मुंबई
क्रिस अरोक अनप्लैश पर

अधिकांश आधुनिक जीवन इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के बिना अकल्पनीय है जैसे कंप्यूटर या मोबाइल फोन, जिस पर आप इस लेख को पढ़ रहे हैं, आपके बैठक कक्ष में रखा  टेलीविज़न , आपके रसोईघर में सूक्ष्म तरंग भट्ठी (माइक्रोवेव ओवन) इत्यादि ! लेकिन आने वाले समय में स्पिनट्रॉनिक उपकरण जल्द ही इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का स्थान ले सकते हैं, जो इलेक्ट्रॉनों की क्वांटम यांत्रिक गुण का उपयोग करते हैं जिसे स्पिन (चक्रण) कहते हैं। एक नए अध्ययन में, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी बॉम्बे) और टाटा मूलभूत अनुसंधान संस्थान (टीआईएफआर) के शोधकर्ताओं ने प्रदर्शित किया है कि ऊष्मा ऊर्जा को 'स्पिन धारा ' में परिवर्तित किया जा सकता है। उनका काम ‘एप्लाइड फिजिक्स लेटर्स’ पत्रिका के मुख पृष्ठ पर दर्शाया गया था।

1920 के दशक में पहली बार जर्मन वैज्ञानिकों ओटो स्टर्न और वाल्थर गेरलाच द्वारा इलेक्ट्रॉनों का यह स्पिन (चक्रण) गुण खोजा गया था। उन्होंने पाया कि जब एक बाह्य चुंबकीय क्षेत्र लगाया जाता है, तो इलेक्ट्रॉन ऐसे व्यवहार करता है जैसे कि यह अक्ष के चारों तरफ घूम रहा हो। लेकिन एक लट्टू के घूर्णन के विपरीत, इलेक्ट्रॉन का चक्रण, इलेक्ट्रॉन का अपना एक स्वाभाविक गुण है  जिसके किसी भी वास्तविक भौतिक घूर्णन के कारण होने की संभावना नहीं है। इलेक्ट्रॉनों को दक्षिणावर्त के लिए "स्पिन-अप" और वामावर्त घूर्णन के लिए "स्पिन-डाउन" कहा जाता है।

वर्तमान अध्ययन में शोधकर्ताओं ने नोबेल विजेता वाल्थर नर्नस्ट के नाम पर 'स्पिन नर्नस्ट प्रभाव' को प्रयोगात्मक साक्ष्य प्रदान किये हैं। 'स्पिन नर्नस्ट प्रभाव' एक सैद्धांतिक भविष्यवाणी है कि जब एक गैर-चुंबकीय पदार्थ के दोनो सिरों के तापमान में अंतर होता है, तो अलग-अलग चक्रण वाले इलेक्ट्रान ऊष्मा प्रवाह दिशा के लंबवत दिशा में पृथक हो जाते हैं।

‘एप्लाइड फिजिक्स लेटर्स’ पत्रिका के आवरण पृष्ठ पर प्रदर्शित अध्ययन के एक लेखक और आईआईटी बॉम्बे के प्राध्यापक तुलापुरकर कहते हैं-

"अर्धचालक चिप्स इलेक्ट्रॉनों की गति पर आधारित होते हैं जब इनपर विद्युत क्षेत्र लागू होता है जो कंप्यूटर, मोबाइल फोन इत्यादि जैसे इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में उपयोग किए जाते हैं। ये उपकरण केवल इलेक्ट्रॉन के आवेश और द्रव्यमान पर निर्भर होते हैं, और चक्रण को पूरी तरह अनदेखा कर दिया जाता है। स्पिंट्रोनिक्स (स्पिन + इलेक्ट्रॉनिक्स) में इलेक्ट्रॉनों के चक्रण  का पूरा उपयोग अधिक कार्यक्षमता और कम बिजली की खपत वाले उपकरणों को  बनाने में किया जाता है। "

आईआईटी-बॉम्बे में नैनो-फैब्रिकेशन (नैनो-निर्माण) सुविधाओं का उपयोग करके शोधकर्ताओं के प्रयोग में प्लेटिनम को गरम करना और स्पिन-अप और स्पिन-डाउन इलेक्ट्रॉनों का पृथक्करण (विभाजन) शामिल था। उन्होंने चक्रण का पता लगाने के लिए प्लैटिनम क्रॉसबार का उपयोग किया जो शीर्ष और निचली सतहों पर चुंबकीय धातु से लेपित था। जब प्लैटिनम बार (छड़) को इसके केंद्र में गरम किया गया तब प्लैटिनम के भीतर ऊष्मा के बहाव ने स्पिन-अप और स्पिन-डाउन इलेक्ट्रॉनों को अलग और विपरीत दिशाओं में स्थानांतरित कर दिया। तब ऊपर और नीचे टर्मिनलो के बीच के वोल्टेज में अंतर को इलेक्ट्रॉनों की गति के रूप में मापा जाता है।

आईआईटी बॉम्बे के शोध छात्र और पेपर के मुख्य लेखक अर्णब बोस इस शोध के महत्व को समझाते हुए कहते हैं ''ऐसा माना जाता था कि स्पिन धारा केवल लौहचुंबकीय पदार्थो में ऊष्मा या विद्युत प्रवाह लागू करके बनाया जा सकती है। हमने एक अग्रणी अवलोकन किया है कि ऊष्मा गैर-चुंबक में भी स्पिन धारा उत्पन्न कर सकती है। हमारा काम विभिन्न अनुप्रयोगों लिए महत्वपूर्ण है, और साथ ही यह मूलभूत भौतिकी के दृष्टिकोण से बहुत ही आकर्षक है।"

शोधकर्ताओं का मानना ​​है कि यह खोज अनुप्रयोगों की एक नई दुनिया दे सकते हैं जिसमें सुगठित डिजिटल डाटा भंडारण, ऊर्जा कुशल उपकरण शामिल हैं। मूल विचार यह है कि स्पिन-अप और स्पिन-डाउन स्थिति का उपयोग जानकारी (सूचना) को अंकित करने के लिए किया जा सकता है।

"एक मेमोरी सेल के तारों में चुंबकीयकरण की दिशा को ऊपर से नीचे या नीचे से ऊपर बदलना शामिल है। स्पिन धारा का उपयोग करके यह कार्य कुशलता से किया जा सकता है। अब स्पिन धारा स्पिन-नर्नस्ट प्रभाव का उपयोग करके बेकाम ऊष्मा (इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों द्वारा छितराया हुआ ) से उत्पन्न किया जा सकता है। इस प्रकार स्पिन-नर्नस्ट प्रभाव चुंबकीय स्मृति को लिखने के लिए संभावित उपयोगों में काम आ सकता है।", कहकर प्रोफेसर तुलापुरकर ने अपनी बात पूरी की। 

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