मुंबई
धारण करने योग्य स्वेद संवेदक बैंडेज

पिक्साबे छायाचित्र : म्सुमुह

चयापचय  (मेटाबॉलिस्म) - अर्थात जीवन को निरंतर बनाए रखने वाले ऊर्जा संसाधनों का प्रसंस्करण एवं उपयोग, बहुत से सह-उत्पाद अणुओं के रूप में परिणामित होता है, जिन्हें चयापचयज (मेटाबोलाइट) कहते हैं। शरीर सामान्य रूप से कार्य कर रहा है अथवा नहीं, यह परखने के लिए स्वास्थ्य चिकित्सक शरीर-द्रव जैसे कि रक्त, मूत्र, स्वेद एवं लार में इन अणुओं की सांद्रता की गणना करते हैं। यद्यपि सामान्य जनसमूह के लिए अर्धवार्षिक परीक्षण पर्याप्त है, किन्तु  चिरकालिक रोगों से ग्रसित लोगों को अपनी चिकित्सा स्थितियों की नियमित निगरानी की आवश्यकता होती है। इसी तरह, क्रीड़ापटुओं (एथलीट्स) को अल्प ऑक्सीयता  (हाइपॉक्सिया), निर्जलीकरण (डिहाइड्रेशन) और मांसपेशियों की थकान के परीक्षण हेतु वास्तविक समय में सभी की गहराई पूर्वक निगरानी करने की आवश्यकता होती है। इस प्रकार का चयापचयी प्रदर्शक (मॉनीटर) धारण करने योग्य एवं न्यूनतम अधिक्रामक (इनवैसिव) होना चाहिए। एक नए अध्ययन में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई (आईआईटी बॉम्बे) एवं टफ्ट्स विश्वविद्यालय, यूनाइटेड स्टेट्स के शोधकर्ताओं ने स्वेद से चयापचयज स्तरों के संसूचन (डिटेक्शन) के लिए एक अनूठा संवेदक (सेंसर) विकसित किया है। ये संवेदक आसंजक पट्टी (एडहेसिव टेप) एवं वस्त्रों में अंतः स्थापित किये जा सकते हैं।

एनपीजे फ्लेक्सिबल इलेक्ट्रॉनिक्स में प्रकाशित यह अध्ययन अनुप्रयुक्त मस्तिष्क एवं संज्ञानात्मक विज्ञान केंद्र (सीएबीसीएस), एक यूएस आर्मी कोंबेट कैपेबिलिटीज कमांड, ऑफिस ऑफ नेवल रिसर्च (ओएनआर), विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग तथा  शैक्षणिक  एवं अनुसंधान सहयोग प्रोत्साहन योजना (एसपीएआरसी, मानव संसाधन विकास मंत्रालय), भारत सरकार द्वारा वित्तपोषित है।

"स्वेद अनुवीक्षण (स्वेट मॉनीटरिंग) अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह आपके स्वास्थ्य को किसी पटु घड़ी (स्मार्ट वाच) की तुलना में एक बृहत दृष्टि प्रदान करता है," प्रो. समीर सोनकुसले कहते हैं। वह  टफ्ट्स यूनिवर्सिटी में एक प्राध्यापक एवं इस अध्ययन के एक वरिष्ठ शोधकर्ता हैं। "पसीने में अन्य चयापचयजों की  जानकारी  चिकित्सा निदान के क्षेत्र में भी अवसरों का विस्तार करेगी," वह आगे कहते हैं।

स्वेद में उपस्थित आयन शरीर की चयापचय स्थिति की एक समग्र छवि व्यक्त करते हैं। उदाहरण स्वरूप, सोडियम आयन की अल्प मात्रा डिहाइड्रेशन को व्यक्त करती है। अमोनियम आयन प्रोटीन पाचन, यकृत  कार्य क्षमता स्तर  एवं ऑक्सीजन स्तर के संकेतक हैं तथा लेक्टेट आयन्स का बढ़ा हुआ स्तर मासपेशियों की  क्षमता में ह्वास का द्योतक है। शोधकर्ताओं ने एंजाइम लेपित पॉली-ईस्टर तंतु जो आक्सीकृत होकर लेक्टेट का संवेदन करते हैं, पी एच (अम्लीयता) की जाँच के लिए कार्बन लेपित स्टेनलेस स्टील तन्तु एवं सोडियम एवं अमोनियम आयन जैसे विद्युत अपघट्यों (इलेक्ट्रोलाइट) के संवेदन हेतु कार्बन लेपित पॉली-ईस्टर तंतुओं का उपयोग करते हुये तीन प्रकार के संवेदक विकसित किए हैं।  

संवेदको को इलेक्ट्रॉनिक परिपथ-फलक (सर्किट-बोर्ड) के साथ जोड़ा गया था जिनके द्वारा बेतार (वायरलेस) प्रसारण के माध्यम से एकत्रित जानकारी को संगणक प्रोग्रामों तक भेजा गया, जहाँ विभिन्न चयापचयजों की सांद्रता की गणना की गई। "संवेदक जैसे ही आयन्स की सांद्रता में अंतर देखता है, आँकड़े बेतार प्रसारण के द्वारा लगभग तत्क्षण ही प्रसारित कर दिए जाते हैं एवं संगणक (अथवा फोन) पटल पर प्रदर्शित कर दिये जाते हैं। मैं कहूँगा कि इस प्रसारण के लिए यह लगभग एक सेकेंड का समय लेता है," प्राे. सोनकुसले कहते हैं।

शोधकर्ताओं ने पाया कि लेक्टेट संवेदक चयापचयजों को 5-30 सेकेंड्स के अंदर संसूचित कर सका। उन्होंने सुझाया कि यह अवधि चयापचयज स्तरों के वास्तविक समय संवेदन (रियल टाइम सेन्सिंग) के लिए इष्टतम है। उन्होंने यह भी पाया कि संवेदक तन्तु उनके द्वारा संसूचित आयन्स के लिए विशिष्ट थे एवं विलयन में उपस्थित अन्य समान अलक्षित आयन्स के लिए प्रतिक्रिया रहित थे।

एक बार जब संवेदक तंतु और इलेक्ट्रॉनिक पाठन युक्ति को पृथक-पृथक मूल्यांकित कर लिया गया तब मनुष्यों पर इनका उपयोग करने का समय आ गया । सर्वप्रथम संवेदक तंतुओं को उनके लक्षित आयनों से युक्त तनु विलयन में स्थापित कर सक्रिय किया गया। इसके बाद अंशशोधन (कैलीब्रेशन) किया गया ताकि सभी संवेदक तंतु मानक स्तर पर कार्य कर सकें। "रासायनिक संवेदकों को अग्रिम अंशशोधन (प्री कैलीब्रेशन) की आवश्यकता होती है, क्योंकि तन्तु रचना प्रक्रिया में भिन्नता के कारण प्रत्येक संवेदक अलग  हो सकता है," प्राध्यापक सोनकुसले स्पष्ट करते हैं।

सोडियम आयनों, अमोनियम आयनों एवं पीएच के लिए संवेदक तंतुओं को एक आसंजक पट्टी पर एकीकृत किया गया। लेक्टेट संवेदक को एक पृथक पट्टी पर लगाया गया क्योंकि इसकी सूचना एक पृथक मापन यंत्र के द्वारा क्रियान्वित की जाती है। आयनिक स्तरों में परिवर्तन को एक विभवमापी (पोटेंशियोमीटर) के द्वारा मापा जाता है जो कि विभव परिवर्तनों को पंजीकृत करता है, जबकि लेक्टेट सांद्रता को एक विद्युत्  धारामापी के माध्यम से विद्युत धारा के रूप में मापा जाता है। संवेदक पट्टी को गॉज पट्टी से आवृत (कवर्ड) किया गया था, जिसने स्वेद को एकत्र करने हेतु एक अवशोषक सतह प्रदान की।

"यह एक अल्प लागत वाली बैंड-एड जैसी पट्टिका है जिसका एक बार उपयोग करने के पश्चात निस्तारण ( डिस्पोजल) किया जा सकता है। एवं इलेक्ट्रॉनिक घटक का पुन: उपयोग किया जा सकता है," धारणीय संवेदक पट्टिका का वर्णन करते हुये प्राध्यापक सोनकुसले कहते हैं। "निस्तारणीय वस्त्र संवेदक जैव-अपक्षीणन योग्य (बायोडिग्रेडेबल) है। भविष्य में यह पुन: प्रयोज्य इलेक्ट्रॉनिक्स, ऊर्जा संचयन घटकों को भी एकीकृत कर सकता है, जो परिवेश से ऊर्जा प्राप्त करने में सक्षमता के कारण संवेदक को दीर्घकालिक बनाता है," अध्ययन में सम्मिलित एक अन्य वरिष्ठ शोधकर्ता,आईआईटी मुंबई के प्राध्यापक मॅरियम शोजेई आगे कहती हैं।

संपूर्ण संवेदक पट्टिकाओं को हल्का व्यायाम करते हुये अध्यनयाधीन प्रतिभागियों की भुजाओं, माथे एवं पीठ के निचले भाग पर लगाया गया। उन्होंने स्वेद निकलने में 10-20 मिनट का समय लिया, जिसे गॉज पट्टी के द्वारा अवशोषित कर लिया गया। संवेदक ने विभिन्न आयनों को खोजा तथा आयनिक स्तरों में वास्तविक-समय में हुए परिवर्तनों को आँकते हुये, शोधकर्ताओं को आँकड़े एकत्र करने की अनुमति दी। इन आँकड़ों का उपयोग प्रतिभागियों के आरोग्य का विश्लेषण करने में  किया जा सकता है।

"आयनिक सांद्रता आहार एवं व्यायाम के फलन के रूप में परिवर्तित होती है। ये परिवर्तन  मिनटों के अंदर  हो जाते हैं। विभिन्न प्रतिभागी, अपने समस्त शारीरिक स्वास्थ्य एवं आरोग्य के आधार पर  इन आयनों के विभिन्न स्तरों को  उत्सर्जित करेंगे," प्रा. सोनकुसले स्पष्ट करते हैं।

यह अध्ययन सुगमता से पहनने योग्य और त्वरित स्वेद संवेदक सृजन की दिशा में  व्यापक दिशा-निर्देश प्रदान करता है। यद्यपि इस प्रकार का संवेदक मंच बनाना सरल नहीं है। "एक ऐसा संवेदक प्राप्त करना जो बिना किसी व्यथा और असुविधा के उपयोगकर्ता के  शरीर के साथ समेकित रूप से (सीमलेसली)  जुड़ा रहे, अत्यंत चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि प्रत्येक संवेदक और इलेक्ट्रॉनिक मंच स्थूलता और दृढ़ता को जोड़ते हुये इसे असंगत बनाता  है," प्रा. सोनकुसले कहते हैं। "हमारे वस्त्र तन्तु आदर्श अध:स्तर (सब्सट्रेट) के रूप में कार्य करते हैं, क्योंकि इन्हें स्वेद में स्थित विभिन्न जैव-संकेतों को दर्शाने हेतु क्रियान्वित किया जा सकता है, और किसी भी वस्त्र  पर अथवा एक अकेली  पट्टी के रूप में जोड़ा जा सकता है, जैसा कि हमने किया," वह  अपनी बात समाप्त करते  हुए कहते हैं। 

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