Mumbai
Representative image of blood vessels

रोगों तथा स्वास्थ्य स्थितियों की जानकारी, निदान एवं इनका उपचार करने हेतु शोधकर्ता एवं चिकित्सक कोशिकाओं (सेल) तथा ऊतकों (टिशू) के जैविक व्यवहार का अध्ययन कर रहे हैं। शोधकर्ताओं ने यह देखना प्रारम्भ किया है कि कोशिकाओं तथा ऊतकों की प्रत्यास्थता (इलास्टिसिटी), कठोरता (स्टिफनेस) एवं सामर्थ्य (स्ट्रेंथ) जैसे भौतिक एवं यांत्रिक गुण स्वस्थ एवं रोग की स्थितियों में शरीर की प्रक्रियाओं को कैसे प्रभावित करते हैं।

 

कोशिका पर बल आरोपित किये जाने पर इसकी कठोरता विभिन्न रोगों एवं स्थितियों में परिवर्तित होती दिखाई देती है, जो इसमें होने वाली विकृति की संकेतक है। उदाहरण स्वरूप, लाल रक्त कोशिकाओं की कठोरता आयु बढ़ने या मलेरिया तथा सिकल-सेल रक्तक्षय जैसे रोगों के कारण बढ़ सकती है। जबकि कैंसर कोशिकाओं की कठोरता उसी प्रकार की स्वस्थ्य कोशिकाओं की तुलना में कम देखी जाती है। कोशिकाओं की कठोरता मापने की क्षमता कुछ रोगों के प्रारम्भिक निदान, रोग की वर्तमान अवस्था, रोग का आगे का अनुमान करने तथा इसके उपचार हेतु औषधियों की खोज में सहायक हो सकती है।

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई (आईआईटी मुंबई) की सविता कुमारी, निनाद मेहेंदले, प्राध्यापिका देबजानी पाल तथा स्वीडन के नॉर्डिक इंस्टीट्यूट फॉर थियोरेटिकल फिजिक्स के प्राध्यापक ध्रुबादित्य मित्रा के शोधदल ने एक ऐसा सूक्ष्म-द्रव उपकरण (माइक्रोफ्लुइडिक डिवाइस) विकसित किया है जो कुछ ही सेकंड में मानवीय रक्त में स्थित हजारों लाल रक्त कोशिकाओं (रेड ब्लड सेल्स या आरबीसी) की कठोरता को माप सकता है। यह शोध सेल रिपोर्ट्स फिजिकल साइंस नामक शोधपत्रिका में प्रकाशित हो चुका है।

आईआईटी मुंबई का यह उपकरण सुसंहत एवं सुवहनीय (कॉम्पैक्ट एंड पोर्टेबल) है। सिकल-सेल रक्तक्षय जैसे रोगों या मलेरिया के रोगियों के रक्त नमूनों में लाल रक्त कोशिकाओं की कठोरता पर दृष्टि रखने हेतु इसका उपयोग सरलता पूर्वक किया जा सकता है। संग्रहित रक्त-कोश की लाल रक्त कोशिकायें भी कभी-कभी कठोर हो सकती हैं, जिससे संग्रहित रक्त रक्ताधान के लिए अनुपयोगी हो जाता है। रक्ताधान के पूर्व संग्रहित रक्त के त्वरित एवं सरल परीक्षण हेतु भी इस उपकरण का उपयोग किया जा सकता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि अनुचित रक्त-कोश का आधान नहीं किया जा रहा है। इस उपकरण में एक छोटी सूक्ष्म-द्रव चिप तथा एक सुवहनीय प्रकाशकीय सूक्ष्मदर्शी (ऑप्टिकल माइक्रोस्कोप) का उपयोग किया गया है। रक्त के नमूने में लाल रक्त कोशिकाओं की कठोरता का वितरण प्राप्त करने हेतु सूक्ष्मदर्शी द्वारा ग्रहण किये गए चलचित्र का एक विश्लेषण सॉफ्टवेयर के माध्यम से स्कैन किया जाता है।

कोशिकाओं की कठोरता या विकृति मापन संबंधी पारंपरिक विधियाँ विभिन्न पद्धतियों का उपयोग करती हैं। किन्तु उनमें से अधिकांश एक समय में एक ही कोशिका की विकृति को माप सकती हैं। ये विधियाँ महँगी एवं समय लेने वाली हैं, साथ ही ऑप्टिकल ट्वीज़र, ऑप्टिकल स्ट्रेचर एवं एटोमिक फोर्स माइक्रोस्कोपी जैसी कुछ विधियों के लिए अलमारी जितने बड़े उपकरण की आवश्यकता होती है। अन्य माइक्रोफ्लुइडिक्स आधारित विधियाँ इस प्रेक्षण पर निर्भर करती हैं कि कोशिका का आकार परिवर्तन कैसे होता है। अत: इन विधियों के लिए 3000 फ़्रेम प्रति सेकंड की दर से चित्र ग्रहण करने में सक्षम उच्च-गति कैमरे की आवश्यकता होती है, जो सामान्य डिजिटल कैमरे की तुलना में कम से कम 100 गुना तीव्र हो।

“हमारा उपकरण एक अद्वितीय युक्ति का प्रयोग करता है, जो तरल माध्यम में प्रवाहित होने वाली नरम विकृत संरचनाओं या कोशिकाओं के विशिष्ट व्यवहार का परीक्षण करने में सक्षम है। जब कोशिकाओं की प्रवाह-नलिका की चौड़ाई परिवर्तित होती है, तो कोशिकाओं पर कार्य करने वाले बल परिवर्तित हो जाते हैं, एवं कोशिकाओं की कठोरता के आधार पर इस उपकरण में उनके मार्ग परिवर्तित हो जाते हैं,” शोध-अध्ययन की प्रमुख प्रा. देबजानी पाल बताती हैं।

Schematic of device
चित्र श्रेय : कुमारी एट. आल, सेल रिपोर्ट्स फिजिकल साइंस (2024), https://doi.org/10.1016/j.xcrp.2024.102052

आईआईटी मुंबई के इस उपकरण में कुछ दस माइक्रोमीटर चौडाई की (लगभग मानव बाल जितना मोटा) एक प्रवाहिका (चैनल) है जिसके माध्यम से कोशिकाएं प्रवाहित हो सकती हैं। यह एक कुप्पिका (फनेल) में खुलती है। नलिका एवं कुप्पिका के संधिस्थल पर अवरोध के रूप में एक अर्ध-बेलनाकार स्तंभ स्थित है। जब स्थिरता एवं तीव्रता से प्रवाहित होने वाली ये लाल रक्त कोशिकाएँ बाधा का सामना करती हैं, तो वे कुप्पिका में प्रवेश करते ही विक्षेपित हो जाती हैं। वे जितनी सख्त होती हैं, उतनी ही अधिक विक्षेपित होती हैं। कठोरता की गणना इन लाल रक्त कोशिकाओं के विक्षेप के आधार पर की जा सकती है।



आईआईटी मुंबई के उपकरण से गुजरते हुए लाल रक्त कोशिकाओं का एक अर्ध-गति लघु-चलचित्र

श्रेय: सविता कुमारी एवं देबजानी पाल

एक मितव्ययी एवं सरलतम चलित उपकरण निर्माण करना उतना ही महत्वपूर्ण है जितना किसी अवधारणा को सैद्धांतिक रूप से मान्यता देना, एवं इसके लिए विचारपूर्वक अभियंत्रण (इंजीनियरिंग) की आवश्यकता होती है।

प्राध्यापक पाल कहती हैं, “ऐसी कुप्पिका निर्मित करना चुनौतीपूर्ण था जिसकी चौड़ाई उसकी ऊंचाई से दस गुना अधिक हो। यदि हम बहुत सावधान नहीं होते तो यह निर्माण के दौरान नष्ट हो जाता।”

नलिका केवल 5 माइक्रोमीटर लम्बी है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि लाल रक्त कोशिकाएँ अर्ध-बेलनाकार स्तंभ के निकट पहुँचने तक सपाट रहें। नलिका की चौड़ाई 40 माइक्रोमीटर है एवं कुप्पिका का शंकु चौड़ाई में खुलता है, तथा शंक्वाकार भाग की ऊँचाई 5 माइक्रोमीटर रखी गयी है।

कठोरता का मापन यंग मापांक (यंग्स मॉड्यूलस) के रूप में किया जाता है। सूक्ष्मद्रव उपकरण अर्थात सूक्ष्मदर्शी कैमरे से ग्रहण किया गया चलचित्र लाल रक्त कोशिकाओं के प्रक्षेप पथ को अंकित करता है जिससे हम विक्षेप कोण प्राप्त करते हैं। उपकरण से प्राप्त विक्षेप कोणों का संबंधित यंग मापांक के साथ अंशांकन (कैलिब्रेशन) किया जाता है। एक बार किये गए अंशांकन अभ्यास में शोधदल ने स्वस्थ लाल रक्त कोशिकाओं से सम्बंधित विक्षेपण कोणों को मापा एवं उसी नमूने हेतु एटॉमिक फोर्स माइक्रोस्कोपी (एएफएम) द्वारा मापे गए लाल रक्त कोशिकाओं के यंग मापांक के साथ विक्षेपण कोणों का अंशांकन किया। एएफएम मापन, आईआईटी मुंबई की तनुश्री रॉय ने प्राध्यापक शमिक सेन के नेतृत्व में किया।

आदर्श रूप में, आईआईटी मुंबई के इस उपकरण के माध्यम से एक ही लाल रक्त कोशिका भेजकर, एएफएम का उपयोग करके उसी कोशिका के यंग मापांक को मापकर, उपकरण के अंशांकन (कैलिब्रेट) करने हेतु सैकड़ों बार इस विधि की पुनरावृत्ति की जा सकती है। परन्तु प्रयोगों की इस प्रकृति को देखते हुए यह एकल-कोशिका अंशांकन विधि व्यावहारिक रूप से असंभव है। अत: कार्यदल ने उपकरण के अंशांकन हेतु डेटा-आधारित दृष्टिकोण का उपयोग किया। प्रा. ध्रुबादित्य मित्रा ने एल्गोरिदम का विकास किया, जिसने लाल रक्त कोशिकाओं के विक्षेपण कोण का उसके यंग मापांक के साथ संबंध स्थापित किया।

“एल्गोरिदम से हमें एक अंशांकित वक्र (कैलिब्रेटेड कर्व) प्राप्त हो गया है। इसका उपयोग अब एएफएम जैसे किसी अतिरिक्त मापन के बिना, किसी भी अज्ञात लाल रक्त कोशिका के विक्षेपण कोण को सीधे उसकी कठोरता से जोड़ने हेतु किया जा सकता है,” प्रा. मित्रा कहते हैं।

यद्यपि इस उपकरण का उपयोग अभी केवल लाल रक्त कोशिकाओं की कठोरता के मापन हेतु किया जा सकता है। कोशिकाबाह्य पुटिकाओं (एक्स्ट्रा सेलुलर वेसिकल्स) जैसे नैनो आकार के पदार्थों की कठोरता के मापन हेतु इसे लगभग 100 गुना लघु बनाया जा सकता है। कोशिकाबाह्य पुटिकाएँ उच्च आवर्धन (हाय रेजोल्यूशन) सूक्ष्मदर्शी के द्वारा केवल चमकीले बिंदुओं के रूप में दृश्य होती हैं। इनकी कठोरता के मापन हेतु आकार परिवर्तन पर निर्भर करने वाली विधियों का उपयोग नहीं किया जा सकता है।

“क्योंकि हमारी विधि लचीले पदार्थ के प्रक्षेप पथ के मापन पर निर्भर है न कि उसके आकार पर, अत: इसे नैनो पदार्थों के लिए अधिक सरलता से सामान्यीकृत किया जा सकता है,” शोधकर्ता कहते हैं।

शोधदल की योजना ऐसे उपकरण विकसित करने की है जो शरीर में स्थित अन्य प्रकार की कोशिकाओं की कठोरता को माप सकें तथा विभिन्न आकार व माप वाली कोशिकाओं के लिए भी उपयुक्त हो

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