस परियोजना का दीर्घकालिक लक्ष्य कॉफी के छल्लों के बजाय समरूप जमाव बनाना है जो इंकजेट प्रिंटिंग और बायोऐसेज़ के प्रयोजनों के लिए उपयोगी सिद्ध होगा,” प्रा.भारद्वाज कहते हैं।

अब अगली बार जब आप किसी खाली दीवार की ओर ताकें और हैरत करें कि पेंट (एक कोलॉइड) में दरार क्यों नहीं आता है, तो आप अनुमान लगा सकते हैं कि पेंट के कण पर्याप्त ढंग से बड़े हैं और उसका गाढ़ापन इस तरह से समायोजित किया गया है जो यह सुनिश्चित करता है कि इष्टतम सघनता में पुताई में दरारें न आयें।


रोचक तथ्य

प्रोफेसर भारद्वाज बताते हैं कि कॉफी के छल्ले की समस्या गणितीय रूप से कई अन्य रोज़मर्रा के सवालों जैसी ही है। यदि आप बारीकी से निरीक्षण करें, तो आप देख सकते हैं कि फ्रेंच फ्राइज़ किनारों पर गहरे रंग के होते हैं। गर्म तेल के छनते हुए उनके किनारों पर अधिक गर्मी का आदान-प्रदान होता है। गणितीय रूप से गर्मी का यह हस्तांतरण किसी वाष्पीकृत छोटी बूंद के बाहर तरल वाष्प के गाढ़ेपन में आते परिवर्तन के जैसा ही है। लाइटनिंग अर्रेस्टर के किनारों में चार्ज का संचयन भी मिलती जुलती घटना है। गर्मी, वाष्प की सांद्रता और चार्ज के घनत्व को पता लगाने के लिए यहाँ "लैप्लास समीकरण" का इस्तेमाल करना पड़ता है। गर्मी, कोलॉइड्स और विद्युतीय चार्ज से संबंधित अलग-अलग क्षेत्रों में उपयोग किए जाने वाले विज्ञान को बांधती यह सार्वभौमिकता बेहद रोचक है।
 

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