Mumbai
छायाचित्र  : आरती हळबे

एक साथ कई लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए सर्वोत्तम समाधान खोजना हमारे रोजमर्रा के जीवन के लिए महत्त्वपूर्ण है। इसका एक उदाहरण हैं कृषि क्षेत्र, जहाँ यह सुनिश्चित करना अति अत्यावश्यक है कि जलाशयों द्वारा सिंचित सभी क्षेत्रों की आवश्यकताएँ पूरी हों। किन्तु इस कार्य में सफलता प्राप्त करने में सबसे बड़ा अवरोध खपत और आपूर्ति के बीच संतुलन बना के रखना होता है, जिसमें खपत निर्भर करती है उस क्षेत्र में होने वाली फसलों पर और आपूर्ति निर्भर करती है जलाशयों में होने वाले अंतर्वाह पर। हम जलाशयन प्रणाली और उनकी आपूर्ति क्षमता के आधार पर, किसी भी क्षेत्र में कौन सी फसल, कितने क्षेत्रफल में लगानी चाहिए, इसके लिए एक प्रणाली बनाना चाहते हैं।  एक अध्ययन में, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई के शोधकर्ता डॉ. आर. अरुणकुमार और प्रो. वी. ज्योतिप्रकाश ने एक नयी विधि प्रस्तावित की है, जो बहु-जलाशय सिंचाई प्रणालियों की समस्याएँ सुलझाने में मदद कर सकती है।

प्रो. ज्योतिप्रकाश बताते हैं, "एक जलाशय के संचालन को सर्वोत्तम स्थिति में लाना, स्वयं में एक जटिल प्रक्रिया है। इसमें कई अनियमितताएँ आ सकती हैं जैसे कि परस्पर-विरोधी और प्रतियोगी उद्देश्य इत्यादि। बहु-जलाशय प्रणालियों का संचालन और भी जटिल होता हैं क्योंकि इनमें और भी अधिक परिवर्तनशील तत्त्व होते हैं जिनको अनुकूल स्थिति में लाना होता है। इसके साथ इन प्रणालियों में बड़ी संख्या में भौतिक, तकनीकी, कानूनी और सामाजिक बाधाएँ भी होती हैं, जो इन्हें और जटिल बनाती हैं।" इन सभी बाधाओं को ध्यान में रखते हुए, सबसे अच्छा समाधान देने के लिए, आम तौर पर बहुद्देशीय विकासपरक एल्गोरिथम का इस्तेमाल किया जाता है।

बहुद्देशीय विकासपरक एल्गोरिथम उन समस्याओं को हल करने का प्रयास करता हैं जो कई उद्देश्यों को संतुष्ट ​करते​ हैं और ​​जैविक विकास से प्रेरित हैं। ​उनकी शुरुआत प्रारंभिक आबादी के सेट से ​होती है​, जिसे कुछ विशिष्ट ​परिस्तिथियों ​ के तहत 'विकसित' होने दिया जाता है।​ ​प्रत्येक पुनरावृत्ति के बाद उत्पन्न समाधान ​की उपयुक्तता का परीक्षण किया ​जाता है। आबादी को तब तक ​'विकसित' ​होने दिया जाता है​​, जब तक कि सर्वोत्तम समाधान या उसके अधिकतम निकट का समाधान न प्राप्त हो जाए। ​​यदि यह अभिकलन किसी एक सब-ऑप्टिमल समाधान पर अटक जाता है, तो पूरी प्रक्रिया एक नयी प्रारंभिक आबादी के साथ दोहराई जाती है।  सब देख सकते हैं कि यह ​अभिकलन का एक कठिन तरीका है और इसमें हमेशा एक सर्वश्रेष्ठ समाधान मिलना संभव नहीं है।

ऐसी स्थिति में इस अध्ययन के शोधकर्ताओं द्वारा प्रस्तावित संशोधन उपयोग में आते हैं। उन्होंने अनियोजित एल्गोरिथम के साथ ऊपर बताये गए पारम्परिक बहु-प्रणाली विकासपरक एल्गोरिथम के इस्तेमाल का सुझाव दिया है। अनियोजित एल्गोरिथम वह होता हैं जो प्रारंभिक परिवर्तनशील तत्वों में होने वाले बदलाव के प्रति बहुत सवेंदनशील होता हैं। पूर्व अध्ययनों में देखा गया है कि अनियोजित एल्गोरिथम के उपयोग से केवल एक उद्देश्य वाली समस्याओं के बेहतर समाधान मिले हैं। डॉ. अरुणकुमार कहते हैं कि, "अधिकतम पूर्व अध्ययनों ने अनियोजितता का प्रयोग सिर्फ प्रारंभिक आबादी के उत्पादन में किया था। उन सभी अध्ययनों के अनुसार अनियोजितता का प्रयोग करने से व्यापक और अनुकूल समाधान प्राप्त किये गए थे।  इस अध्ययन ने अनियोजितता का प्रयोग न केवल प्रारंभिक आबादी उत्पन्न करने में किया गया है अपितु विकासपरक एल्गोरिथम के अन्य चरणों में भी इसका उपयोग किया गया है।

इस संशोधित एल्गोरिथम की दक्षता के परीक्षण के लिए, शोधकर्ताओं ने महाराष्ट्र की कुकड़ी सिंचाई परियोजना (के आई पी), जो की पांच जलाशय वाली एक बहु-जलाशय प्रणाली है, की आधार सामग्री का अनुरूपण किया। उन्होंने फसल लगाने की सर्वोत्तम योजना और केआईपी सिंचाई क्षेत्र में जल आवंटन के लिए, इस एल्गोरिथम का प्रयोग किया। इस अभिकलन में देखा गया कि एल्गोरिथम द्वारा दिए गए समाधान, असल-लाभ और कृषि क्षेत्र आवंटन में पारम्परिक एल्गोरिथम से कुछ ही बेहतर थे, परन्तु इस नयी एल्गोरिथम में पुनरावृत्तियों की संख्या कम थी।

​इस परिणाम के बारे में डॉ. अरुणकुमार कहते हैं, "हालाँकि अन्य एल्गोरिथम से प्राप्त सर्वोत्तम समाधानों में कोई महत्त्वपूर्ण अंतर नहीं है, अनियोजित विकासपरक एल्गोरिथम, पारम्परिक एल्गोरिथम की तुलना में कम ​पीढ़ियों का उपयोग करती है।  इससे पता चलता है कि अनियोजित अभिलक्षण, अनुकूलन एल्गोरिथम को बेहतर और ज्यादा सफल बना सकते हैं। "

​तो क्या हम इस एल्गोरिथम का उपयोग हमारी सिंचाई प्रणालियों की अक्षमताएँ दूर करने के लिए कर सकते हैं? ​शोधकर्ताओं का कहना है ऐसा अभी संभव नहीं है। प्रो. ज्योतिप्रकाश कहते हैं कि, "वास्तविक समय में जलाशय का संचालन अधिक चुनौतीपूर्ण है क्योंकि इसमें हमें एक ऐसी प्रणाली की आवश्यकता होगी जिससे जलाशय संचालन तंत्र के साथ वास्तविक समय में अंदर आने वाले प्रवाह का पूर्वानुमान किया जा सके।”

यह अध्ययन उस दिशा में एक सही कदम है, जहाँ हम एल्गोरिथम का प्रयोग सार्वजनिक नीतियों और कुशल प्रणालियों के निर्माण के लिए कर पाएँगे।

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