मुंबई
ऊष्मा उत्पन्न करने वाली प्रणालियों का कुशलतापूर्वक शीतलन

छायाचित्र : कॉस्पर्स एगलिटिस 

वायु-यानों के और बेहतर प्रदर्शन एवं तीव्र गति की बढ़ती माँग के साथ, उनके दहन इंजनों का संचालन तापमान बढ़ रहा है। गैस टरबाइन के भीतर ब्लेड्स जो विमान को शक्ति प्रदान करते हैं, गर्मी को सहन करने की अपनी चरम सीमा तक पहुँच चुके हैं। इस गर्मी को दूर करने एवं ब्लेड्स को लंबी अवधि तक चलायमान रखने के लिए एक उन्नत शीतलन प्रणाली की आवश्यकता है। एक नवीन खोज में, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, मुंबई (आईआईटी बॉम्बे) के शोधकर्ताओं ने गैस टरबाइन के ब्लेड्स एवं अन्य उपकरणों के शीतलीकरण हेतु इष्टतम युक्ति की स्थापना के लिए ऊष्मागतिकी के नियमों का उपयोग किया है।

भौतिक शास्त्र में, ‘कार्य’ का एक निश्चित अर्थ होता है: यह वस्तुओं को विस्थापित करने में व्यय होने वाली ऊर्जा की मात्रा होती है। यह उपयोगी ऊर्जा के परिमाण को निर्धारित करता है। दूसरी ओर, ऊष्मा यादृच्छिक अर्थात रेंडम ऊर्जा है, जो एक प्रत्यक्ष ऊर्जा स्रोत नहीं है। उदाहरण स्वरूप ऊष्मा प्रत्यक्ष रूप से एक पंखे या कार को शक्ति प्रदान नहीं कर सकती। भौतिकशास्त्री, ऊष्मा के कार्य में परिवर्तन की अनुत्क्रमणीयता (इर्रिवर्सिबिलिटी) के परिमाण को निर्धारित करते हैं, जिसे वे ‘एन्ट्रॉपी’ कहते हैं और जो किसी भी तंत्र में समय के साथ बढ़ती है। अर्थात, एक तंत्र के द्वारा किसी साधन-सम्पन्न कार्य के ऊष्मा में रूपांतरण के समय जितनी अधिक ऊष्मा उत्पन्न होती है, उतनी ही अधिक एन्ट्रॉपी उत्पन्न होती है।

किसी भी सतह को ठंडा करने के लिए, वैज्ञानिक इसे सूक्ष्म नलिकाओं से आबद्ध कर देते हैं, जिसे वे ‘माइक्रो-चैनल’ कहते हैं, जिनका व्यास मिलीमीटर के हजारवें भाग से लेकर एक मिलीमीटर तक होता है। वे ठोस की सतह से अतिरिक्त ऊष्मा को दूर करने के लिए इन नलिकाओं से तरल नाइट्रोजन, हवा अथवा पानी जैसे तरल पदार्थों को प्रवाहित करते हैं। यह पाया गया है कि शीतलन प्रणाली में, शीतलक को प्रवाहित करने वाली नलिकाओं का व्यास कम हो तो एन्ट्रॉपी उल्लेखनीय ढंग से कम हो जाती है।

शोधकर्ताओं ने सूक्ष्म-वाहिकाओं के माध्यम से तरल के प्रवाह को नियंत्रित करने वाले गणितीय समीकरणों पर कार्य किया, और उन्हें ऊष्मागतिकी के ज्ञात नियमों के साथ संयोजित किया ताकि इस बात का अध्ययन किया जा सके कि एन्ट्रॉपी नलिकाओं के व्यास पर किस तरह से निर्भर करती है। यह शोधकार्य डॉ. पल्लवी रस्तोगी द्वारा वान्तरिक्ष अभियांत्रिकी विभाग के प्राध्यापक श्रीपाद पी. माहुलिकर के मार्गदर्शन में, उनके डॉक्टोरल अध्ययन के दौरान किया गया।

सर्वप्रथम शोधकर्ताओं ने शीतलन-तरल ले जाने वाली 10 सेंटीमीटर लंबाई की एकल सूक्ष्म-वाहिका शीतलन प्रणाली को गढ़ा। उन्होंने पाया कि नलिका का व्यास 1 मिलीमीटर से कम करने पर इस तंत्र की एन्ट्रॉपी बढ़ती है। तथापि उन्होंने यह दर्शाया कि नलिका का व्यास 0.2 मि.मी. तक कम करने पर भी प्रभावशाली विधि से शीतलन किया जाना संभव है। यद्यपि इस व्यास से नीचे जाने पर, तरल के प्रवाह का पूर्वानुमान एवं इसका अध्ययन कर पाना चुनौती-पूर्ण हो जाता है।

जब नलिका का व्यास एक मिलीमीटर से कम हो जाता है, तो तरल के प्रवाह का अध्ययन करना और जटिल हो जाता है। “तरल पदार्थों के गुण-धर्म, जैसे कि वेग एवं तापमान, प्रवाह के साथ परिवर्तित होने लगते हैं, जिनको गणना में सम्मिलित करना हमारे लिए आवश्यक हो जाता है। साथ ही, तरल की विभिन्न परतों के मध्य परस्पर घर्षण में उल्लेखनीय वृद्धि हो जाती है, जिससे ऊष्मा उत्पन्न होती है,” डॉ. रस्तोगी स्पष्ट करती हैं।

शोधकर्ताओं ने एक समान माप की अनेक सूक्ष्म-वाहिकाओं का उपयोग करते हुये ऊष्मा के संवहन हेतु प्रणाली को अधिक दक्ष बनाने पर ध्यान दिया। “प्रश्न यह था कि क्या अनेक सूक्ष्म-वाहिकाओं का उपयोग एन्ट्रॉपी का न्यूनीकरण कर सकता है। यद्यपि सूक्ष्म-वाहिका के माध्यम से संवहन का अध्ययन पहले किया जा चुका है, किन्तु अनेकों सूक्ष्म-वाहिकाओं के माध्यम से नहीं,” डॉ. रस्तोगी कहती हैं।

जैसे ही शोधकर्ताओं ने प्रत्येक नलिका का व्यास घटाया, उनके सैद्धान्तिक अध्ययन ने अनुमानित किया कि तरल में एन्ट्रॉपी उत्पन्न करने वाली दो परस्पर प्रतिस्पर्धी प्रक्रियाएं सामने आती हैं। “जब हम नलिकाओं की माप को घटाते हुए माइक्रो-स्केल की ओर अग्रसर होते हैं, तो वाहिकाओं में तरल के प्रवाह को बनाए रखने हेतु हमें अधिक पंप शक्ति की आवश्यकता होती है । यह एन्ट्रॉपी में वृद्धि उत्पन्न करता है,” डॉ. रस्तोगी व्याख्या करती हैं। यद्यपि, सूक्ष्म-वाहिकायें उसी समय पर ऊष्मा का बेहतर संवाहन करती हैं, अत: एन्ट्रॉपी को घटाती हैं। “अत: हमने एक इष्टतम समाधान तक पहुंचने की कोशिश की जिसमें न्यूनतम एन्ट्रॉपी उत्पन्न होती हो,” उन्होंने बताया।

शोधकर्ताओं ने पाया कि यहाँ नलिकाओं की एक इष्टतम (ऑप्टिमम) संख्या और प्रत्येक नलिका का एक इष्टतम व्यास अस्तित्व करता है, जो ऊष्मा की आवश्यक मात्रा को सफलतापूर्वक दूर कर सकता है। 10 सेंटीमीटर में स्थापित नलिकाओं की कुल लंबाई के लिए, 66 माइक्रॉन के करीब व्यास वाली लगभग 230 नलिकायें समानांतर रूप से उपयोग की जानी चाहिए, उन्होंने निष्कर्ष निकाला।

शोधकर्ताओं के अनुसार, इस युक्ति का उपयोग अन्य उपकरणों जैसे कि एकीकृत परिपथ में स्थित माइक्रोचिप्स तथा फोटोवोल्टेइक सैल, जो कि सौर ऊर्जा को विद्युत में परिवर्तित करने के लिए आवश्यक मूलभूत घटक होते हैं, को ठंडा करने के लिए किया जा सकता है।

“हमने आईसी चिप्स, फोटोवोल्टेइक सैल अथवा विमान के गैस टर्बाइन के ब्लेड्स तक को ठंडा करने की प्रक्रिया पर एक सैद्धांतिक अध्ययन किया है,” डॉ. रस्तोगी कहती हैं। समस्या के गणितीय पक्ष को हल करने के बाद, शोधकर्ताओं को इसे विभिन्न लक्ष्य प्रणालियों के अनुकूल बनाने की आवश्यकता होगी।
 

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