मुंबई
वैज्ञानिकों ने एक जीवाणु उपभेद की पहचान की है जो बजाय चीनी के, सुगंधित प्रदूषकों को खाना पसंद करता है !

वैज्ञानिकों ने एक जीवाणु उपभेद की पहचान की है जो बजाय चीनी के, सुगंधित प्रदूषकों को खाना पसंद करता है ! 

औद्योगिक अपशिष्ट, जिनमें हानिकारक रसायन और प्रदूषक शामिल हैं, समय के साथ जमा होते जाते हैं और मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए एक संगीन खतरा बन जाते हैं। इन खतरनाक प्रदूषकों से छुटकारा पाने के लिए उन्हें सुरक्षित रसायनों में विघटित करने की आवश्यकता होती है, जो कि एक अत्यंत जटिल कार्य है। हाल ही में एक अध्ययन में, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई (आईआईटी मुंबई), के शोधकर्ताओं ने इस खतरे का एक अनोखा उपाय खोज निकाला है। एक कहावत है कि एक आदमी का कचरा दूसरे आदमी के लिए खज़ाना हो सकता है, उसी तर्ज़ पर वैज्ञानिकों ने स्यूडोमोनस पुतिदा सीएसवी८६ (CSV86) नामक एक जीवाणु के उपभेद की पहचान की है जो इस कचरे को कुतरना पसंद करता है!

भोजन की बात करें तो अधिकतर जीवाणु जटिल सुगंधित प्रदूषकों के बजाए सरल कार्बन स्रोत जैसे कि ग्लूकोज और कार्बनिक एसिड को पसंद करते हैं। सुगंधित यौगिकों में कार्बन परमाणुओं की एक अंगूठी के आकार की व्यवस्था होती है और यह ज्यादातर घरेलू उत्पादों में पाए जाते हैं जैसे कीट निरोधक ( नेफ्थलीन की गोली), खाद्य परिरक्षक (सोडियम बेंज़ोएट), प्लास्टिक ( फ़्थेलेट एस्टर), और कई औद्योगिक रसायनों में।

इन जीवाणुओं का चुनींदा भोजन के प्रति लगाव ही प्रमुख अड़चन है जो इनको दूषित स्थलों से प्रदूषकों को कुशलतापूर्वक हटाने से रोकता है। मगर, स्यूडोमोनास पुतिडा  सीएसवी८६, या संक्षेप में सीएसवी८६ उपभेद, पहला जीवाणु उपभेद है जिसे पूरी तरह से विपरीत खाद्य वरीयता के लिए जाना जाता है! यह ग्लूकोज जैसे अधिक पारंपरिक कार्बन स्रोतों के बजाय जटिल सुगंधित यौगिकों (जैसे नेफ्थलीन, बेंज़ोएट आदि) को खाना पसंद करता है।

आईआईटी मुंबई के प्रोफेसर प्रशांत फले के नेतृत्व में हुए इस अध्ययन में, वैज्ञानिकों ने उपभेद सीएसवी८६ का अध्ययन किया है, जिसे मिट्टी में से पाया गया था। बैक्टीरिया स्यूडोमोनास पुतिडा  सीएसवी८६ की ऐसी कौन सी खास बात है की ये सामन्य ग्लूकोज के बजाये दुष्कर सुगंधित यौगिकों को खाने में वरीयता देता है? इस बात को समझने के लिए वैज्ञानिकों ने इस बैक्टीरिया का जीनोम अनुक्रमण, जैव रासायनिक और आणविक विश्लेषण किया। यह अध्ययन पत्रिका ‘एप्लाइड एंड एनवायरनमेंटल माइक्रोबायोलॉजी’ में प्रकाशित हुआ है, और इसके निष्कर्ष की मदद से ऐसे जीवाणु उपभेद बनाये जा सकते हैं जिनकी मदद से किसी भी हानिकारक रसायन को और अधिक कुशलता से पचाया जा सकता हैं।

अधिकांश जीवाणुओं में, ग्लूकोज या कार्बनिक एसिड जैसे सरल कार्बन स्रोतों की उपस्थिति में जीन की अभिव्यक्ति  कम हो जाती है जिसकी वजह से सुगंधित यौगिकों को तोड़ने में मदद करनेवाले एन्ज़ाइम या प्रोटीन का भी उत्पादन कम होता है। इसीलिए सरल कार्बन स्रोतों के पाचन को बढ़ावा मिलता है और सुगंधित यौगिकों के विघटन में सहायता मिलती है। वैज्ञानिकों ने पाया कि यह घटना, जिसे उन्होंने ‘कार्बन अपचयज दमन’ या अंग्रेजी में ‘कार्बन कैटाबोलाइट रेप्रेशन’ नाम दिया, इस उपभेद सीएसवी८६ में उलटी हो जाती है जिसकी वजह से सुगंधित यौगिक ग्लूकोस के उपयोग को दबा देते हैं। और इस प्रकार यह खोज इस जीवाणु के भोजन की वरीयता के अजीब व्यवहार की व्याख्या करती है।

यह खोज जीवविज्ञानी और बुनियादी विज्ञान वैज्ञानिकों के लिए आकर्षक है क्योंकि यह अपनी तरह का पहला प्रयास है। “अब तक, वैज्ञानिक साहित्य में ऐसी कोई रिपोर्ट नहीं है। प्रा. फले का कहना है कि सीएसवी८६ की जैव रसायन और उपापचयी नियमन सार्वभौमिक रूप से स्वीकार किया गया जो अमूमन मान्य नियम (जिसे कार्बन अपचयज रोक कहा जाता है) के खिलाफ जाता है। सुगंधित यौगिकों को पसंद करने के लिए यह जीव कैसे और क्यों विकसित हुआ है, भविष्य में पता करने के लिए दिलचस्प सवाल होंगे।

इस अध्ययन के निष्कर्ष आधुनिक तकनीक से सीएसवी८६ उपभेद को बदलकर किसी भी वांछित सुगंधित यौगिक को कुशलतापूर्वक तोड़ने की संभावना को उजागर करते हैं। परिणामस्वरूप नए जीवाणु उपभेद का उपयोग तब अपशिष्ट जल में हानिकारक सुगंधित प्रदूषकों को हटाने के लिए किया जा सकता है।

प्रा फले कहते हैं “यह कृषि के क्षेत्र में भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। मिट्टी में अगर इस सीएसवी८६ को मिला दें तो इसका उपयोग कीटनाशकों के सुगंधित घटकों को प्राकृतिक रूप से बिना पौधों को नुकसान पहुँचाए पर्यावरण से हटाकर उसे शुद्ध करने के लिए किया जा सकता है, क्योंकि यह जीवाणु स्यूडोमोनस जाति का है, जो पौधे के विकास को बढ़ावा देता है ।”

अपने पिछले अध्ययनों के आधार पर, प्रा फले का दल अब उन जीनों और आणविक तंत्रों के बारे में बारीकी से छानबीन कर रहा है जो इस जीव को सुगंधित यौगिकों को सुविधात्‍मक रूप से पचाने की अद्वितीय क्षमता प्रदान करते हैं। आने वाले वर्षों में और अधिक शोध और प्रगति के साथ, उपभेद सीएसवी८६ की कहानी एक विशिष्ट खोज का उत्कृष्ट उदाहरण बन सकती है, जिसका हमारी दुनिया पर व्यापक प्रभाव हो सकता है। एच जी वेल्स के  “वार ऑफ़ द वर्ल्ड्स” के जीवाणुओं की तरह, यह जीवाणु भी वास्तव में आज के जमाने के लिए एक महत्वपूर्ण रक्षक साबित हो सकता है।

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