मुंबई
यात्रा स्लेकर द्वारा करसोग (17)

क्या आपने कभी यह सोचा है कि कैसे आपके स्विच दबाते ही बल्ब जगमगा उठता है?

जब भी हम किसी उपकरण को चालू करते हैं, तो कहीं ना कहीं किसी पावर स्टेशन में उस उपकरण की ऊर्जा की मांग की आपूर्ति करने के लिए थोड़ा अधिक ईंधन जलता है।आपूर्ति और मांग में असंतुलन बिजली में कटौती या बिजली की कमी का कारण बन सकता है। जर्नल ऑफ फिलॉसॉफिकल ट्रैन्सैक्शंज़ में प्रकाशित एक हालिया सर्वेक्षण में, भारतीय प्रौद्योगिक संस्थान मुंबई के डॉ अंकुर कुलकर्णी ने इस समस्या के समाधान के लिए एक नयी सैद्धांतिक रूपरेखा तैयार की है। इस शोध में उन्होंने खेल-सिद्धांत (गेम थ्योरी) से प्रासंगिक परिणामों को एकत्रित किया है। ‘खेल-सिद्धांत’ गणित का एक क्षेत्र जो किसी 'खेल' का अध्ययन करता है।

विद्युत् ग्रिड बिजली की लाइनों एवं उपस्टेशन का एक परस्पर संबंधित तंत्र है जिसे बिजली के वितरण और संचरण के लिए उपयोग में लाया जाता है। विद्युत्ग्रिड का प्रभावी संचालन ऊर्जा की हानि कम करने की कुंजी है।इसलिए  ‘विद्युत्ग्रिड प्रबंधन’ ऊर्जा उत्पादन और वितरण सम्बंधित विषयों में सबसे अधिक शोध किए गए विषयों में से एक है। हाल ही में सौर और पवन ऊर्जा जैसे अक्षय स्रोतों की बढ़ती माँग के साथ इन अध्ययनों में एक नया पहलू सामने आया है। चूँकि इन स्रोतों से उत्पन्न ऊर्जा अभी भी अप्रत्याशित है, इसलिए नए मॉडलों को बढ़ावा दिया जा रहा है जो विद्युत्आपूर्ति के आधार पर माँग को समायोजित करते है। यह तो पूर्ण रूप से प्रामाणित है कि भविष्य  में नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत ही मनुष्यों के काम आएँगे किंतु प्रभावी रूप से इनकी क्षमता का प्रयोग करना कोई आसान कार्य नहीं है। अक्षय स्रोतों के प्रयोग में आने वाली बाधाओं में से सबसे बड़ी बाधा है इन स्रोतों की अनिश्चितता । उदाहरण के लिए, किसी भी दिन के एक निश्चित समय पर हवा की वांछित तीव्रता या सूरज की रोशनी में बदलाव आ सकते हैं जिसका ऊर्जा उत्पादन पर सीधा प्रभाव पड़ेगा। इस चुनौती को दूर करने का एक तरीका उत्पादन के आधार पर खपत को समायोजित करना है याने सूरज की रोशनी या हवा उपलब्ध होने पर ही बिजली का उत्पादन और उपयोग करें ।

खेल-सिद्धांत को बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ में सामाजिक विज्ञान को गणित का प्रयोग कर समझने और करने के विकसित किया गया था। एक ‘खेल’ में, खिलाड़ी उपलब्ध संसाधनों को प्रभावी ढंग से अपने फायदे का ध्यान रखते हुए उपयोग करने का प्रयास करते हैं। अमूमन प्रत्येक खिलाड़ी अपनी रणनीति बनाते हुए इस तथ्य को ध्यान में रखता है कि अन्य खिलाड़ी भी पलटवार के लिए अपनी रणनीतियाँ तैयार कर रहे होंगे। खेल सिद्धांत कई खिलाड़ियों को शामिल करने वाली समस्याओं का मॉडल करने के लिए उपयोग किया जाता है, जिनमें प्रत्येक खिलाड़ी स्वतंत्र रूप से या अन्यथा अपने लाभ को अधिकतम करने की कोशिश करता है। प्रोफेसर जॉन नैश के नाम पर विकसित ‘नैश संतुलन’ (क्या आपने प्रसिद्ध हॉलीवुड फिल्म ए ब्यूटीफुल माइंड देखी है?) खेल सिद्धांत का एक महत्त्वपूर्ण भाग है। यह एक ऐसी स्थिति है जिसमें कोई भी खिलाड़ी अपनी रणनीतियों को एकतरफा रूप से बदलकर कोई फायदा नहीं उठा सकता है। किसी भी खेल के नैश-संतुलन का ज्ञान हमें नियमों को इस तरह से विकसित करने में मदद करता है जिससे विभिन्न परिदृश्यों में खेल का परिणाम उसमें भाग लेने वाले सभी प्रतिभागियों के लिए वांछनीय हो। उदाहरण के लिए, विध्युत  ग्रिड प्रबंधन के मामले में, एक वांछित परिदृश्य यह हो सकता है जिसमें आपूर्तिकर्ता के लिए इष्टतम लाभ हो, उपभोक्ताओं के लिए न्यूनतम लागत, एवं ऊर्जा उपव्यय कम से कम हो। नैश-संतुलन की गणना करना मुश्किल है, विशेष रूप से उस स्थिति में जहाँ खेल में बड़ी कई प्रतिभागी और संभावित चालें हों, एवं संतुलन केवल कुछ ही  स्थितियों में बन सकता हो।

इस लेख में, गेम थ्योरी कुछ परिचित परिणामों का हवाला देते हुए डॉ कुलकर्णी दर्शाते हैं कि आपूर्ति में बदलाव के आधार पर बिजली की मांग को समायोजित करना खेल-सैद्धांतिक ढांचे में फिट हो सकता  है। इस समस्या की एक गेम के रूप में मॉडलिंग की जा सकती है जहाँ प्रत्येक खिलाड़ी (उपभोक्ता) उपलब्ध ऊर्जा एवं आपूर्ति पक्ष द्वारा निर्धारित बिजली की प्रति यूनिट क़ीमत जैसी प्रतिबंधों से बंधा हुआ हो। उल्लेखनीय बात यह है कि उपभोक्ताओं, मूल्य, एवं कुल बिजली की उपलब्धता आदि के बारे में काफी सामान्यीकृत धारणाओं के तहत भी ऐसी प्रणाली के लिए एक नैश-संतुलन संभव है। यदि एक बार इन सभी मापदण्डों को इस प्रकार स्थापित कर दिया जाए कि खेल संतुलन में हो तब ‘आपूर्ति के आधार पर खपत' की स्थिर स्थिति की अपेक्षा की जा सकती है। यह स्थिर स्थिति ऊर्जा वितरण प्रणालियों की अगली पीढ़ी के इष्टतम और एकीकृत संचालन को संभव बनती है। दूसरे शब्दों में, ऊर्जा वितरण प्रणाली का ऐसा आधार बनाना संभव है जिसमें प्रत्येक अंतिम उपयोगकर्ताओं के लिए इष्टतम रणनीति वह होगी जिसमें आपूर्ति-कर्ता द्वारा प्रदान की गई आपूर्ति या जानकारी के आधार पर उन्हें अपने उपयोग को समायोजित करना हो। इस स्थिर आधार से हटने के किसी भी प्रयास के करने पर उपभोक्ता को नुकसान होगा।

यह लेख बिजली वितरण प्रणालियों की एक नयी पीढ़ी को विकसित करने की सैद्धांतिक रूपरेखा प्रस्तावित करता है। इस शोध से हम यह भी देख सकते हैं कि  किस प्रकार अमूर्त गणितीय सिद्धांत प्रौद्योगिकी विकास में मदद कर सकते हैं और प्रगति में तेजी ला सकते हैं। किंतु इसे वास्तव में प्रयोग में लाने के लिए इन गणितीय परिणामों के  समस्वरन एवं तकनीकी विकास और मांग एवं आपूर्ति पक्ष के बीच परस्पर संचार की आवश्यकता होगी ।

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