मुंबई
नन्हे प्लास्टिक प्रदूषकों का पता लगाने हेतु सूक्ष्म तरंग (माइक्रोवेव) विकीरण

हमारे बालों की स्थूलता से भी एक हजार गुना छोटे - सूक्ष्म और नैनो प्लास्टिक कण - पर्यावरण की एक गंभीर क्षति का कारण बन गया है | वर्तमान अध्ययन में , भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, मुंबई (आईआईटी बॉम्बे) के प्राध्यापक टी.आई.एल्ढो के नेतृत्व में एक शोध दल ने दक्षिण अफ्रीका के मैंगोसुथु प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के डॉ अनिल लोनाप्पन की सहभागिता में  प्रयोगशाला नमूनों की परिवेशी प्रकृति को नष्ट किये बिना सूक्ष्म और नैनो प्लास्टिक की उपस्थिति ज्ञात करने के लिए एक नवीन तकनीक विकसित की है। पदार्थ की पहचान करने के लिए माइक्रोवेव गुहा के भीतर रखे जाने पर पदार्थ के विद्युत गुणों में उत्प्रेरित परिवर्तनों का उपयोग यह तकनीक करती है। शोधकर्ताओं को पर्यावरण के नमूनों में प्रदूषकों की उपस्थिति का पता लगाने के लिए हस्त  धारित उपकरण (हैंडहेल्ड डिवाइस) विकसित करने की आशा है। यह अध्ययन "हैज़ार्डस मेटीरियल " नामक शोध पत्रिका (जर्नल) में प्रकाशित हुआ था।

प्लास्टिक प्रदूषकों द्वारा उत्पन्न चुनौतियों को भली भाँति प्रलेखित किया गया है एवं वे दीर्घ काल तक सार्वजनिक विचार विर्श का मविषय रहे हैं । किन्तु गत कुछ वर्षों में हुए  अध्ययनों ने प्लास्टिक प्रदूषकों की एक और प्रजाति: नैनो और माइक्रोप्लास्टिक्स पर प्रकाश डाला है । प्रत्यक्ष आंखों के लिए अदृश्य एवं अत्यधिक छोटे, ये प्रायः अंटार्कटिक के प्राचीन वातावरण से लेकर हमारे आंतरिक अंगों तक हर स्थान पर पाए जाते हैं । अध्ययनों ने प्लास्टिक के इन छोटे टुकड़ों को फसल के पौधों, खाद्य फलों, मछलियों, पेंगुइन एवं यहां तक कि मानव गर्भ नाल तक में ढूंढ निकालने की सुचना दी है । इसके अतिरिक्त, वे जलवायु परिवर्तन में भी भूमिका निभाते दिखाई देते हैं। शोधकर्ता अभी भी सूक्ष्म और नैनो प्लास्टिक के बड़े स्तर पर अज्ञात पर्यावरणीय और स्वास्थ्य प्रभावों की शोध कर रहे हैं। जबकि सूक्ष्म और नैनो प्लास्टिक प्रदूषकों द्वारा उत्पन्न होने वाली क्षति व्यापक एवं महत्वपूर्ण हैं, "पर्यावरण प्रदूषण का सम्पूर्ण परिदृश्य अज्ञात है", डॉ रेन्जीत ने टिप्पणी की, जिन्होंने आईआईटी मुंबई (आईआईटी बॉम्बे) में अपने पोस्टडॉक्टरल शोध के समय इस विषय पर कार्य किया।

सूक्ष्म और नैनोप्लास्टिक के सन्दर्भ में जागृति के साथ, उनके प्रसार को प्रतिबन्धित और नियंत्रित करने के लिए प्रोत्साहन बढ़ रहा है। इनके प्रतिस्पर्धी चुनौतियों में से एक, विशेष रूप से स्वास्थ्य के सवालों के संबंध में, यह है कि इन छोटे प्लास्टिक प्रदूषकों की उपस्थिति जानने के लिए विद्यमान तकनीकें अधिकांशतः प्रयोगशाला-आधारित, ऊर्जा व्ययी हैं और इन्हें संचालित करने के लिए विशेषज्ञता की आवश्यकता होती है। इस प्रकार, ऊर्जादक्ष , तीव्र और आर्थिक रूप से व्यवहार्य विकल्प अत्यधिक वांछनीय हैं। इस संदर्भ में, आईआईटी मुंबई (आईआईटी बॉम्बे) के शोध दल ने प्लास्टिक प्रदूषकों का पता लगाने के लिए सूक्ष्म तरंग (माइक्रोवेव) विकीरण का उपयोग करने की संभावना का पता लगाया। "सूक्ष्म तरंग (माइक्रोवेव) प्रौद्योगिकी के लिए अन्य स्पेक्ट्रोस्कोपिक विधियों की अपेक्षा कम ऊर्जा एवं समय की आवश्यकता होती है। पारंपरिक विधियां  बाहर से नमूने को गर्म कर सकती हैं।इन विधियों की अपेक्षा , सूक्ष्म तरंग (माइक्रोवेव) के साथ नमूना अवनत होने की संभावना कम होती है”, डॉ रेन्जिथ बताते हैं। सूक्ष्म तरंग (माइक्रोवेव) आधारित तकनीकों को भी पर्यावरण के अनुकूल माना जाता है।

सूक्ष्म तरंग (माइक्रोवेव) विकीरण विभिन्न प्लास्टिक बहुलकों (पॉलिमर) के साथ परस्पर क्रिया करता है और इसके कुछ विद्युत गुणों को परिवर्तित कर देता है। कम आवृत्ति संकेतों (300 किलोहर्ट्ज़ तक) का उपयोग प्रतिरोधकता और चालकता का अध्ययन करने के लिए किया जाता है, जबकि उच्च आवृत्ति संकेतों (300 मेगाहर्ट्ज से 4 गीगाहर्ट्ज़) का उपयोग पारड्यूटिक मापदंडों का अध्ययन करने के लिए किया जाता है। वर्तमान अध्ययन में, शोधकर्ताओं ने एस-बैंड (2-4 गीगाहर्ट्ज़) में सूक्ष्म तरंग (माइक्रोवेव) विकीरणों का उपयोग किया और दर्शाया कि पार्द्युतिक स्थिरांक सूखे और गीले दोनों नमूनों में प्लास्टिक का पता लगाने में उपयोगी है। उन्होंने सूखे नमूनों में प्लास्टिक का पता लगाने के लिए दो और गुणों , अवशोषण हानि और पार्द्युतिक हानि को भी सहायक होना पाया।

जिस प्रकार सूक्ष्म तरंग (माइक्रोवेव) विकीरण सूक्ष्म तरंग (माइक्रोवेव) ओवन में रखे भोजन में जल के अणुओं के साथ अंतःक्रिया करता है तथा इसे गर्म करता है, सूक्ष्म तरंग (माइक्रोवेव) विकीरण भी सूक्ष्म तरंग (माइक्रोवेव) गुहा में रखे जाने पर पदार्थ के विद्युत गुणों को परिवर्तित कर देता है। सूक्ष्म तरंग (माइक्रोवेव) विभिन्न पदार्थों के साथ विभिन्न विधियों से अन्तःक्रिया करते हैं। सूक्ष्म तरंग (माइक्रोवेव) विकीरण विभिन्न पदार्थों के लिए पार्द्युतिक मापदंडों में मापने योग्य परिवर्तन भिन्न-भिन्न हैं। प्रत्येक प्रकार के प्लास्टिक के लिए परिवर्तन अद्वितीय हैं। इस प्रकार, किसी दिए गए नमूने में प्रदूषक की उपस्थिति को जानने के लिए माइक्रोवेव गुहा में एक प्रदूषक के पार्द्युतिक गुणों में सावधानी से मापी गई विविधताओं का उपयोग किया जा सकता है।

आईआईटी मुंबई (आईआईटी बॉम्बे)  के शोधकर्ताओं द्वारा निर्मित रूपरचना में लगभग एक फुट लंबी सूक्ष्म तरंग (माइक्रोवेव) गुहा होती है जो एक नैट वर्क विश्लेषक, एक ऐसा उपकरण जो विभिन्न विद्युत मापदंडों को माप सकता है, जुडी होती है । नमूना धारक के रूप में कांच की एक बहुत पतली नली का उपयोग कर नमूने को गुहा के अंदर रखा जाता है, तथा एक उपयुक्त उच्च आवृत्ति वाले सूक्ष्म तरंग (माइक्रोवेव) को गुहा में प्रवाहित किया जाता है। नैट वर्क विश्लेषक का उपयोग करते हुए, शोधकर्ताओं ने प्लास्टिक बहुलक (पॉलिमर) की उपस्थिति के कारण नमूने के विद्युत मापदंडों में भिन्नता अभिलेखित की। यह तकनीक वर्तमान में पर्यावरण में व्यापक रूप से पाये जाने वाले  प्लास्टिक का पता लगा सकती है, जैसे पॉलीप्रोपाइलीन, कम घनत्व वाली पॉलीथीन, उच्च घनत्व वाली पॉलीथीन एवं क्रॉस-लिंक्ड पॉलीएथीलीन । हमारे दैनिक उपयोग की अधिकांश प्लास्टिक सामग्री जैसे बैग, बोतलें, रस्सी, कालीन और कंप्यूटर घटक आदि प्रायः  इन चार प्लास्टिक बहुलकों (पॉलिमर) से बने होते हैं।

यद्यपि आईआईटी मुंबई (आईआईटी बॉम्बे) शोध दल द्वारा प्रस्तावित तकनीक कुशलऔर  आर्थिक रूप से व्यवहार्य है एवं प्रयोगशाला-निर्मित नमूनों पर उत्तम  परिणाम देती है, परन्तु वास्तविक पर्यावरणीय नमूनों पर इसका परीक्षण किया जाना शेष है। "हमने केवल चार प्रकार के बहुलकों का अध्ययन किया है। वास्तविकता में, अन्य प्रकार के पर्यावरणीय प्लास्टिक प्रदूषक भी हैं। इसके अतिरिक्त, नमूनों का आकार छोटा होना चाहिए, क्योंकि गुहा के आयतन को दृष्टिगत रखते हुए नमूने की मात्रा निर्णायक है, ”प्रो एल्धो ने अध्ययन की सीमाओं को निरूपित किया। नमूने के आकार का अर्थ है कि बड़े आकार के प्लास्टिक प्रदूषकों में बहुलक की जानकारी प्राप्त करने के लिए तकनीक का उपयोग नहीं किया जा सकता है।

वर्तमान में  यह समूह माइक्रोवेव की अन्य आवृत्तियों एवं पर्यावरणीय नमूनों तथा जैविक सामग्री दोनों में देखे जाने वाले अन्य प्रकार के प्लास्टिक पर विचार करके अध्ययन में सुधार एवं विस्तार करने का प्रयत्न कर रहा है। जिन प्रमुख चुनौतियों का सामना करने की उन्हें आशंका है उनमें से एक उपकरण एवं नमूना धारक के आवरण के डिजाइन में है। शोधकर्ताओं ने अपनी तकनीक को सघन हस्तधारित (हैंडहेल्ड) उपकरणों में विकसित करने की योजना बनाई है जो प्रायः हर स्थान पर दिखाई देने वाले भयावह अदृश्य प्लास्टिक प्रदूषकों की उपस्थिति का पता लगाने के लिए व्यापक रूप से उपयोग किए जा सकते हैं। "एक बड़ी चुनौती आवरण और नमूना धारक का डिजाइन है। परीक्षण नमूना धारक के प्रोटोटाइप के साथ हमारे अध्ययन से पता चलता है कि यह परीक्षण की स्थिति में अव्यवस्था के प्रति बहुत संवेदनशील है, ”डॉ रेनजिथ आगे की चुनौतियों के सन्दर्भ में बताते हैं। दल वर्तमान में नमूना धारक की समस्याओं के वैकल्पिक हल के लिए शोध कर रहा है और वास्तविक जगत के अनुप्रयोगों (डिवाइस में उपयोग करने के लिए) के लिए सर्वोत्तम सूक्ष्म तरंग (माइक्रोवेव) आवृत्ति जानने का प्रयास कर रहा है।

पहली बार प्लास्टिक का पता लगाने के लिए सूक्ष्म तरंग (माइक्रोवेव) का उपयोग करके, शोधकर्ताओं ने सूक्ष्म तरंग (माइक्रोवेव) की उपयोगिता के नवीन मार्ग उद्घाटित कर दिए हैं एवं प्लास्टिक प्रदूषकों की पहचान करने की नूतन संभावनाएं खोली हैं। यदि इस प्रयोगशाला-आधारित तकनीक को हस्तधारित उपकरणों के रूप में विकसित किया जा सकता है, जैसा कि शोधकर्ताओं को आशा है, यह सूक्ष्म एवं नैनो प्लास्टिक द्वारा संभावित क्षति को प्रबंधित करने में नयी राहें निर्धारित करेगा।

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