मुंबई
कैंसर ग्रस्त कोशिकाओं में औषधि पहुंचाने की दिशा में शोध।

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई के शोधकर्ताओं ने कैंसर ग्रस्त कोशिकाओं में औषधि पहुंचाने के लिए प्रोटीन आधारित वाहक की संरचना की है।

कैंसर के इलाज के लिए एक प्रभावी रणनीति केवल कैंसर कोशिकाओं को मारने और अन्य स्वस्थ ऊतकों को कम से कम नुकसान पहुंचाने के लिए कैंसर प्रतिरोधक दवा की सही खुराक देना है। वैज्ञानिक विभिन्न तकनीकों के साथ प्रयोग कर रहे हैं ताकि लक्षित प्रदान और कैंसर प्रतिरोधी दवाओं के नियंत्रण को प्राप्त किया जा सके। हाल ही के एक अध्ययन में, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई के शोधकर्ताओं ने गायों के सीरम से प्राप्त एक प्रोटीन का उपयोग किया है जिसे गोजातीय सीरम एल्ब्यूमिन (BSA) कहा जाता है। यह प्रोटीन एक खारा विलयन में, जिससे हाइड्रोजेल बनते हैं, दवा वाहक के रूप में कार्य करता है।

हाइड्रोजेल जेली जैसे पदार्थ होते हैं जो ज्यादातर तरल होते है लेकिन ठोस जैसे गुणों को प्रदर्शित करते हैं। ये पानी में फैले हुए संश्लिष्ट या प्राकृतिक बहुलक के संजाल से बनते हैं। जब  स्थिर रखा जाता है (जो कि किसी यांत्रिक बल के अधीन नहीं होता है), तो वे अपने आकार को ठोस पदार्थ की तरह बनाए रखते हैं। कई अणु ठोस पदार्थ जैसी संरचना बनाने के लिए आपस में जुड़े होते हैं। एक प्रोटीन की तरह, प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले बहुलक के साथ बने हाइड्रोजेल का उपयोग दवा में किया जाता है क्योंकि ये जैव संयोज्य होते हैं और उपयोग के बाद शरीर से स्वाभाविक रूप से निकाले जा सकते हैं। इसके साथ-साथ इनके पास औषधि वितरण, ऊतक अभियांत्रिकी और कृत्रिम अंग बनाने में अनुप्रयोगों की एक विस्तृत श्रृंखला है।

आईआईटी बॉम्बे के प्राध्यापक सी. पी. राव, जिन्होंने अध्ययन का नेतृत्व किया कहते हैं कि “पहले से ही कैंसर के इलाज के क्षेत्र में महत्वपूर्ण प्रगति हुई है। हालाँकि, कई चुनौतियाँ अभी भी मौजूद हैं, और इन चुनौतियों का समाधान करने के लिए नई प्रणालियों और रणनीतियों को विकसित करने की सख्त आवश्यकता, हाइड्रोजेल इस संबंध में एक कुशल मंच के रूप में काम करते हैं।"

एसीएस सस्टेनेबल केमिस्ट्री एंड इंजीनियरिंग पत्रिका में प्रकाशित इस अध्ययन में, शोधकर्ताओं ने एक क्रॉस-लिंकिंग एजेंट की मदद से खारे विलयन में बीएसए (BSA) अणुओं को एपिक्लोरोहाइड्रिन कहा। इस प्रकार निर्मित क्रॉस-लिंक विभिन्न बहुलक श्रृंखलाओं को जोड़ते हैं और जेल जैसी संरचना बनाने में मदद करते हैं। परिणामी हाइड्रोजेल अत्यधिक छिद्रयुक्त होता है और कैप्सूल जैसी दवाओं को ले जा सकता है। शोधकर्ताओं ने यह भी दिखाया कि हाइड्रोजेल बनाते समय बीएसए की सांद्रता को नियंत्रित करके छिद्रों के आकार को नियंत्रित किया जा सकता है।

अधिकांश जेल दबाव या अव्यवस्था, जैसे कि इंजेक्शन सुई से गुजरते समय या शरीर के अंदर शारीरिक तनाव के कारण तरल पदार्थ बन जाते हैं। हालांकि, शोधकर्ताओं द्वारा बनाई गई बीएसए हाइड्रोजेल ने एक इंजेक्शन सुई के माध्यम से गुजरने के बाद भी अपनी जेल जैसी संरचना को बनाये रखा जो चिकित्सीय उपयोग के लिए एक वांछनीय गुणवत्ता, दवाओं को ले जाने के लिए हाइड्रोजेल का उपयोग करने में सक्षम होने के लिए, रोगी के शरीर में प्रवेश करते ही जेल को अपना आकार या समग्रता बनाए रखने की आवश्यकता होती है। शोधकर्ताओं ने पाया कि बीएसए जेल ने यांत्रिक क्षति के बाद खुद को सही किया और साथ ही साथ ये अपने स्वयं के वजन का लगभग ३०० गुना वजन सहन कर सकता था। इन गुणों ने दवाओं के एक विश्वसनीय वाहक के रूप में अपनी क्षमता सुनिश्चित की।

शोधकर्ताओं ने दवा की निस्तार दर का अध्ययन किया, जिस पर हाइड्रोजेल ने नियमित अंतराल पर निस्तारीत दवा की मात्रा को मापकर भरी हुई कैंसर प्रतिरोधक दवा को निस्तारीत किया। उन्होंने देखा कि दवा की निस्तार १२० घंटे के बाद भी जारी रही। सफल रसायन चिकित्सा के लिए आवश्यक धीमी और निरंतर निस्तार सुनिश्चित करना, क्योंकि तेजी से दवा की निस्तार दर हानिकारक है। उन्होंने अम्लता के विभिन्न स्तरों पर दवा की निस्तार की दर का भी परीक्षण किया और पाया कि यह अपेक्षाकृत धीमी और निरंतर थी। यह अम्लता के स्तर पर उच्चतम था जो कैंसर कोशिकाओं से मेल खाता है। "दवा की निस्तार दर अम्लता के प्रति संवेदनशील है, क्योकि कैंसर कोशिकाओं का पीएच अम्लीय होता है जिसे इस शोध में वरदान के रूप में देखा जा सकता है" प्राध्यापक राव कहते हैं। इसके अलावा, बीएसए हाइड्रोजेल बायोडिग्रेडेबल है जो मनुष्यों की छोटी आंतों में उत्पादित ट्रिप्सिन नामक एक पाचन एंजाइम इसे तोड़ सकता है।

शोधकर्ताओं ने प्रयोगशाला में संवर्धित कैंसर कोशिकाओं का उपयोग करके औषधि को ले जाने और पहुंचाने में हाइड्रोजेल की दक्षता का भी परीक्षण किया। उन्होंने २४ घंटे के लिए एक कल्चर्ड माध्यम में दवा-भरी हुई हाइड्रोजेल को मिलाया ताकि दवाओं को माध्यम से मिलाया जा सके और फिर इस माध्यम से कैंसर कोशिकाओं का इलाज किया जा सके। उन्होंने पाया कि ७०-८०% कैंसर कोशिकायें नष्ट हो गई, जिससे साबित होता है कि बीएसए हाइड्रोजेल कैंसर प्रतिरोधक दवाओं का एक संभावित वाहक है। स्पष्ट जेल, जिसमें कोई दवा नहीं थी, हानिरहित थे और किसी भी कोशिका को नष्ट नहीं किये।

प्रस्तावित बीएसए हाइड्रोजेल के अनेक गुण है यह कैंसर के अलावा अन्य परिस्थितियो का इलाज करने के लिए औषधि ले जा सकता है। “इन जेल के विभिन्न अन्य संभावित अनुप्रयोग हो सकते हैं, जिनकी खोज की जा रही है। इन्हें बाहरी अनुप्रयोगों जैसे घाव भरने या रोगाणुरोधी गतिविधियों के लिए अन्य विशिष्ट दवाओं के साथ प्रयोग किया जा सकता है।”, प्राध्यापक राव कहते हैं।

क्या ये जेल इस्तेमाल करने के लिए तैयार हैं? अभी तक तो नहीं, ऐसा शोधकर्ताओं का कहना है। “हमने जेल के गुणों का पता लगाने के लिए बुनियादी अध्ययन पूरा किया है, और अब विवो में (एक जीवित जीव में) अध्ययन आगे बढ़ाने की योजना बना रहे हैं। केवल जब विवो अध्ययन में परिणाम सकारात्मक होते हैं, तो इसके व्यावसायिक महत्व के बारे में सोचा जा सकता है।" प्राध्यापक राव ने कहा। चूंकि जेल का पेटेंट नहीं कराया गया है, इसलिए कोई भी शोधकर्ता इसे आगे के अध्ययन के लिए उपयोग कर सकता है। अध्ययन के निष्कर्षों से कैंसर के उपचार की नई उम्मीदें सामने आई हैं जो इस बीमारी के कम से कम दुष्प्रभावों के साथ प्रभावी रूप से सामना कर सकते हैं।

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