Mumbai
मिट्टी कहती है उल्कापात की कहानी

लोणार झील की मिट्टी के नमूनों का विश्लेषण बहिःपार्थिव चट्टानों की उपस्थिति की ओर इशारा करते हैं।

क्या आप बचपन में किसी टूटते हुए तारे को देखकर मन्नत माँगते थे? अब जब हम बडे हो जाते है तो हम जान जाते है कि टूटते हुए तारे वास्तव में उल्का होते हैं, जो क्षुद्रग्रह और धूमकेतू जैसे खगोलीय पिण्डों के वह टुकड़े होते हैं जो पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश कर जाते हैं। इनमें से ज़्यादातर तो जलकर नष्ट हो जाते हैं लेकिन कभी-कभार कोई बड़ा टुकड़ा पृथ्वी से टकरा जाता है और पृथ्वी की सतह पर एक गड्ढा बना देता है। महाराष्ट्र के बुलढाणा में लोणार झील इसी का एक उदाहरण है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) बॉम्बे, डॉ. बाबासाहेब भीमराव आंबेडकर गवर्मेंट पॉलिटेक्निक कराड और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, औरंगाबाद के शोधकर्ताओं ने लोणार झील की मिट्टी का अध्ययन किया और पाया कि उल्का से गिरी सामग्री का, मूल मिट्टी पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है।

एक उल्कापात से बने हुए गड्ढे की मिट्टी का अध्ययन करने से, मूल मिट्टी में होने वाले परिवर्तनों का पता लगाने में मदद मिल सकती है। इस प्रकार के अध्ययन से हम जान सकते हैं कि जब तापमान और दबाव में परिवर्तन होता है तो प्रभाव के दौरान और बाद में मिट्टी में क्या परिवर्तन होते हैं। विभिन्न रसायनों और खनिजों की उपस्थिति हमें यह समझने में मदद कर सकती है कि उस दौरान स्थानीय पारिस्थितिक तंत्र कैसे प्रभावित हुआ था और अब यह कैसे पुनः स्थापित हो रहा है।

इस अध्ययन के प्रमुख लेखक और आईआईटी बाम्बे के स्थापत्य अभियांत्रिकी विभाग के संस्थान अध्यक्ष प्राध्यापक डी.एन. सिंह कहते हैं कि, “इस तरह के उल्कापात ही केवल एक बहिःपार्थिव तंत्र है जो स्थानीय पारिस्थितिक तंत्र में गड़बड़ी पैदा करने में सक्षम है।”

बेसाल्ट - जो एक गहरी महीन-दानेदार ज्वालामुखी चट्टान है - से बने केवल दो ज्ञात प्राकृतिक गड्ढों में से लोणार गड्ढा एक है। लगभग 50,000 साल पहले बना यह गड्ढा मंगल ग्रह की बेसाल्ट परतों के सदृश्य हैं। प्राध्यापक सिंह बताते हैं कि “इस गड्ढे के संरचनात्मक भूविज्ञान का अध्ययन एक स्थलीय ग्रह पर होने वाली विकृति प्रक्रिया के प्रभाव पर प्रकाश डालेगा”। बेसाल्ट ने इस टक्कर की वजह से मिले झटके को अवशोषित कर लिया और उल्का गहराई में अंदर जाने की बजाय, एक पिघली हुई चट्टान गड्ढे के बाहर आकर चारों ओर फैल गयी और उसका एक अविरल आवरण (ब्लेनकेट) बन गया। यह आवरण अच्छी तरह संरक्षित है और विकृति घटना के लिए विभिन्न मॉडलों का अध्ययन करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।

शोधकर्ताओं के दल ने गड्ढे के तीन अलग-अलग क्षेत्रों से मिट्टी और पानी के नमूने एकत्रित किए और उसकी क्षारीयता, लवण की मात्रा, कार्बनिक तत्व (नाइट्रेट और फॉस्फेट) और अन्य उपस्थित रसायनों, और कणों के आकार परीक्षण किया। उन्होंने मिट्टी के भौतिक, चुम्बकीय और विद्युतीय गुणों का भी अध्ययन किया।

मिट्टी की संरचना अपनेआप में महत्वपूर्ण है क्योंकि प्रभावित स्थान पर मिट्टी में पाए जाने वाले कुछ भारी धातु, खनिज और लवण पर्यावरण प्रदूषकों का एक महत्वपूर्ण समूह हैं, जो मनुष्यों और जलीय जीवों के लिए खतरनाक हैं।

शोधकर्ताओं ने पाया कि लोणार गड्ढे की मिट्टी सामान्य मिट्टी की तुलना में ज़्यादा सघन है, जो लौह और टाइटेनियम जैसी भारी धातुओं की उपस्थिति का संकेत देती हैं। इस गड्ढे की परिधि के पास से लिए गए नमूनों में  केंद्र के पास से लिए गए नमूनों की तुलना में छिद्रित और महीन तत्वों की संख्या कम थी। शोधकर्ता इसका कारण बारिश को बताते हैं जिसके कारण महीन तत्व गड्ढे के केंद्र की ओर चले गए।

रासायनिक विश्लेषण से पता चला है कि मिट्टी के नमूने में लोहे की मात्रा अधिक है, जो अन्य उल्का प्रभावित स्थानों के नमूनों समान है। सामान्य की तुलना में एलुमिनियम और टाइटेनियम की अधिकता चंद्रमा की चट्टानों के नमूनों (अपोलो 11 और अपोलो 14 मिशन से प्राप्त) के सदृश्य है। लोणार मिट्टी में सोडियम और मैग्निशियम के विघटित लवणों की मात्रा अधिक है जो झील के पानी को लवणीय या नमकीन बनाते हैं।

शोधकर्ताओं ने पाया कि लोणार झील के मिट्टी के नमूनों में डायोपसाइड, एल्बाइट, पिजिओनाइट और एनोर्थाइट खनिज हैं जो चंद्रमा की चट्टान के सदृश्य हैं। हालाँकि पिजियोनाइट बेसाल्ट चट्टानों में उपस्थित हो सकता है इसलिए खनिज विश्लेषण चंद्रमा से प्राप्त चट्टानों से मेल खाते हैं। सिलिका की उच्च मात्रा वाले नमूनों के बावजूद इसमें सिलिका खनिज क्वार्ट्ज अनुपस्थित है। हालाँकि इस अजीबोगरीब घटना का कारण इस प्रभाव से पहले मूल चट्टान में क्वार्टज़ की अनुपस्थिति हो सकती है, यह भी सम्भव है कि उल्का टक्कर /आघात के दौरान तापमान बढ़  जाने के कारण क्वार्टज़ पिघल गया हो।

शोधकर्ताओं ने नमूनों में चट्टानों के अक्षुण्ण टुकड़े पाए और वे उन्हें मूल या बहिःपार्थिव (उल्का से उत्पन्न) रूप में पहचानने में सक्षम थे। चट्टानों पर सफेद रंग का जमाव टक्कर /आघात के बाद पानी और चट्टानों के बीच एक लंबी प्रतिक्रिया का संकेत देता है। मूल मिट्टी प्रकृति में ज़्यादा क्रिस्टलीय और हाइड्रोजन, नाइट्रोजन, सोडियम, कैल्शियम और मैग्निशियम से समृद्ध थी।

प्राध्यापक सिंह कहते हैं, “सामान्य मिट्टी में कार्बनिक यौगिकों की मात्रा अधिक होती है और लौह और एलुमिनियम की मात्रा कम होती है, जबकि उल्का प्रभावित मिट्टी में कोई कार्बनिक यौगिक नहीं होते और लौह व एलुमिनियम की उच्च मात्रा होती है। हमने पाया कि केवल उल्का घटित मिट्टी में निकिल, प्लेटिनियम, इरिडियम और कोबाल्ट बहुतायत में पाए जाते हैं। सोडेलाइट की उपस्थिति आमतौर पर सामान्य वातावरण में नहीं होती, जो संभवत एक संभव हाइड्रोथर्मल घटना (गर्म पानी के प्रसार) को इंगित करता है, जिसे उल्कापिंड के साथ जोड़ा जा सकता है।”

यह अध्ययन उल्का टक्कर / आघात के दौरान और उसके बाद में और मूल चट्टान के बीच की परस्पर क्रिया की ओर इशारा करता है। अध्ययन के निष्कर्ष लोणार गड्ढे की उत्पत्ति उल्का टक्कर/ आघात से होने की पृष्टि करते हैं, दक्षिण पूर्व एशिया में भी इसी तरह की घटना घटित हुई थी और एरिज़ोना यूएसए में भी इसी तरह की घटना के प्रमाण मिलते हैं।

गड्ढे से एकत्रित नमूनों का अध्ययन करके प्राध्यापक सिंह इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि अभी भी कुछ ऐसे पहलुओं को प्रमाणित  किया जाना है जो एक जलतापीय घटना की ओर इशारा करते हैं।

Hindi

Recent Stories

लिखा गया
Industrial Pollution

हाइड्रोजन आधारित प्रक्रियाओं में उन्नत उत्प्रेरकों और नवीकरणीय ऊर्जा के समावेश से स्टील उद्योग में कार्बन विमुक्ति के आर्थिक और औद्योगिक रूप से व्यवहार्य समाधानों का विकास ।

लिखा गया
Representative image of rust: By peter731 from Pixabay

दो वैद्युत-रासायनिक तकनीकों के संयोजन से, शोधकर्ता औद्योगिक धातुओं पर लेपित आवरण पर संक्षारण की दर को कुशलतापूर्वक मापने में सफल रहे।

लिखा गया
प्रतिनिधि चित्र श्रेय: पिक्साहाइव

उत्तम आपदा प्रबंधन एवं आर्थिक सुरक्षा की दृष्टि से, राज्य की वित्त व्यवस्था पर आपदा के प्रभाव का आकलन करने हेतु ‘डिजास्टर इंटेंसिटी इंडेक्स’ का उपयोग करते शोधकर्ता

लिखा गया
Lockeia gigantus trace fossils found from Fort Member. Credit: Authors

ಜೈ ನಾರಾಯಣ್ ವ್ಯಾಸ್ ವಿಶ್ವವಿದ್ಯಾಲಯದ ಸಂಶೋಧಕರು ಜೈಸಲ್ಮೇರ್ ನಗರದ ಬಳಿಯ ಜೈಸಲ್ಮೇರ್ ರಚನೆಯಲ್ಲಿ ಲಾಕಿಯಾ ಜೈಗ್ಯಾಂಟಸ್ ಪಳೆಯುಳಿಕೆಗಳನ್ನು ಕಂಡುಹಿಡಿದಿದ್ದಾರೆ. ಇದು ಭಾರತದಿಂದ ಇಂತಹ ಪಳೆಯುಳಿಕೆಗಳ ಮೊದಲ ದಾಖಲೆ ಮಾತ್ರವಲ್ಲ, ಇದುವರೆಗೆ ಪತ್ತೆಯಾದ ಅತಿದೊಡ್ಡ ಲಾಕಿಯಾ ಕುರುಹುಗಳು.

लिखा गया
ಇಂಡೋ-ಬರ್ಮೀಸ್ ಪ್ಯಾಂಗೊಲಿನ್ (ಮನಿಸ್ ಇಂಡೋಬರ್ಮಾನಿಕಾ). ಕೃಪೆ: ವಾಂಗ್ಮೋ, ಎಲ್.ಕೆ., ಘೋಷ್, ಎ., ಡೋಲ್ಕರ್, ಎಸ್. ಮತ್ತು ಇತರರು.

ಕಳ್ಳತನದಿಂದ ಸಾಗಾಟವಾಗುತ್ತಿದ್ದ ಹಲವು ಪ್ರಾಣಿಗಳ ನಡುವೆ ಪ್ಯಾಂಗೋಲಿನ್ ನ ಹೊಸ ಪ್ರಭೇದವನ್ನು ಪತ್ತೆ ಮಾಡಲಾಗಿದೆ.

लिखा गया
ಸ್ಪರ್ಶರಹಿತ ಬೆರಳಚ್ಚು ಸಂವೇದಕದ ಪ್ರಾತಿನಿಧಿಕ ಚಿತ್ರ

ಸಾಧಾರಣವಾಗಿ, ಫೋನ್ ಅನ್ನು ಅನ್ಲಾಕ್ ಮಾಡುವಾಗ ಅಥವಾ ಕಛೇರಿಯಲ್ಲಿ ಬಯೋಮೆಟ್ರಿಕ್ ಸ್ಕ್ಯಾನರುಗಳನ್ನು ಬಳಸುವಾಗ, ನಿಮ್ಮ ಬೆರಳನ್ನು ಸ್ಕ್ಯಾನರಿನ ಮೇಲ್ಮೈಗೆ ಒತ್ತ ಬೇಕಾಗುತ್ತದೆ. ಬೆರಳಚ್ಚುಗಳನ್ನು ಸೆರೆಹಿಡಿಯುವುದು ಹೀಗೆ. ಆದರೆ, ಹೊಸ ಸಂಶೋಧನೆಯೊಂದು ಈ ಪ್ರಕ್ರಿಯೆಯನ್ನು ಇನ್ನಷ್ಟು ಸ್ವಚ್ಛ, ಸುಲಭ ಮತ್ತು ಹೆಚ್ಚು ನಿಖರವಾಗಿಸುವ ವಿಧಾನವನ್ನು ರೂಪಿಸಿದೆ. ಸಾಧನವನ್ನು ಮುಟ್ಟದೆಯೇ ಬೆರಳಚ್ಚನ್ನು ಸಂಗ್ರಹಿಸುವ ಮಾರ್ಗವನ್ನು ಹುಡುಕಿದೆ.

लिखा गया
ಮೈಕ್ರೋಸಾಫ್ಟ್ ಡಿಸೈನರ್ ನ ಇಮೇಜ್ ಕ್ರಿಯೇಟರ್ ಬಳಸಿ ಚಿತ್ರ ರಚಿಸಲಾಗಿದೆ

ಐಐಟಿ ಬಾಂಬೆಯ ಸಂಶೋಧಕರು ಶಾಕ್‌ವೇವ್-ಆಧಾರಿತ ಸೂಜಿ-ಮುಕ್ತ ಸಿರಿಂಜ್ ಅನ್ನು ಅಭಿವೃದ್ಧಿಪಡಿಸಿದ್ದಾರೆ. ಈ ಮೂಲಕ ಸೂಜಿಗಳಿಲ್ಲದೆ ಔಷಧಿಗಳನ್ನು ಪೂರೈಸುವ ಮಾರ್ಗವನ್ನು ಕಂಡುಹಿಡಿದಿದ್ದಾರೆ.

लिखा गया
ಅತ್ಯಂತ ಪ್ರಾಚೀನ ವಸ್ತುವಿನ ಅಧ್ಯಯನ

ಹಯಾಬುಸಾ ಎಂದರೆ ವೇಗವಾಗಿ ಚಲಿಸುವ ಜಪಾನೀ ಬೈಕ್ ನೆನಪಿಗೆ ತಕ್ಷಣ ಬರುವುದು ಅಲ್ಲವೇ? ಆದರೆ ಜಪಾನಿನ ಬಾಹ್ಯಾಕಾಶ ಸಂಸ್ಥೆ - (ಜಾಕ್ಸ, JAXA) ತನ್ನ ಒಂದು ನೌಕೆಯ ಹೆಸರು ಹಯಾಬುಸಾ 2 ಎಂದು ಇಟ್ಟಿದ್ದಾರೆ. ಈ ನೌಕೆಯನ್ನು ಜಪಾನಿನ ಬಾಹ್ಯಾಕಾಶ ಸಂಸ್ಥೆ ಸೌರವ್ಯೂಹದಾದ್ಯಂತ ಸಂಚರಿಸಿ ರುಯ್ಗು (Ryugu) ಕ್ಷುದ್ರಗ್ರಹವನ್ನು ಸಂಪರ್ಕ ಸಾಧಿಸುವ ಉದ್ದೇಶದಿಂದ  ಡಿಸೆಂಬರ್ 2014 ರಲ್ಲಿ ಉಡಾವಣೆ ಮಾಡಿತ್ತು. ಇದು ಸುಮಾರು ಮೂವತ್ತು ಕೋಟಿ (300 ಮಿಲಿಯನ್) ಕಿಲೋಮೀಟರ್ ದೂರ ಪ್ರಯಾಣಿಸಿ 2018 ರಲ್ಲಿ ರುಯ್ಗು ಕ್ಷುದ್ರಗ್ರಹವನ್ನು ಸ್ಪರ್ಶಿಸಿತ್ತು. ಅಲ್ಲಿಯೇ ಕೆಲ ತಿಂಗಳು ಇದ್ದು ಮಾಹಿತಿ ಮತ್ತು ವಸ್ತು ಸಂಗ್ರಹಣೆ ಮಾಡಿ, 2020 ಯಲ್ಲಿ ಯಶಸ್ವಿಯಾಗಿ ಹಿಂತಿರುಗಿತ್ತು.

लिखा गया
ಕಾಂಕ್ರೀಟ್‌ ಪರೀಕ್ಷೆಗೆ ಪ್ರೋಬ್‌

ಕಾಂಕ್ರೀಟ್‌ನಲ್ಲಿ ಹುದುಗಿರುವ ರೆಬಾರ್‌ಗಳಲ್ಲಿನ ತುಕ್ಕು ಪ್ರಮಾಣವನ್ನು ಮಾಪಿಸಲು ವಿಜ್ಞಾನಿಗಳು ಒಂದು ಹೊಸ ತಪಾಸಕವನ್ನು ಅಭಿವೃದ್ಧಿಪಡಿಸಿದ್ದಾರೆ.

लिखा गया
‘ದ್ವಿಪಾತ್ರ’ದಲ್ಲಿ ಮೈಕ್ರೋ ಆರ್‌ಎನ್‌ಎ

ವೈರಲ್ ಸೋಂಕುಗಳು ಮತ್ತು ಸ್ವಯಂ ನಿರೋಧಕ ಕಾಯಿಲೆಗಳಲ್ಲಿ ಮೈಕ್ರೋ ಆರ್‌ಎನ್‌ಎ ‘ದ್ವಿಪಾತ್ರ’ದಲ್ಲಿ ಕೆಲಸ ಮಾಡುತ್ತದೆ. 

लिखा गया
ರೀಚಾರ್ಜ್ ಮಾಡಬಹುದಾದ ಬ್ಯಾಟರಿಗಳು

ಐಐಟಿ ಬಾಂಬೆ ಯ ಬ್ಯಾಟರಿ ಪ್ರೋಟೋಟೈಪಿಂಗ್ ಲ್ಯಾಬ್ ನ ಸಂಶೋಧಕರು ಇಂಧನ (ಶಕ್ತಿ) ಶೇಖರಣಾ ಸಾಧನವಾಗಿರುವ ರೀಚಾರ್ಜ್ ಮಾಡಬಹುದಾದ ಬ್ಯಾಟರಿಗಳ ಬಗ್ಗೆ ಅಧ್ಯಯನ ನಡೆಸುತ್ತಿದ್ದಾರೆ. 

Loading content ...
Loading content ...
Loading content ...
Loading content ...
Loading content ...