मुंबई
मूत्राशय का अभिकलनात्मक ( कॉम्प्यूटेशनल ) मॉडल

हम सब यह महसूस कर चुके हैं―पेट के निचले हिस्से में कुछ परेशानी और मूत्र विसर्जन के लिए हमारा पास के शौचालय की ओर दौड़। हममें से बहुतों के लिए शौचालय पहुँचने तक इसे रोके रखना संभव है पर जिन्हें मूत्र विसर्जन में असंयमिता (urinary incontinence)  की बीमारी है वे मूत्र के रिसाव को रोकने में अपने को असमर्थ पाते हैं अतः उनको दैहिक शुद्धि में परेशानी और सामाजिक शर्मिंदगी का सामना करना पड़ता है। ऐसी अवस्था के कई कारण हो सकते हैं जैसे मूत्र मार्ग में इन्फ़ेक्शन (UTI), गुर्दे में पथरी या स्नायविक गड़बड़ी। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई (आइ आइ टी बॉम्बे) और बर्मिंघम विश्वविद्यालय यू. के. के  शोधकर्ताओं द्वारा किया गया एक अध्ययन मूत्र विसर्जन में असंयमिता को समझने और इससे पीड़ित रोगियों को इससे छुटकारा दिलाने की दिशा में एक नई आशा जगाता है।

मूत्राशय की दीवार की डेट्रूसर माँसपेशी का काम है मूत्र को रोककर रखना व मूत्र त्यागने की क्रिया को नियंत्रित करना। मूत्र असंयमिता इस माँसपेशी के सहज रूप से सिकुड़ने का परिणाम है। प्लॉस वन नामक जर्नल में प्रकाशित इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने माँस पेशियों की इस सिकुड़न को संचालित करने वाली वैद्युतीय गतिविधि हरकत को समझने का प्रयास किया है। उन्होनें एक ऐसे अभिकलनात्मक मॉडल की रचना की है जो कोशिकाओं के स्तर पर मूत्राशय की दैहिक अवस्था का अनुकरण कर सके।

कोशिकाओं की झिल्ली के आसपास आवेशित कणों या आयनों की उपस्थिति के कारण आवेशांतर रहता है। जब एक कोशिका को सिग्नल मिलता है, जैसे एक वैद्युतीय उत्तेजना या रासायनिक यौगिक जो रिसेप्टर्स को कोशिकाओं की सतह पर जुड़ता है, कोशिका की झिल्लियों में निहित चैनलों के द्वारा विशिष्ट आयनों को अंदर से बाहर या बाहर से अंदर संचारित होने देता है जिससे आवेशांतर में बदलाव आता है। झिल्लियों के अलग अलग चैनलों में से होकर आयनों का चलन हो पाता है या इसमें रुकावट आती है, यह इन सिग्नलों और आयनों के प्रकार पर निर्भर करता है। स्थूल स्तर पर, माँसपेशी शिथिल हो जाती है या सिकुड़ती हैं, यह आयनों की अदला बदली के परिणामों पर निर्भर करता है।

चूहे जैसे जैव मॉडल में, मूत्राशय कैसे सिकुड़ता है, इसका अध्ययन चैनलों के खुलने और बंद होने की उथल पुथल के कारण काफ़ी चुनौतीपूर्ण है। आयनों की सांद्रता और चैनलों के खुलने का नियंत्रण और मापन कठिन है। एक अकेले आयन या चैनल का एक समय पर अध्ययन किया जा सकता है पर कई विभिन्न चैनलों और आयनों का अध्ययन कठिन है। एक अभिकलनात्मक मॉडल बनाकर ऐसा किया जा सकता है। व्यापक और कुशलता पूर्वक लिखे हुए कोड को कम्प्यूटर पर चलाकर प्रयोगकर्ता, बिना किसी जीव विज्ञान की प्रयोगशाला में जाए, एक जटिल जैव प्रणाली को छोटे छोटे भागों में विभाजित करके, प्रत्येक भाग को अलग से चलाकर उनके परिणामों का अध्ययन कर सकते हैं।

परंतु ऐसा अभिकलनात्मक मॉडल बनाना काफ़ी चुनौतीपूर्ण है। पिछले डेट्रूसर माँसपेशी के मॉडल इतने विकसित नहीं हैं और माँसपेशियों के आयनों के चैनल पर किए गए अध्ययन पर विस्तृत प्रायोगिक डेटा उपलब्ध नहीं है। अतः शोधकर्ताओं को प्रत्येक आयन के चैनल पर प्रयोग करके जानकारी जमा करनी पड़ी और इनका समावेश एक अकेले मॉडल में करना पड़ा जिसे प्रत्येक चैनल के आँकड़ों को बैठा करके दैहिक रूप से सटीक बनाया गया। 

“हमारे मॉडल की मुख्य विशेषता यह है कि यह शारीरिक रूप से यथार्थपरक है और जैवभौतिक (biophysically) रूप से अधिक स्पष्ट है। इसके अलावा पिछले मॉडलों में आयन चैनलों के गुणों की प्रायोगिक डेटा से पुष्टि नहीं की गयी थी।”, आइ आइ टी बॉम्बे के प्राध्यापक मनचंदा इस मॉडल की श्रेष्ठता के बारे बताते हुए कहते हैं।

हालाँकि यह अभिकलनात्मक मॉडल चूहे के डेट्रूसर माँसपेशी  के लिए बनाया गया है, पर शोधकर्ताओं को आशा है कि इसे मनुष्य के डेट्रूसर माँसपेशी के लिए परिवर्तित कर पाएँगे।

“मनुष्य और चूहों के मूत्राशयों की माँस पेशियों की कोशिकाओं में एक सी वैद्युतीय हरकतें पाईं गई हैं। इसलिए हमारे मॉडल की सहायता से मनुष्य की डेट्रूसर माँसपेशी के   वैद्युतीय गुणों की जैव भौतिकी को समझने में सहायता मिल सकेगी और इस प्रकार मूत्र असंयमिता के कारण और इसके उपचार की विधाओं को जान पाएँगे,” प्राध्यापक मनचंदा ने कहा।

शोधकर्ता आगे चलकर एक मल्टीसेलुलर थ्री डी वैद्युतीय मॉडल विकसित करना चाहते हैं जिससे माँस पेशियों में सिग्नल के प्रसार को बेहतर समझा जा सके। ये मॉडल और आगे आने वाले मॉडलों की सहायता से मूत्राशय की कार्यप्रणाली को बेहतर समझ पाएँगे और इससे होने वाले रोगों  के उपचार का तरीक़ा जान पाएँगे। 

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