मुंबई
तन्तुहीन रूप से (वायरलेस) संचालित संचार नेटवर्क की ऊर्जा दक्षता का अभिवर्धन

रेडिओ आवृत्ति संकेत (आर-एफ सिग्नल्स) तन्तुहीन संचार प्रणाली में उपयोग किये जाने वाले विद्युत्-चुम्बकीय विकिरण होते हैं। आर-एफ संकेत सूचना प्रसारित करते हैं एवं अन्तर्निहित अल्प विद्युत् ऊर्जा घटक के वाहक होते हैं। उदीयमान तकनीक इस विद्युत् ऊर्जा का दोहन करती है तथा चिकित्सकीय प्रत्यारोपण अथवा आईओटी (IOTs) सदृश अनेकों तन्तुहीन युक्तियों (जिन्हें नोड्स कहते हैं) को शक्ति प्रदान करती है।

आर-एफ ऊर्जा का दोहन, परिवेशी ऊर्जा के अपमार्जन अथवा एक समर्पित ऊर्जा स्रोत का उपयोग कर के किया जाता है। इस प्रकार का तंत्र नोड्स बैटरीज़ के लगातार आवेशन (चार्जिंग) की सुविधा प्रदान करता है, उनके जीवन काल में वृद्धि करता है एवं पारंपरिक बैटरी संचालित तंतुरहित उपकरणों की ऊर्जा सीमाओं को नियंत्रित करता है। व्यावहारिक और आर्थिक दृष्टिकोण से यह न केवल बार-बार की बैटरी प्रतिस्थापना (रिप्लेसमेंट) आवश्यकताओं को घटाता है अपितु संकटपूर्ण वातावरण में नोड्स के उपयोग को सुगम भी बनाता है। तथापि आर-एफ ऊर्जा संचयन जालक (नेटवर्क) ऊर्जा एवं सूचना दोनों के प्रसारण के लिए उच्च ऊर्जा का उपभोग करते हैं। अतएव्, भविष्य के तंतुरहित संचार जालकों के लिए ऊर्जा क्षति का अनुकूलन (लॉसेस ऑप्टिमाइज़ेशन) एक महत्वपूर्ण और सक्रिय अनुसंधान का क्षेत्र है।

तंतुरहित (वायरलेस) नोड्स, संसूचन (डिटेक्शन) करते हैं, निरीक्षण करते हैं एवं ऊर्जा संचयन स्थिति की सूचना देते हैं। मांग की आपूर्ति करने एवं शक्ति की हानि को दूर करने हेतु प्रतिपुष्टि (फीडबैक) के आधार पर स्रोत सही शक्ति स्तर (पावर लेवल) को नियंत्रित करता है। शक्ति अनुकूलन प्रक्रिया (ऑप्टिमाइजेशन) को स्वचालित (ऑटोमेट) करने के लिए शोधकर्ता कृत्रिम प्रज्ञा (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) द्वारा संचालित सांख्यिकी-आधारित अल्गोरिद्म का उपयोग करते हैं।

वर्तमान अल्गोरिद्म की रचना "चैनल स्थिति सूचना" (चैनल स्टेट इन्फॉर्मेशन) नामक एक मानक पर आधारित है: जो अभिग्राही (रिसीवर) से प्राप्त प्रतिपुष्टि (फीडबैक) है, जैसे कि लिंक कितनी अच्छी है अथवा प्राप्त ऊर्जा का कितना भाग ये उपयोग कर सकते हैं। इस प्रकार के पटु (स्मार्ट) तंत्र में, शक्ति स्रोत, सूचना के प्रेषित्र एवं अभिग्राही (ट्रांसमीटर एवं रिसीवर) दोनों ही रूपों में कार्य करते हैं। शक्ति स्रोत को मूल्यांकन करना होता है कि कितनी ऊर्जा का संचार करना है, ताकि सूचना को प्रेषित करने के लिए सभी नोड्स को पर्याप्त ऊर्जा मिल सके। तथापि नोड्स को दी गयी अतिरिक्त ऊर्जा का अर्थ अधिक सूचना संचरण नहीं है। अतएव आर-एफ ऊर्जा संचयन जालक की समग्र ऊर्जा दक्षता का मूल्यांकन करना महत्वपूर्ण है।

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई (आईआईटी बॉम्बे) एवं मोनाश विश्वविद्यालय, आस्ट्रेलिया से शोधकर्ताओं के एक दल ने एक नवीन अल्गोरिद्म विकसित किया है, जो विद्युत स्तर की सही मात्रा का निर्धारण कर, आर-एफ ऊर्जा संचयन जालक की ऊर्जा दक्षता में वृद्धि करता है। इनका अल्गोरिद्म चैनल स्थिति सूचना कारकों पर निर्भर न होकर बहु-सज्ज बैंडिट पद्धति (मल्टी-आर्म्ड बैंडिट मैथड) नामक एक सांख्यिकी साधन का उपयोग करता है, तथा स्रोत इष्टतम विद्युत निर्गम (ऑप्टिमल पावर आउटपुट) की पहचान करता है। इस अल्गोरिद्म के प्रदर्शन परिणाम आईईईई वायरलैस कम्युनिकेशंस लैटर्स  नामक शोध-पत्रिका में प्रस्तुत किए गए हैं।     

इस परियोजना को प्रेरित अनुसंधान हेतु विज्ञान अनुगमन में नवाचार विज्ञान (INSPIRE) संकाय अध्येतावृत्ति एवं आरंभिक वृत्ति शोध पुरस्कार (ECRA); तथा आस्ट्रेलियन रिसर्च काउंसिल्स डिस्कवरी अर्ली कैरियर रिसर्चर अवार्ड (DECRA) योजना के माध्यम से, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) तथा विज्ञान और इंजीनियरी अनुसंधान बोर्ड (एसईआरबी), भारत सरकार के द्वारा वित्त-पोषित किया गया है।

"एक वास्तविक संचार प्रणाली, एक भाग पर फैले हुये विभिन्न अभिग्राहियों (रिसीवर्स) जो ऊर्जा की विभिन्न मात्राओं को संचयन (हार्वेस्टिंग) हेतु ग्रहण करते है, के साथ एक जटिल जालक (नेटवर्क) है। सूचना के सफलतम संचार के लिए इनको विभिन्न ऊर्जा मात्राओं की आवश्यकता भी होगी,” इस अध्ययन के अग्रणी लेखक प्राध्यापक मंजेश हनावाल कहते हैं। चूँकि परिस्थितियाँ अनिश्चित होती हैं, अनुक्रमिक निर्णय प्रक्रिया (सीक्वेन्शियल  डिसीजन मेकिंग) के साथ अल्गोरिद्म को सुदृढता प्रदान कर ऊर्जा संचय की स्थितियों को शीघ्रता से सुनिश्चित किया जा सकता है, और इसके द्वारा प्रणाली की ऊर्जा दक्षता में वृद्धि की जा सकती है, वह आगे कहते हैं। तथापि पारंपरिक अनुकूलन (ऑप्टिमाइजेशन) तकनीक संगणना मूल्यों में प्रबल वृद्धि करते हैं क्योंकि इस हेतु इन्हें चैनल स्थिति कारकों (चैनल स्टेट इन्फॉर्मेशन) पर सूचना आवश्यक होती है।  

अत: इस अवरोध को दूर करने हेतु, कार्य-दल ने अल्गोरिद्म में बहु-सज्ज बैंडिट तकनीक (मल्टी-आर्म्ड बैंडिटटेक्नीक) नामक एक अनुक्रमिक अनुकूलन पद्धति (सीक्वेन्शियल  ऑप्टिमाइजेशन मैथड) का उपयोग किया, जो केवल इस संसूचन पर निर्भर करता है कि अभिग्राही से प्राप्त प्रतिपुष्टि संकेत (रिसीवर्स फीडबैक सिग्नल) को भली-भांति निष्कूट (डिकोड) किया गया अथवा नहीं (एक यस अथवा नो स्थिति)। यह तकनीक एक स्लॉट मशीन (द्यूत क्रीड़ा युक्ति) के विभिन्न उत्तोलकों  (लीवर्स) का दिए गए समय पर अन्वेषण करने तथा सर्वाधिक उपयुक्त उत्तोलक पर दाँव खेलने सदृश है। प्रारम्भ में, उत्तोलकों के अन्वेषण द्वारा खिलाड़ी कुछ एक हानियाँ उठाने का संकट उठाता है; बाद में क्रमिक रूप से लीवर को खींचते हुये, खिलाड़ी उस लीवर का संचालन सीख जाता है, जो कुछ पूर्वाभ्यास के उपरांत समग्र पुरस्कार में वृद्धि करता है।        

स्रोत एक दिए गए समय प्रभाग में ऊर्जा संचरण के लिए, संचयन जालक (हार्वेस्टिंग नेटवर्क) में एक विद्युत स्तर (पॉवर लेवल) का चयन करता है। नोड्स इस ऊर्जा का संचय करते हैं, एवं इस ऊर्जा का उपयोग करके ये स्रोत को प्रति-सूचना भेजते हैं। यदि नोड्स ऊर्जा का पर्याप्त संचयन कर सके, तो वे एक नियत दर से उच्च दर पर सूचना का स्थानान्तरण करने में सक्षम होंगे; अन्यथा सूचना का स्थानान्तरण ही नहीं होगा। “वह दर, जिस पर नोड्स सूचना का स्थानान्तरण कर सकते हैं, पुरस्कार स्वरुप मानी जाती है एवं सीधे-सीधे  संचित ऊर्जा की मात्रा से सम्बद्ध होती है,” अध्ययन की प्रथम लेखिका सुश्री देबोमिता घोष व्यक्त करती हैं।    

प्रचलित अनुकूलन पद्धति में, ज्यों ही स्रोत की शक्ति में वृद्धि होती है, संचार दर में भी वृद्धि होती है। तथापि, भौतिक सीमाओं के कारण अभिग्राही (रिसीवर) अनिश्चितकाल तक ऊर्जा का उपयोग नहीं कर सकते, तथा सूचना की दर संतृप्त (सैच्युरेट) हो जाती है, जिससे संचार हानि उत्पन्न होती है, परिणाम स्वरुप : जालक की ऊर्जा दक्षता प्रभावित होती है।    

अतएव, कार्यदल ने नोड्स से सूचना की दर के स्थान पर प्रति इकाई शक्ति सूचना की दर, अर्थात बिट्स/सेकंड/जूल पर विचार किया। "चूंकि जालक (नेटवर्क) में कई नोड हो सकते हैं, हम प्रदर्शन मापीय के रूप में सभी नोड्स की कुल सूचना की दर, प्रति इकाई शक्ति पर विचार करते हैं," सुश्री घोष कहती हैं। स्रोत ऊर्जा संचरण के लिए प्रत्येक समय प्रभाग में संचारित शक्ति का इस प्रकार से चयन करता है कि यह व्यय की गयी प्रति इकाई शक्ति (पॉवर) के लिए स्रोत पर अधिकतम संभव बिट्स प्राप्त करे, वह आगे कहती हैं। साथ ही, अल्गोरिद्म प्रत्येक शक्ति स्तर के लिए, प्रति इकाई शक्ति की कुल सूचना दर के माध्य (मीन) की ऊपरी सीमा का आकलन करता है तथा उच्चतम अनुमानित आबद्ध (बाउंड) स्तर के साथ शक्ति स्तर का उपयोग करता है।

इस प्रकार, यद्यपि सबसे बेहतर शक्ति स्तर पर दाँव नहीं खेलने की कुछ प्रारंभिक हानियाँ हैं, तथापि समग्र रूप से, अनुक्रमिक प्राज्ञता (सीक्वेन्शिअल लर्निंग) के कारण संचित हानियाँ न्यूनतम हो जाती हैं। इसके साथ ही, कार्यदल ने यह स्थापित करने हेतु कि यह शक्ति निर्गम के अनुकूलन में स्रोत की सहायता करता है, अल्गोरिद्म निर्गम (आउटपुट) के प्रतिरूपण (सिमुलेशन) का भी प्रदर्शन किया।  

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