मुंबई
Photo : Anton Croos, Art of Photography via Wikimedia Commons

कीटनाशकों का छिड़काव, स्प्रे पेंटिंग, ऑटोमोबाइल इंजनों में ईंधन का इंजेक्शन   और यहाँ तक कि खाना बनाने जैसे कई क्रियाओं में महीन बूँदों का स्प्रे मुख्य रूप में प्रयोग होता है। लेकिन , क्या आपने कभी सोचा है कि यह स्प्रे बनता कैसे है? एक पतली परत के रूप में एक नोजल के माध्यम से द्रव , तेज़ गति से बाहर फेंका जाता है। फिर वे बूँदें बाहर की ओर फैलती हैं और विघटित होकर, स्प्रे के रूप में बाहर की ओर एक फुहार बनकर निकलती हैं इस क्रिया को ऑटोमाइज़ेशन कहते हैं। हाल ही के एक अध्ययन में, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई (आईआईटी मुंबई) के प्रोफेसर महेश तिरुमकूड़लु और उनकी छात्रा नयनिका मजूमदार ने प्रयोगात्मक साक्ष्य प्रस्तुत किए हैं जो इंगित करते हैं कि द्रव की परतें पतली हो जाने के कारण टूट जाती हैं। यह साक्ष्य 2013 में इन्हीं शोधकर्ताओं द्वारा प्रस्तावित उस सिद्धांत का समर्थन करता है, जिसने इस क्रिया के पारंपरिक स्पष्टीकरण को चुनौती दी है।

एक ब्रिटिश एयरोस्पेस इंजीनियर, हरबर्ट स्क्वायर ने 1953 में एक सिद्धांत प्रस्तावित किया था जो दर्शाता है कि एक सी मोटाई के बहते तरल पदार्थ की परत आसपास की हवा के कारण फड़फड़ाती है क्योंकि हवा, परत की चिकनी सतह पर अवरोध उत्पन्न करती है और इसके परिणामस्वरूप इसे बूँदों के रूप में तोड़ देती है। यह प्रक्रिया तेज़ हवा से झंडे के फड़फड़ाने के समान होती है । तरल पदार्थ के टूटने की व्याख्या करने के लिए ध्वज की फड़फड़ाहट का यह मॉडल 50 से अधिक वर्षों से चल रहा है।, लेकिन इस अध्ययन के शोधकर्ताओं ने पहले ही 2013 में स्क्वायर के सिद्धांत में संशोधन र का प्रस्ताव दिया था।

इस अनुसंधान के नेतृत्व करने वाले प्रोफेसर महेश एस तिरुमकूड़लुबताते है, "हमारे समूह ने 2013 में एक सिद्धांत का प्रस्ताव रखा जो दिखाता है कि स्क्वायर का सिद्धांत एक समान मोटाई वाली परतों (शीट्स) के लिए सही है, लेकिन इसे नोज़ल से निकलने वाली  द्रव की परतों के पतले हो जाने के कारण संशोधित करने की आवश्यकता है। सात दशकों से अधिक समय से द्रव की परत की फ़्लैपिंग का कारण , आसपास की हवा के साथ द्रव की परत की परस्पर क्रिया को माना गया है। प्रोफेसर महेश एस तिरुमकूड़लु यह भी बताते है कि हमारे प्रयोग पूरी तरह से इस परिकल्पना को उलटाते हैं और दर्शाते है कि द्रव की परत की ज्यामिति ही फ़्लैपिंग का कारण है".   साथ ही, प्रतिष्ठित पत्रिका ‘फिजिकल रिव्यू लेटर्स ‘में प्रकाशित नए प्रयोगात्मक साक्ष्य, उनके पहले प्रस्तावित सिद्धांत का समर्थन करते हैं।

इस परीक्षण में शोधकर्ताओं ने उस नॉज़ल की नोक पर ,जिसमें से द्रव की परतें उत्पन्न हो रही हों ,एक लहर का समावेश किया । नॉज़ल की नोक पर हलचल पैदा करने से पानी की परतों पर लहरें पैदा होती हैं जैसी  कि एक पाइप की नोक को हिलाकर बाहर बहकर निकलते हुए धार में एक लहर  पैदा होती है। शोधकर्ताओं ने पाया कि द्रव की परत के बारीक़ क्षेत्रों में तरंग आने के कारण, यह धीमी हो जाती है और आयाम या लहर की ऊँचाई बढ़ जाती है। ऊँचाई में यह वृद्धि तरल परत की चिकनी सतह को विचलित करती है।

"प्रस्तावित तंत्र निर्वात के लिए भी उपयुक्त है क्योंकि यह आसपास की हवा के साथ किसी भी परस्पर क्रिया को अनदेखा करता है। हमने यह पुष्टि भी की है कि परत की फ़्लैपिंग वायु के दबाव में बदलाव से अप्रभावित रहती है।”प्रोफेसर तिरुमकूड़लु कहते है।

इससे प्रभावित होकर  शोधकर्ताओं ने  द्रव की परत की फ़्लैपिंग में आसपास की हवा की भूमिका पर सवाल उठाये हैं ।  "हमारे प्रयोगों से पता चलता है कि प्रयोग के दौरान सेट-अप मे,  द्रव के प्रवाह में उतार-चढ़ाव और कंपन की वजह से सिस्टम में हमेशा गड़बड़ी होती है। इस तरह की गड़बड़ी नोजल के निकास पर छोटी तरंगों के रूप में प्रकट होती है, जो द्रव की परत (शीट) तोड़ने के लिए नीचे की ओर बढ़ती है "। स्क्वायर के सिद्धांत के विपरीत, जो निर्वात में परत के टूटने की व्याख्या करने में विफल है, प्रस्तावित तर्क आसपास की हवा पर निर्भर नहीं होता है अतः इस प्रक्रिया का और भी अधिक सटीक रूप से वर्णित करता है।

चूंकि विशिष्ट अनुप्रयोगों में बौछार की बूँदों के एक विशेष आकार की आवश्यकता होती है, इसलिए बूँदों के वांछित आकार को प्राप्त करने के लिए बहने वाले द्रव की गति को बढ़ाकर आसपास की हवा की हलचल पर काबू पाने के लिए नोजल तैयार किए जाते हैं। परन्तु , नए सिद्धांत के चलते बूँद के आकार  के बारे में नोज़ल में अव्यवस्था को नियंत्रित करके अग्रिम रूप से भविष्यवाणी की जा सकती है- यह एक ऐसी क्षमता है जो कुशल नोजल के डिज़ाइन का कारण बन सकती है, जो अभीष्ट विभिन्न आकारों की बूँदें उत्पन्न कर सकती है।

भविष्य की रिसर्च के बारे में प्रोफेसर तिरुमकूड़लु ने बताया कि "अगले चरण में, हम 'सक्रिय नोजल्स' पर काम कर रहे हैं, जहाँ एक निश्चित प्रवाह दर पर एक ही नोजल का उपयोग करके सिर्फ कंपन के आयाम और आवृत्ति को बदलकर विभिन्न प्रकार की बूँदों के आकार का वितरण प्राप्त कर सकते हैं"

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