मुंबई
सायनोबैक्टीरिया (नील हरित शैवाल) में प्रोटीन उत्पादन को बढ़ावा देने की दिशा में शोधकार्य

चित्र:जोसेफ रिस्चै

साइनोबैक्टीरिया (नील हरित शैवाल) एक प्रकार के एककोशिकीय जीवाणु हैं, जो सूर्य प्रकाश के  संश्लेषण से अपने लिये ऊर्जा उत्पादन कर सकते हैं। प्रकाश संश्लेषण करने की योग्यता  इन्हें वांछित रसायनों और प्रोटीन के उत्पादन के लिए जैव प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रतिभागी बनाती है। इस प्रक्रिया को प्रारम्भ करने के लिए वैज्ञानिक प्रोत्साहकों का उपयोग करते हैं, जो उपयुक्त जीवों से डीएनए के भाग होते हैं, जिसमें साइनोबैक्टीरिया भी सम्मिलित है, जो प्रोटीन के वांछित उत्पादन को आदेशित करता है।

यह देखा गया है कि सामान्यतः प्रयुक्त प्रोत्साहकों को अपनी सक्रियता के लिए महंगे प्रेरक या रसायनों के  उपयोग की आवश्यकता होती है। साइनोबैक्टीरिया में प्रोटीन के बड़ी मात्रा में व्यावसायिक उत्पादन के लिए ये व्यवहार्य नहीं हैं। इसके अतिरिक्त, ये प्रेरक दृश्य प्रकाश की उपस्थिति में निष्क्रिय हो जाते हैं और प्रोत्साहकों को विवादास्पद बना देते हैं। अब, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई के शोधकर्ताओं ने  प्रोत्साहकों का एक ऐसा समूह विकसित किया है जो प्रोटीन उत्पादन को बढ़ावा दे सकता है, प्रकाश के प्रति सहिष्णु है और साइनोबैक्टीरिया के विभिन्न उपभेदों (स्ट्रेन) के साथ अच्छी तरह से काम  कर सकता है। यह अध्ययन, एसीएस सिंथेटिक बायोलॉजी नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है। इस शोधकार्य को भारत सरकार के जैव प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा वित्त पोषित किया गया था।

नए प्रोत्साहकों की खोज के लिए, नए सिरे से प्रारम्भ करने के बजाय, शोधकर्ताओं ने दो  प्रोत्साहकों - PrbcL और PcpcB का विकास किया जो पहले से ही सायनोबैक्टीरिया में उपस्थित हैं और जिन्हें प्रोटीन के उच्च उत्पादन के लिए जाना जाता है। उन्होंने PrbcL के 36 और PcpcB के 12  उत्परिवर्ती प्रोत्साहकों का एक संग्रह बनाने के लिए प्रोत्साहकों में उत्परिवर्तन किया। फिर, उन्होंने उन्हें एक तेजी से विकसित होने वाले साइनोबैक्टीरियम साइनेकोकोकस एलोंगेतस में स्थापित किया, और एक प्रोटीन के उत्पादन पर उनके प्रभाव को पाया जिसे विस्तारित पीले फ्लोरोसेंट प्रोटीन (eYFP) के रूप में जाना जाता है,  जिसका प्रयोगों में  अवलोकन आसान है।

इस अध्ययन के शोधकर्ताओं के प्रमुख प्राध्यापक प्रमोद वांगिकर कहते है कि "वांछित गतिविधि और अन्य विशेषताओं युक्त प्रोत्साहकों को प्राप्त करने में सफलता बड़ी संख्या में उत्परिवर्ती प्रोत्साहकों को स्क्रीन कर पाने की हमारी योग्यता पर निर्भर करती है"। शोधकर्ताओं ने इस चुनौती का सामना एक विधि विकसित करके किया है, जिससे कई वैल्स से बनी एक बड़ी प्लेट में उन्हें अलग करके  उत्परिवर्तियों पर आसान नियंत्रण संभव हो पाया है।

अपने प्राकृतिक रूप में दोनों प्रोत्साहकों की गतिविधि कोशिकीय वातावरण में प्रकाश की उच्च तीव्रता और कार्बन की अधिक सांद्रता की उपस्थिति में घट जाती है। इसलिए शोधकर्ताओं ने कार्बन सांद्रता और प्रकाश तीव्रता के विभिन्न स्तरों पर उत्परिवर्तित प्रोत्साहकों वाले बैक्टीरिया की गतिविधि में परिवर्तन का अध्ययन किया। PrbcL के 8 प्रोत्साहकों को छोड़कर सभी ने कार्बन डाइऑक्साइड की उच्च सांद्रता के साथ सामान्य मान से 6 से 8 गुना अधिक प्रोटीन का उत्पादन किया। इसी तरह, सभी 12 उत्परिवर्तित PcpcB प्रोत्साहकों ने उच्च प्रकाश तीव्रता के समक्ष उच्च सक्रियता को प्रदर्शित किया।

शोधकर्ताओं ने यह जानने के लिए प्रोत्साहक समूह का परीक्षण किया कि क्या साइनेकोकोकस के एक अलग उपभेद में गतिविधि में समान परिवर्तन होता है। यद्यपि PrbcL संग्रह के अधिकांश प्रोत्साहक दोनों  उपभेदों में अपेक्षाकृत एक दूसरे के समान काम करते थे तथापि PcpcB संग्रह के  प्रोत्साहकों ने अलग तरह से व्यवहार किया। हालांकि प्रकाश की उच्च तीव्रता के कारण PcpcB  के कुछ प्रोत्साहकों की गतिविधि में वृद्धि हुई जबकि शेष निष्क्रिय हो गए। इसके अलावा, वैज्ञानिकों को यह जाँचने की आवश्यकता है कि क्या इन  प्रोत्साहकों को साइनोबैक्टीरिया के किसी अन्य उपभेद में  प्रयुक्त किया जा सकता है।

शोधकर्ताओं ने eYFP के उत्पादन में भी वृद्धि देखी, जब प्रोत्साहकों को एक अलग जीवाणु, एस्चेरिचिया कोलाई (Escherichia coli) में  सम्मिलित किया गया, जो यह दर्शाता है कि प्रोत्साहकों को अन्य जीवों में भी  प्रयुक्त किया जा सकता है।

इसके अलावा, शोधकर्ताओं ने प्रदर्शित किया कि कुछ उत्परिवर्तित प्रोत्साहकों ने स्विच की तरह भी काम किया। उन्होंने केवल संकेत देने पर प्रोटीन का उत्पादन किया अन्यथा बंद रहे। प्राध्यापक वांगिकार कहते हैं कि "ये एक रसायन के बजाय पर्यावरणीय संकेतों जैसे कि कार्बन डाइऑक्साइड और प्रकाश के साथ चालू हो जाते हैं"। यह व्यवहार कोशिका के लिए हानिकारक प्रोटीन के उत्पादन को रोकने के लिए  उपयोगी हो सकता है।

अध्ययन में शामिल शोधकर्ता डॉ अन्नेशा सेनगुप्ता कहती हैं कि "जिन प्रोत्साहकों को हमने विकसित किया है, उन्हें किसी भी तरह के रसायनिक प्रेरकों की आवश्यकता नहीं होती है। ये उन प्रोत्साहकों  की तरह के नहीं हैं जो सामान्यतया साइनोबैक्टीरिया में उत्पादन के लिए प्रयुक्त किए जाते हैं, हमने ऐसे प्रोत्साहकों का एक समूह विकसित किया है, जिनकी गतिविधि को पर्यावरणीय मानकों जैसे कार्बन डाइऑक्साइड और प्रकाश का उपयोग करके चालू किया जा सकता है। इसलिए, इन प्रोत्साहकों का उपयोग करने पर कोई अतिरिक्त लागत नहीं आई है"।

चूंकि प्रारंभिक प्रयोगों को केवल एक प्रोटीन, eYFP का उपयोग करके किया गया था, अतः शोधकर्ता अब अन्य प्रोटीन के उत्पादन के लिए प्रोत्साहकों का परीक्षण कर रहे हैं। साथ ही शोधकर्ता, अन्य देशी प्रोत्साहकों के आधार पर इस समूह के विस्तार पर भी काम कर रहे हैं। प्राध्यापक वांगिकर कहते हैं कि "इसके अलावा, हम परीक्षण कर रहे हैं कि क्या एक साइनोबैक्टीरिया के प्रोत्साहक अन्य साइनोबैक्टीरिया में काम करेंगे और यदि हाँ तो कितनी कितनी अच्छी तरह ?"

अध्ययन में विकसित किए गए प्रोत्साहकों के उपयोग के बारे में डॉ अन्नेशा कहती हैं, "हम जैव-ईंधन और अन्य रसायनों के उत्पादन के लिए प्रयुक्त अन्य रसायनों के लिए साइनोबैक्टीरिया में विभिन्न प्रोटीनों को व्यक्त करने का प्रयास कर रहे हैं।" “हम अपने आईआईटी परिसर के पास स्थित पवई झील से सियानोबैक्टीरिया के स्थानीय स्तर पर पृथक उपभेदों का उपयोग कर रहे हैं। ये साइनोबैक्टीरिया, वैज्ञानिक समुदाय का पर्याप्त ध्यान आकर्षित कर रहे हैं, “प्राध्यापक वांगिकर आगे कहते हैं।

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